दुनिया का सबसे विवादित मुद्दा,
दुनिया का सबसे विवादित मुद्दा, जिसके बारे में मजाक उड़ाते हैं हम
आज समलैंगिकता को लेकर धारणाएं काफी बदल चुकी हैं। कई देशों में समलैंगिकों के अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाले संगठन सामने आ चुके हैं। दुनिया के अनेकों देशों को बड़े-बड़े शहरों में लेस्बियन्स, गे, बाय-सेक्शुअल एंड ट्रांसजेंडर्स (एलजीबीटी) ग्रुप रैलियां करते हैं और परेड निकालते हैं, फिर भी भारत एवं अन्य परंपरागत देशों में इन्हें सामाजिक स्वीकृति नहीं मिली है। वैसे, कई वेस्टर्न कंट्रीज में समलैंगिक शादियों को मान्यता मिल चुकी है। अमेरिका जैसे देशों में समलैंगिकों के संगठन पॉलिटिकल प्रेशर ग्रुप बन चुके हैं, पर सच तो यह है कि अभी भी लगभग सभी जगहों पर समलैंगिकों का मजाक उड़ाया जाता है और उन्हें अनैतिक व बुरे चरित्र का माना जाता है। |
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सेक्स सायकॉलॉजिस्ट्स और एन्थ्रोलॉपॉजिस्ट्स ने अपने रिसर्च में यह पाया है कि होमोसेक्शुअलटी एक नेचुरल बिहैवियर है। यहां तक जानवरो में भी होमोसेक्शुअल ट्रेंड्स पाए गए हैं।
मशहूर विद्वान जी. हैमिल्टन ने बंदरों और लंगूरों के सेक्शुअल बिहैवियर की स्टडी करने के बाद पाया कि कम उम्र के बंदर एक ऐसे स्टेज से गुजरते हैं जब वे पूरी तरह से समलैंगिक होते हैं। एक अन्य विद्वान जुकरमेन ने अपने ऑब्जर्वेशन में यह पाया है कि समलैंगिकता की प्रवृत्ति नर बंदरों से ज्यादा मादा में पाई जाती है। वयस्क बंदरों में उभयलिंगी मैथुन (Bi-sexualism) की प्रवृत्ति आम पाई गई है |
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आदिम युग में जब सेक्स संबंधों को लेकर किसी तरह का नैतिक बोध और मानदंड विकसित नहीं हुआ था, तब होमोसेक्शुअल संबंध आम थे।
प्रसिद्द मानव-शास्त्री मार्गरेट मीड ने आदिम समाजों के अपने अध्य्यन में समलैंगिकता को एक सामान्य व्यवहार के रूप में रेखांकित किया है। ट्राइबल सोसाइटी में आज भी समलैंगिकता का काफी प्रचलन है और कई कबीलों में तो इससे जुड़े रिचुअल्स भी हैं। कुल मिलाकर ऐसे कई समाज हैं जहां होमोसेक्शुअलटी को लेकर कोई टैबू नहीं है। |
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प्राचीन महान सभ्यताओं में समलैंगिकता को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। लगभग पांच हजार साल पहले असीरिया में समलैंगिक संबंधों का प्रचलन था और इसे अस्वाभाविक अथवा काम-विकृति नहीं माना जाता था।
प्राचीन मिस्र में होरस और सेत जैसे प्रमुख देवताओं को समलैंगिक बताया गया है। प्राचीन यूनान में समलैंगिकता को सैनिक गुणों के साथ-साथ बौद्धिक, कलात्मक, सौंदर्यपूर्ण और नैतिक गुणों के लिए भी आदर्श माना गया। प्राचीन रोम में भी समलैंगिकता को बुरा नहीं माना जाता था |
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पुनर्जागरण काल में यूरोप में बहुत से विचारक, कलाकार, साहित्यकार, चिंतक और दार्शनिक समलैंगिक प्रवृत्ति के थे। दांते ने अपने गुरु लातिनी के बारे में लिखा है कि वह समलैंगिक थे।
प्रसिद्ध दार्शनिक रूसो ने लिखा है कि युवावस्था के दौरान उसमें समलैंगिक मैथुन के प्रति तीव्र आकर्षण था। मानवतावादी विचारक और कवि म्यूरे भी समलैंगिक थे और इस वजह से उनका जीवन खतरों से भरा था, क्योंकि उस वक्त समलैंगिकता उजागर हो जाने के बाद कठोर दंड का प्रावधान था। मध्यकाल यानी जिसे यूरोप में अंधकार का युग कहा जाता है, समलैंगिकों को जिंदा जला दिया जाता था। |
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