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Dr.Shree Vijay 23-09-2013 10:07 PM

नवरात्रि पर्व.......................
 



भारतीय ज्योतिष और नवरात्रि पर्व...................




Dr.Shree Vijay 23-09-2013 10:09 PM

Re: नवरात्रि पर्व.......................
 



काल (समय) चक्र के विभाग अनुसार पूरे एक दिन-रात में चार संधिकाल होते हैं. जिनको हम प्रात:काल, मध्यान्ह काल, सांयकाल और मध्यरात्रि काल कहते हैं. जब हमारा एक वर्ष हो जाता है, तब देव-असुरों का एक दिन-रात होता है. जिसे कि ज्योतिष शास्त्र में दिव्यकालीन अहोरात्र कहा गया है...................




Dr.Shree Vijay 23-09-2013 10:11 PM

Re: नवरात्रि पर्व.......................
 



ये दिन-रात छ:-छ: माह के होते हैं. इन्ही को हम उतरायण और दक्षिणायन के नाम से जानते हैं. यहाँ ‘अयन’ का अर्थ है—मार्ग. उतरायण=उत्तरी ध्रुव से संबंधित मार्ग, जो कि देवों का दिन और दक्षिणायन=दक्षिणी ध्रुव से संबंधित मार्ग, जिसे देवों की रात्रि कहा जाता है...................




Dr.Shree Vijay 23-09-2013 10:12 PM

Re: नवरात्रि पर्व.......................
 



जिस प्रकार मकर और कर्क वृ्त से अयन(मार्ग) परिवर्तन होता है, उसी प्रकार मेष और तुला राशियों से उत्तर गोल तथा दक्षिण गोल का परिवर्तन होता है. एक वर्ष में दो अयन परिवर्तन की संधि और दो गोल परिवर्तन की संधियाँ होती है. कुल मिलाकर एक वर्ष में चार संधियाँ होती हैं. इनको ही नवरात्री के पर्व के रूप में मनाया जाता है....................




Dr.Shree Vijay 23-09-2013 10:13 PM

Re: नवरात्रि पर्व.......................
 



1. प्रात:काल (गोल संधि) चैत्री नवरात्र...........
2. मध्यान्ह काल (अयन संधि) आषाढी नवरात्र...............
3. सांयकाल (गोल संधि) आश्विन नवरात्र.......................
4. मध्यरात्रि (अयन संधि) पौषी नवरात्र...............................




Dr.Shree Vijay 23-09-2013 10:15 PM

Re: नवरात्रि पर्व.......................
 



उपरोक्त इन चार नवरात्रियों में गोल संधि की नवरात्रियाँ चैत्र और आश्विन मास की हैं, जो कि दिव्य अहोरात्र के प्रात:काल और सांयकाल की संधि में आती हैं—-इन्हे ही विशेष रूप से मनाया जाता है.....................




Dr.Shree Vijay 23-09-2013 10:15 PM

Re: नवरात्रि पर्व.......................
 



हालाँकि बहुत से लोग हैं, जिनके द्वारा अयन संधिगत (आषाढ और पौष) मास की नवारत्रियाँ भी मनाई जाती हैं, लेकिन विशेषतय: यह समय तान्त्रिक कार्यों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है—गृ्हस्थों के लिए गोल संधिगत नवरात्रियों का कोई विशेष महत्व नहीं है......................




Dr.Shree Vijay 23-09-2013 10:16 PM

Re: नवरात्रि पर्व.......................
 



जिन चान्द्रमासों में नवरात्रि पर्व का विधान है, उनके क्रमश: चित्रा, पूर्वाषाढा, अश्विनी और पुष्य नक्षत्रों पर आधारित हैं. वैदिक ज्योतिष में नाक्षत्रीय गुणधर्म के प्रतीक प्रत्येक नक्षत्र का एक देवता कल्पित किया हुआ है. इस कल्पना के गर्भ में विशेष महत्व समाया हुआ है, जो कि विचार करने योग्य है.......................




Dr.Shree Vijay 23-09-2013 10:17 PM

Re: नवरात्रि पर्व.......................
 



भारतीय ज्योतिष शास्त्र कालचक्र की संधियों की अभिव्यक्ति करने में समर्थ है. प्राचीन युगदृ्ष्टा ऋषि-मुनियों नें विभिन्न तौर-तरीकों से अभिनव रूपकों में प्रकृ्ति के सूक्ष्म तत्वों को समझाने के तथा उनसे समाज को लाभान्वित करने के अपनी ओर से विशेष प्रयास किए हैं........................




Dr.Shree Vijay 23-09-2013 10:18 PM

Re: नवरात्रि पर्व.......................
 



संधिकाल में सौरमंडल के समस्त ग्रह पिण्डों की रश्मियों का प्रत्यावर्तन तथा संक्रमण पृ्थ्वी के समस्त प्राणियों को प्रभावित करता है. अत: संधिकाल में दिव्यशक्ति की आराधना, संध्या उपासना आदि करने का ये विधान बनाया गया है.........................





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