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-   -   मशहूर ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह नहीं रहे. (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=3508)

abhisays 10-10-2011 12:12 PM

मशहूर ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह नहीं रहे.
 
प्रसिद्ध ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह का मुंबई के लीलावती हॉस्पिटल में ब्रेन हेमरेज की वजह से निधन हो गया है. वो ७० साल के थे.
इससे पहले १९९८ में उन्हें दिल का दौरा भी परा था. २००७ में एक बार खून की कमी के कारण हॉस्पिटल में भर्ती भी हुए थे.

http://www.sweetslyrics.com/images/i...jit_singh-.jpg

उनका संगीत काफ़ी मधुर था, और उनकी आवाज़ संगीत के साथ खूबसूरती से विलय होती है। खालिस उर्दू जानने वालों की मिल्कियत समझी जाने वाली, नवाबों-रक्कासाओं की दुनिया में झनकती और शायरों की महफ़िलों में वाह-वाह की दाद पर इतराती ग़ज़लों को आम आदमी तक पहुंचाने का श्रेय अगर किसी को पहले पहल दिया जाना हो तो जगजीत सिंह का ही नाम ज़ुबां पर आता है। उनकी ग़ज़लों ने न सिर्फ़ उर्दू के कम जानकारों के बीच शेरो-शायरी की समझ में इज़ाफ़ा किया बल्कि ग़ालिब, मीर, मजाज़, जोश और फ़िराक़ जैसे शायरों से भी उनका परिचय कराया।

naman.a 10-10-2011 12:54 PM

Re: मशहूर ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह नहीं रहे.
 
इस महान संगीतकार और गजल सम्राट को मेरी तरफ़ से भावभीनी श्रद्धाजंली । इनकी गजलो मे एक अलग ही जादू था ।

कुछ गजले मुझे बहुत ही पसंद है जो सदाबहार है उनमे से

1 ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी, मगर मुझको लौटा तो बचपन की यादे वो कागज की कश्ति वो बारिश का पानी

2 मुझको यकी है सच कहती थी जो भी अम्मी कहती थी

3 तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो क्या गम है जिनको छुपा रहे हो ।

malethia 10-10-2011 01:06 PM

Re: मशहूर ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह नहीं रहे.
 
जगजीत सिंह का निधन गजल गायकी की अपूरणीय क्षति है,
राजस्थान के ही एक शहर श्री गंगानगर में जन्मे जगजीत सिंह ने गजल गायकी में बहुत ऊँचा मुकाम हासिल किया है,जहां तक पहुँच पाना हर किसी के बस की बात नहीं है,अक्सर अपने जन्म दिवस के अवसर जगजीत सिंह अपनी जन्म स्थली पर प्रोग्राम किया करते थे !
ऐसे महान गायक को मेरा शत शत नमन.............

malethia 10-10-2011 01:12 PM

Re: मशहूर ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह नहीं रहे.
 
इस दुःख की घड़ी में जगजीत सिंह द्वारा गाई गयी स्वरांजली उन्ही को अर्पित है ...
हे राम



Gaurav Soni 10-10-2011 02:29 PM

Re: मशहूर ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह नहीं रहे.
 
ऐसे महान गायक को मेरा शत शत नमन.............

malethia 10-10-2011 03:11 PM

Re: मशहूर ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह नहीं रहे.
 
1 Attachment(s)


जगजीत सिंह
(8 फरवरी 1941- 10 अक्टूबर, 2011) एक बहुत लोकप्रिय गजल गायक थे। उनका संगीत काफ़ी मधुर है, और उनकी आवाज़ संगीत के साथ खूबसूरती से विलय होती है। खालिस उर्दू जानने वालों की मिल्कियत समझी जाने वाली, नवाबों-रक्कासाओं की दुनिया में झनकती और शायरों की महफ़िलों में वाह-वाह की दाद पर इतराती ग़ज़लों को आम आदमी तक पहुंचाने का श्रेय अगर किसी को पहले पहल दिया जाना हो तो जगजीत सिंह का ही नाम ज़ुबां पर आता है। उनकी ग़ज़लों ने न सिर्फ़ उर्दू के कम जानकारों के बीच शेरो-शायरी की समझ में इज़ाफ़ा किया बल्कि ग़ालिब, मीर, मजाज़, जोश और फ़िराक़ जैसे शायरों से भी उनका परिचय कराया।

malethia 10-10-2011 03:16 PM

Re: मशहूर ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह नहीं रहे.
 
जगजीत जी का जन्म 8 फरवरी 1941 को राजस्थान के श्री गंगानगर में हुआ था। पिता सरदार अमर सिंह धमानी भारत सरकार के कर्मचारी थे। जगजीत जी का परिवार मूलतः पंजाब के रोपड़ ज़िले के दल्ला गांव का रहने वाला है। मां बच्चन कौर पंजाब के ही समरल्ला के उट्टालन गांव की रहने वाली थीं। जगजीत का बचपन का नाम जीत था। करोड़ों सुनने वालों के चलते सिंह साहब कुछ ही दशकों में जग को जीतने वाले जगजीत बन गए। शुरूआती शिक्षा श्री गंगानगर के खालसा स्कूल में हुई और बाद पढ़ने के लिए जालंधर आ गए। डीएवी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली और इसके बाद कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया.
बहुतों की तरह जगजीत जी का पहला प्यार भी परवान नहीं चढ़ सका। बहुत ही मनमौजी किस्म के इंसान था जगजीत सिंह ! अपने उन दिनों की याद करते हुए वे कहते हैं, ”एक लड़की को चाहा था। जालंधर में पढ़ाई के दौरान साइकिल पर ही आना-जाना होता था। लड़की के घर के सामने साइकिल की चैन टूटने या हवा निकालने का बहाना कर बैठ जाते और उसे देखा करते थे। बाद मे यही सिलसिला बाइक के साथ जारी रहा। पढ़ाई में दिलचस्पी नहीं थी। कुछ क्लास मे तो दो-दो साल गुज़ारे.” जालंधर में ही डीएवी कॉलेज के दिनों गर्ल्स कॉलेज के आसपास बहुत फटकते थे। एक बार अपनी चचेरी बहन की शादी में जमी महिला मंडली की बैठक मे जाकर गीत गाने लगे थे। पूछे जाने पर कहते हैं कि सिंगर नहीं होते तो धोबी होते। पिता के इजाज़त के बग़ैर फ़िल्में देखना और टाकीज में गेट कीपर को घूंस देकर हॉल में घुसना आदत थी।

malethia 10-10-2011 03:18 PM

Re: मशहूर ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह नहीं रहे.
 
बचपन मे अपने पिता से संगीत विरासत में मिला। श्री गंगानगर मे ही पंडित छगन लाल शर्मा के सानिध्य में दो साल तक शास्त्रीय संगीत सीखने की शुरूआत की। आगे जाकर सैनिया घराने के उस्ताद जमाल ख़ान साहब से ख्याल, ठुमरी और ध्रुपद की बारीकियां सीखीं। पिता की ख़्वाहिश थी कि उनका बेटा भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में जाए लेकिन जगजीत पर गायक बनने की धुन सवार थी। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान संगीत मे उनकी दिलचस्पी देखकर कुलपति प्रोफ़ेसर सूरजभान ने जगजीत सिंह जी को काफ़ी उत्साहित किया। उनके ही कहने पर वे १९६५ में मुंबई आ गए। यहां से संघर्ष का दौर शुरू हुआ। वे पेइंग गेस्ट के तौर पर रहा करते थे और विज्ञापनों के लिए जिंगल्स गाकर या शादी-समारोह वगैरह में गाकर रोज़ी रोटी का जुगाड़ करते रहे। १९६७ में जगजीत जी की मुलाक़ात चित्रा जी से हुई। दो साल बाद दोनों १९६९ में परिणय सूत्र में बंध गए।

malethia 10-10-2011 03:22 PM

Re: मशहूर ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह नहीं रहे.
 


जगजीत सिंह फ़िल्मी दुनिया में प्लेबैक सिंगिंग (पार्श्वगायन) का सपना लेकर आए थे। तब पेट पालने के लिए कॉलेज और ऊंचे लोगों की पार्टियों में अपनी पेशकश दिया करते थे। उन दिनों तलत महमूद और रफी साहब जैसों के गीत लोगों की पसंद हुआ करते थे। रफ़ी-किशोर-मन्नाडे जैसे महारथियों के दौर में पार्श्व गायन का मौक़ा मिलना बहुत दूर था। जगजीत जी याद करते हैं, ”संघर्ष के दिनों में कॉलेज के लड़कों को ख़ुश करने के लिए मुझे तरह-तरह के गाने गाने पड़ते थे क्योंकि शास्त्रीय गानों पर लड़के हूट कर देते थे.” तब की मशहूर म्यूज़िक कंपनी h.m.v. (हिज़ मास्टर्स वॉयस) को लाइट क्लासिकल ट्रेंड पर टिके संगीत की दरकार थी। जगजीत जी ने वही किया और पहला एलबम ‘द अनफ़ॉरगेटेबल्स (१९७६)’ हिट रहा। जगजीत जी उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं, ”उन दिनों किसी सिंगर को एल पी (लॉग प्ले डिस्क) मिलना बहुत फ़ख्र की बात हुआ करती थी.” बहुत कम लोग जानते हैं कि सरदार जगजीत सिंह धीमान इसी एलबम के रिलीज़ के पहले जगजीत सिंह बन चुके थे। बाल कटाकर असरदार जगजीत सिंह बनने की राह पकड़ चुके थे। जगजीत ने इस एलबम की कामयाबी के बाद मुंबई में पहला फ़्लैट ख़रीदा था।

malethia 10-10-2011 03:30 PM

Re: मशहूर ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह नहीं रहे.
 
जगजीत सिंह ने ग़ज़लों को जब फ़िल्मी गानों की तरह गाना शुरू किया तो आम आदमी ने ग़ज़ल में दिलचस्पी दिखानी शुरू की लेकिन ग़ज़ल के जानकारों की भौहें टेढ़ी हो गई। ख़ासकर ग़ज़ल की दुनिया में जो मयार बेग़म अख़्तर, कुन्दनलाल सहगल, तलत महमूद, मेहदी हसन जैसों का था.। उससे हटकर जगजीत सिंह की शैली शुद्धतावादियों को रास नहीं आई। दरअसल यह वह दौर था जब आम आदमी ने जगजीत सिंह, पंकज उधास सरीखे गायकों को सुनकर ही ग़ज़ल में दिल लगाना शुरू किया था। दूसरी तरफ़ परंपरागत गायकी के शौकीनों को शास्त्रीयता से हटकर नए गायकों के ये प्रयोग चुभ रहे थे। आरोप लगाया गया कि जगजीत सिंह ने ग़ज़ल की प्योरटी और मूड के साथ छेड़खानी की। लेकिन जगजीत सिंह अपनी सफ़ाई में हमेशा कहते रहे हैं कि उन्होंने प्रस्तुति में थोड़े बदलाव ज़रूर किए हैं लेकिन लफ़्ज़ों से छेड़छाड़ बहुत कम किया है। बेशतर मौक़ों पर ग़ज़ल के कुछ भारी-भरकम शेरों को हटाकर इसे छह से सात मिनट तक समेट लिया और संगीत में डबल बास, गिटार, पिआनो का चलन शुरू किया..यह भी ध्यान देना चाहिए कि आधुनिक और पाश्चात्य वाद्ययंत्रों के इस्तेमाल में सारंगी, तबला जैसे परंपरागत साज पीछे नहीं छूटे।
प्रयोगों का सिलसिला यहीं नहीं रुका बल्कि तबले के साथ ऑक्टोपेड, सारंगी की जगह वायलिन और हारमोनियम की जगह कीबोर्ड ने भी ली। कहकशां और फ़ेस टू फ़ेस संग्रहों में जगजीत जी ने अनोखा प्रयोग किया। दोनों एलबम की कुछ ग़ज़लों में कोरस का इस्तेमाल हुआ। जलाल आग़ा निर्देशित टीवी सीरियल कहकशां के इस एलबम में मजाज़ लखनवी की ‘आवारा’ नज़्म ‘ऐ ग़मे दिल क्या करूं ऐ वहशते दिल क्या करूं’ और फ़ेस टू फ़ेस में ‘दैरो-हरम में रहने वालों मयख़ारों में फूट न डालो’ बेहतरीन प्रस्तुति थीं। जगजीत ही पहले ग़ज़ल गुलुकार थे जिन्होंने चित्रा जी के साथ लंदन में पहली बार डिजीटल रिकॉर्डिंग करते हुए ‘बियॉन्ड टाइम अलबम’ जारी किया।
इतना ही नहीं, जगजीत जी ने क्लासिकी शायरी के अलावा साधारण शब्दों में ढली आम-आदमी की जिंदगी को भी सुर दिए। ‘अब मैं राशन की दुकानों पर नज़र आता हूं’, ‘मैं रोया परदेस में’, ‘मां सुनाओ मुझे वो कहानी’ जैसी रचनाओं ने ग़ज़ल न सुनने वालों को भी अपनी ओर खींचा।
शायर बशीर बद्र जगजीत सिंह जी के पसंदीदा शायरों में हैं। निदा फ़ाज़ली के दोहों का एलबम ‘इनसाइट’ कर चुके हैं। जावेद अख़्तर के साथ ‘सिलसिले’ ज़बर्दस्त कामयाब रहा। लता मंगेशकर जी के साथ ‘सजदा’, गुलज़ार के साथ ‘मरासिम’ और ‘कोई बात चले’, कहकशां, साउंड अफ़ेयर, डिफ़रेंट स्ट्रोक्स और मिर्ज़ा ग़ालिब अहम हैं। जगजीत जी ने राजेश रेड्डी, कैफ़ भोपाली, शाहिद कबीर जैसे शायरों के साथ भी काम किया है।


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