आपस की बात अलैक शेरमन के साथ (Aapas ki Baat)
1 Attachment(s)
नमस्कार दोस्तों, मैं हूँ अभिषेक कुमार और आप हैं इस वक़्त My Hindi Forum के सबसे अनूठे सूत्र आपस की बात में. इस सूत्र में मैं आपके सामने हर हफ्ते कुछ मुद्दे, कुछ उलझनें और कुछ सवाल रखूँगा और इन पर अलैक शेरमन से चर्चा करूंगा. अलैक जी पेशे से पत्रकार हैं और कला, साहित्य, राजनीति, धर्मशास्त्र इत्यादि में बहुत ही अच्छी पकड़ रखते हैं. चूँकि इस सूत्र में कई विवादास्पद मुद्दों को उठाया जाना है इसलिए व्यर्थ के बहसबाजों से बचने के लिए सूत्र बंद रखा गया है. यदि आपको कोई प्रश्न पूछना है तो सूत्रधार को प्राइवेट मैसेज के जरिये भेजें, विषय से सम्बंधित पाए जाने पर उसे सूत्र में आपके नाम के साथ सम्मिलित कर लिया जाएगा. संवाद का आखिरी दिन यानी नया सब्जेक्ट शुरू होने से पहले वाला दिन ऐसे सवालों के जवाब के लिए तय किया गया है. धन्यवाद, अभिषेक |
Re: आपस की बात अलैक शेरमन के साथ (Aapas ki Baat)
भारत और पाकिस्तान, मंजिल एक रास्ते अलग अलग! पिछले महीने पाकिस्तान के राष्ट्रपति, आसिफ जरदारी भारत आये और मनमोहन सिंह से मुलाकात भी की. फिर से ठन्डे बस्ते में पड़ी भारत-पाक शांति वार्ता की पुरानी धुल लगी हुई फाइलें खोली गयी. इस बीच जरदारी ने मनमोहन सिंह को पाकिस्तान आने का भी न्योता दे दिया. लेकिन भारत में कई लोग इस वार्ता पर ऊँगली उठा रहे हैं, उनका कहना है पाकिस्तान की असली सत्ता तो सेना और isi के पास है और जब तक जेनरल कयानी का मुहर इस वार्ता को नहीं लग जाता, यह सब व्यर्थ है. आपको याद ही होगा १९९९ में एक तरफ वाजपेयी बस पर लाहौर गए थे और दूसरी तरफ जेनरल परवेज मुशर्रफ ने कारगिल युद्ध करवा दिया. ऐसे में सिविल हुकूमत क्या वास्तव में भारत के साथ शांति वार्ता कर सकती है और कुछ कठिन फैसले ले सकती है, यह एक सोचने वाली बात है. भारत और पाकिस्तान, दोनों १९४७ में आज़ाद हुए, एक ही साथ आगे बढे, एक तरफ भारत में डेमोक्रेसी का रास्ता चुना गया और सेना को सिविल हुकूमत के कण्ट्रोल में रखा गया दूसरी तरफ पाकिस्तान में कई बार तख्तापलट हुए और सेना के शासन अपने हाथ में ले लिए. आज भी जब भी कोई राजनैतिक सरगर्मी होती है, इस्लामाबाद में यही डर होता है की कब सेना बनकर से निकलकर हुकूमत अपने हाथ में ले ले. वही भारत में डेमोक्रेसी इतनी मजबूत है की ऐसा कोई सोच भी नहीं सकता, शेखर गुप्ता जैसे कुछ पत्रकार इस तरह की कुछ कहानी बनाते है मगर उनको ज्यादा भाव नहीं दिया जाता. आखिरकार भारत और पाकिस्तान में अंतर कहाँ है, क्यों डेमोक्रेसी के जड़े भारत में बहुत ही मजबूत है, इसी विषय पर हम लोग इस हफ्ते अलैक जी से चर्चा करेंगे. तो अलैक जी आइये और थोडा इस मामले पर रौशनी डालिए की आखिरकार भारत और पाकिस्तान में ऐसा क्या बुनियादी अंतर है. |
Re: आपस की बात अलैक शेरमन के साथ (Aapas ki Baat)
नमस्कार अभिषेकजी !
आप सभी हाज़रात को मेरा आदाब, जो इस सूत्र पर आए हैं या भविष्य में आने वाले हैं ! सबसे पहले मैं आपको बधाई देना चाहता हूं, अभिषेकजी ... फोरम्स के इतिहास में इस नायाब सूत्र की शुरुआत के लिए और आपका शुक्रिया अदा करना चाहता हूं, अपने साथ चर्चा करने का अवसर मुझे देने के लिए ! |
Re: आपस की बात अलैक शेरमन के साथ (Aapas ki Baat)
जहां तक भारत और पाकिस्तान का सवाल है, निश्चय ही यह कोई भी कह सकता है कि पूर्व में दोनों टुकड़े एक ही देश का हिस्सा थे, दोनों ही भागों पर मुग़लों और अंग्रेजों ने शासन किया और दोनों ही में काफी सारी समानताएं हैं, लेकिन जब बात बंटवारे के बाद के इतिहास और घटनाक्रम की आती है, तो दोनों देशों की परिस्थितियों में ज़मीन-आसमान का अंतर नज़र आता है ! यदि इस पर उथले नज़रिए से बात की जाए, तो सहज कहा जा सकता है कि पाकिस्तान में मिलिट्री शुरू से बहुत ताकतवर हो गई थी, इसलिए प्रजातंत्र वहां कारगर साबित नहीं हो सका, लेकिन यह सतही जवाब होगा ! आखिर वह कौन से कारण हैं कि वहां शासक निरंतर कमजोर होते गए और सेना प्रशासन पर अपनी पकड़ मज़बूत करने में कामयाब होती गई और इधर भारत लगातार लोकतंत्र की सीढियां चढ़ता रहा और आज विश्वभर में एक सच्चे लोकतांत्रिक देश के रूप में उसका नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है ! इसके अनेक कारण हैं और उनमें एक 'प्रशासकीय प्रबंधन', जिसे में सबसे प्रमुख कारण मानता हूं, की जड़ें खोजने के लिए हमें गुलाम हिन्दुस्तान अथवा कहें कि अंग्रेजों के शासनकाल में जाना होगा !
|
Re: आपस की बात अलैक शेरमन के साथ (Aapas ki Baat)
... लेकिन इससे पहले मैं हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के आजादी के बाद के इतिहास पर एक नज़र डाल लेना बेहतर समझता हूं, जिससे कई चीजें अपने-आप साफ़ हो जाएं ! यह सभी को पता है कि आज़ाद होते समय दोनों हिस्सों को विरासत में वही उपनिवेशकालीन व्यवस्था, वही न्यायपालिका, कार्यपालिका और नौकरशाही हासिल हुई ! दोनों तरफ वही मिडिल क्लास, गरीबी और जात-पांत के झगड़े भी मौजूद थे अर्थात लगभग समान परिस्थितियां ! यह सब होते हुए भी भारत ने 1947 से 1958 के बीच संविधान बना लिया, चुनाव करा लिए और लोकतंत्र की ओर तेज़ी से कदम बढ़ाए, लेकिन ऐसा पाकिस्तान में कुछ नहीं हुआ ! इसके बावजूद कि पाकिस्तान के कायदे-आज़म जिन्ना लगातार लोकतांत्रिक व्यवस्था लाने की दुहाई देते रहे ! उनके भाषणों को देखें, आपको साफ़ लगेगा कि वे पाकिस्तान में एक सच्ची जम्हूरियत के ही हिमायती थे, लेकिन हुआ एकदम उलट ! पहले दस साल जैसे-तैसे लड़खड़ाते गुज़र गए और 1958 में वहां मार्शल लॉ लागू हो गया, जो लगभग दस साल रहा ! उसके बाद 1973 के आसपास जुल्फिकार अली भुट्टो आए, लेकिन उन्होंने तमाम दावों के बावजूद न तो प्रेस को आजादी दी और न न्यायपालिका को स्वायत्त किया ! हर चीज़ पर उन्होंने अपना कड़ा अंकुश रखा अर्थात वही गलती उन्होंने दोहराई, जो पाकिस्तान के प्रारम्भिक शासकों ने की थी ! उनके बाद लगभग दस साल जिया उल हक रहे और उनके काल तक पाकिस्तान में सेना की भूमिका इतनी ज्यादा बढ़ चुकी थी कि वहां लोकतंत्र तो आया लेकिन वह एक लूला-लंगड़ा लोकतंत्र था ! इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह था कि वहां राजनेताओं की कोई जमात ही खड़ी नहीं हुई थी, जो नेता सामने आए, उन्हें न तो यह अहसास था कि उन्हें शासन कैसे करना है और न ऐसा प्रशिक्षण ही उन्हें मिला था, यही कारण था कि वे आईएसआई और सेना के इशारों पर शासन चलाने में ही खैरियत समझने लगे ! अब फिर वही सवाल, यानी इसके लिए जिम्मेदार परिस्थितियां क्या हैं ? अब मैं आपको कुछ देर के लिए ले चलूंगा आजादी के लिए छटपटाते ब्रिटिशकालीन संयुक्त भारत में !
|
Re: आपस की बात अलैक शेरमन के साथ (Aapas ki Baat)
आप ज़रा ब्रिटिश इंडिया के नक़्शे पर नज़र डालें और देखें कि पाकिस्तान और हिन्दुस्तान के हिस्से कौन से भू-भाग आए ! आप पाएंगे कि पाकिस्तान के हिस्से पंजाब, फ्रंटियर और बलोचिस्तान का भाग आया और भारत को जो मिला उसमें सबसे बड़ा क्षेत्र सेन्ट्रल और यूनाइटेड प्रोविन्सेज़ का है ! उस समय के इतिहास पर गौर करेंगे, तो पाएंगे कि पाकिस्तान के हिस्से जो क्षेत्र आया, वह तब नॉन रेग्यूलेट (अनियमित अथवा अव्यवस्थित) क्षेत्र माना जाता था, अतः यहां ब्रिटिश शासकों ने सारी व्यवस्था को केंद्रीकृत किया हुआ था अर्थात विधि, न्याय और प्रशासन आदि सब एक ही हाथों में सिमटे हुए थे, जबकि भारत के हिस्से आया भू-भाग प्रशासकीय दृष्टि से काफी हद तक सुव्यवस्थित क्षेत्र था, अतः यहां न्याय, विधि, प्रबंध आदि शक्तियां विकेन्द्रीकृत अर्थात अनेक हाथों में बंटी हुई थी ! आजादी के बाद सत्ता पर काबिज़ हुए लोगों, चाहे वे राजनेता हों या नौकरशाही, की मानसिकता पर इसने काफी असर डाला ! पाकिस्तान की नौकरशाही पर इसका असर कुछ अधिक इसलिए हुआ कि वहां सत्ता और प्रबंध में पंजाब की भागीदारी सबसे ज्यादा थी और यह इसलिए कि पंजाब पाकिस्तान का सबसे बड़ा क्षेत्र है !
|
Re: आपस की बात अलैक शेरमन के साथ (Aapas ki Baat)
अब हमें यह विचार करना चाहिए कि आखिर पंजाब के लोगों की यह मानसिकता क्यों बनी, जिससे भारत के शेष हिस्से बरी रहे ! दरअसल इसका रहस्य यहां के कृषि क्षेत्र के विकास में छुपा है ! पंजाब का सुव्यवस्थित 'एग्रीकल्चर सिस्टम' भारत में सबसे पुराना, लगभग डेढ़-दो सौ साल पुराना है ! इसके लिए पानी, जमीन-जायदाद के झगड़ों के निपटारे, लगान आदि की वसूली एवं इससे जुड़े अन्य मसलों आदि के लिए अफसरों की भर्ती अंग्रेजों ने यहीं से की थी ! दूसरी ओर यहां का जागीरदार, राजे-रजबाड़ों का तबका भारत के अन्य हिस्सों से ज्यादा, बल्कि कहें सबसे अधिक और शक्तिशाली ही नहीं था, ब्रिटिश सेना में भी सबसे ज्यादा लोग यहीं के और इसी बिरादरी के थे ! ब्रिटिश सैन्य बलों की ज्यादातर भर्ती उन्हीं इलाकों से हुई थी, जो बाद में पाकिस्तान का हिस्सा बने अर्थात स्पष्ट है कि इस हिस्से का राजनीतिक तबका, सैन्य बल और नौकरशाही सब आपस में न सिर्फ जुड़े हुए, बल्कि घुले-मिले थे ! बंटवारे के समय प्रशासनिक सेवा में लगभग पांच सौ बड़े अफसर थे, जिनमें से तकरीबन सौ-सवा सौ मुस्लिम थे ! इनमें से लगभग एक सौ दस पाकिस्तान चले गए और शेष भारत में ही रह गए ! ज़ाहिर है कि ये सभी इन्हीं इलाकों के थे ! पाकिस्तान बनने के बाद सत्ता पर ज्यादातर यही लोग काबिज़ हुए और चूंकि उनकी मानसिकता में इन इलाकों के लिए अंग्रेजों का ईजाद किया 'केंद्रीकृत सिस्टम' जड़ें जमाए था, पाकिस्तान के परिवेश पर वह हावी हो गया, इसी के कारण पाकिस्तान भारत से अलग राह पर चल निकला ! लेकिन यह सिर्फ एक कारण है, कई और वज़हें अभी शेष हैं, जिन पर मैं आगे चर्चा करूंगा !
|
Re: आपस की बात अलैक शेरमन के साथ (Aapas ki Baat)
Quote:
आपने जिन्नाह की बात छेड़ी है तो मैं भी इस सिलसिले में एक रोचक बात बताऊँगा. जिन्नाह को १९४० में टीबी हो गया था और १९४५-४६ तक उनकी हालत बहुत ख़राब हो गयी थी, और उस हालत में भी वो चिमनी की तरह सिगरेट पीते थे. यह बात उनके डॉक्टर को पता थी की जिन्नाह चंद महीनो के ही मेहमान हैं. और उसी दिनों गाँधी ने पटेल और नेहरु के सामने यह प्रस्ताव रखा था की जिन्नाह को प्रधान मंत्री बना दो और भारत का विभाजन बचा लो. अगर पटेल नेहरु यह बात मान लेते तो भारत का विभाजन नहीं होता और फिर कुछ दिन बाद जिन्नाह की मृत्यु हो जाती और फिर नेहरु प्रधान मंत्री बन जाते. कई लोग यह भी कहते है की उस डॉक्टर ने यह बात पटेल और नेहरु को बताई थी लेकिन इसके बारे में कॉन्फीर्म जानकारी नहीं है. |
Re: आपस की बात अलैक शेरमन के साथ (Aapas ki Baat)
आपकी बात एक हद तक सही है, अभिषेकजी ! किन्तु मसला सिर्फ यही नहीं था, इसके साथ माइनोरिटी के लिए अलग चुनाव, अलग वोटिंग राइट, सीटों का प्रावधान जैसी कई अन्य मांगें भी जुड़ी हुई थीं, जिन्हें मान लेना पाकिस्तान बनने से भी ज्यादा घातक होता ! मैं इस सन्दर्भ में पं. नेहरू के निर्णय का समर्थक हूं, लेकिन इस बारे में हम कुछ समय बाद फिर चर्चा करेंगे, वरना मूल विषय पीछे छूट जाएगा !
|
Re: आपस की बात अलैक शेरमन के साथ (Aapas ki Baat)
1 Attachment(s)
अलैक जी ने पंजाब की बात की है तो भी कुछ इसमें जोड़ दूं. पंजाब पाकिस्तान का सबसे महत्वपूर्ण राज्य है. पाकिस्तान के 53 प्रतिशत से भी अधिक आबादी पंजाब में ही रहती है. पंजाब का विकास भी अन्य क्षेत्रो से ज्यादा और अच्छा हुआ है. पाकिस्तान के अधिकतर बड़े नेता भी पंजाबी ही रहे हैं.
http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1336483374 |
All times are GMT +5. The time now is 06:21 PM. |
Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.