दलितों को सम्मान से जीने का हक़ कब मिलेगा?
दलितों को सम्मान से जीने का हक़ कब मिलेगा?
संसद और संसद के बाहर, सामाजिक व राजनैतिक मंचों पर कोई कितना भी आपसी भाईचारे और समभाव की बात करे, हकीकत यही है कि जात पात का ज़हर हमारे समाज की जड़ों तक पहुंचा हुआ है जिसे नारों से या क़ानून से ख़त्म नहीं किया जा सकता. हिन्दू धर्म के जिन ठेकेदारों ने जाति के आधार पर समाज का वर्गीकरण किया तथा ऊंच-नीच के कायदे कानून बनाये हैं, उन्हीं की सक्रिय तथा सच्ची पहल व भागीदारी से इसको दूर किया जा सकता है. संविधान तथा कानून के बड़े provisions होने के बावजूद दलितों का अपमान व उत्पीड़न जारी है. प्रतिदिन के अखबार तथा National Crime Records Bureau द्वारा समय समय पर जारी आंकड़े इस बात का प्रमाण है की दलितों के विरुद्ध होने वाली ज्यादतियों में कोई कमीं नहीं आ रही. बल्कि सच्चाई तो यह है कि ऐसे अपराधों में निरंतर वृद्धि नज़र आ रही है. इस सूत्र में हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे. |
Re: दलितों को सम्मान सहित जीने का अधिकार कब मि
दलितों को सम्मान सहित जीने का अधिकार कब मिलेगा?
महाराष्ट्र की स्थिति सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर तमाम प्रयासों के बावजूद दलितों पर अत्याचार की घटनाएं लगातार सामने आती रहती हैं. महाराष्ट्र सहित देश के कई राज्यों में पिछले साल दलितों के विरुद्ध हिंसा की घटनाओं में वृद्धि दर्ज की गई है. राज्य में दलित उत्पीड़न की स्थिति में कोई सुधार नहीं हो पाया है. ताजा आंकड़ों के मुताबिक पिछले डेढ़ साल में दलितों के विरुद्ध हिंसा के लगभग साढ़े तीन हजार मामले दर्ज किए गए. जारी हैं दलितों के खिलाफ अत्याचार इस साल केशुरुआती 6 महीने में ही महाराष्ट्र में 1100 से ज्यादा मामले दर्ज किए गएहैं. महाराष्ट्र के गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2015 मेंदलितों की हत्या के 97 जबकि बलात्कार के 331 मामले दर्ज किए गए. वहीं, इससाल जून के अंत तक बलात्कार के 142 और हत्या के 36 मामले सामने आ चुके हैं.राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के अनुसार 2015 में राज्यमें अनुसूचित जाति के सदस्यों के खिलाफ हुए अपराध के 1800 से ज्यादा मामलेदर्ज किये गए जबकि अनुसूचित जनजाति के खिलाफ होने वाले अपराधों की संख्यातब 483 थी. |
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कुछ अन्य राज्यों की स्थिति वैसे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार और आंध्र प्रदेश के मुकाबले महाराष्ट्र में दलित उत्पीड़न के मामले काफी कम हैं. 2015 में उत्तर प्रदेश में 8 हजार से ज्यादा मामले सामने आए जबकि राजस्थान में लगभग 7 हजार दलित उत्पीड़न के मामले दर्ज किए गए. दलित उत्पीड़न के लिहाज से बिहार की स्थिति भी अच्छी नहीं है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार यहां दलित उत्पीड़न के लगभग साढ़े छह हजार मामले दर्ज किए गए. गुजरात में दलित विरोधी घटनाओं में पिछले कुछ महीनों में तेजी आई है. खासतौर पर उना हमले के बाद मरे हुए जानवरों को उठाने से इनकार करने पर दलितों की पिटाई के मामले सामने आए हैं. |
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खैरलांजी हत्याकांड के 10 साल 29 सितम्बर 2006 को महाराष्ट्र के खैरलांजी में एक दलित परिवार के चार लोगों की क्रूरतापूर्ण हत्या कर दी गई थी. हत्या से पहले चारों सदस्यों को निर्वस्त्र कर घुमाया और उसके बाद उनके अंग काट डाले गए थे. इसके बाद पूरे राज्य में भड़के दलित आन्दोलन के बाद सरकार ने दलितों के विरुद्ध अत्याचार के मामलों को गंभीरता से लेने और त्वरित कार्रवाई का भरोसा दिलाया था. लेकिन पिछले 10 साल का रिकॉर्ड देखने से ऐसा नहीं लगता कि दलितों के विरुद्ध अपराध करने वालों में कानून का कोई भय है. दलित समुदाय के विजय वाहने कहते हैं कि सरकार दलित उत्पीड़न को रोक पाने में असफल रही है. विजय कहते हैं कि खैरलांजी जैसे मामले होते रहते हैं लेकिन दलित अब भी ऊंची जातियों के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने की हिम्मत नहीं करता. |
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सुप्रीम कोर्ट की चिंता वाजिब है सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि केंद्र और राज्य सरकारें अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों पर उत्पीड़न और उनके साथ होने वाले भेदभाव को रोकनेमें असफल रही हैं. खंडपीठ ने यह भी रेखांकित किया है कि वंचित तबके के अधिकारों की सुरक्षा के बिना समानता के संवैधानिक लक्ष्य हासिल नहीं किये जा सकते हैं. तमाम वैधानिक व्यवस्थाओं, दावों और वादों के बावजूद दलित और आदिवासी समुदायों के विरुद्ध अपराधों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. सामाजिक और आर्थिक कमजोरी की वजह से इन्हें अक्सर न्याय से भी वंचित रहना पड़ता है.सत्तर सालों के भारतीय लोकतंत्र पर यह वंचना निश्चित रूप से एक बड़ा सवाल है. आज अगर देश की आलातरीन अदालत की एक खंडपीठ, जिसकी अगुवाई खुद प्रधान न्यायाधीश कर रहे हों, न केवल तमाम राज्य सरकारों, बल्कि केंद्र सरकार की भी तीखी भर्त्सना करें कि वह वंचित-उत्पीड़ित तबकों की हिफाजत के लिए बने कानूनों के अमल में बुरी तरह असफल रही हैं और इसके लिए उनका ‘बेरुखी भरा नजरिया’ जिम्मेवार है, तो यह सोचा जा सकता है कि पानी किस हद तर सर के ऊपर से गुजर रहा है. |
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संबंधित संवैधानिक प्रावधान भारत में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के कल्याण के बारे में संविधान की अनुच्छेद 46 में वर्णन किया गया है. इसमें कहा गया है कि देश के कमजोर वर्गों, विशेषकर अनुसूचित जातियों और जनजातियों के आर्थिक व शैक्षणिक उत्थान अौर उन्हें शोषण व अन्याय से बचाने के लिए राज्य विशेष उपाय करेगा. संविधान के अनुच्छेद 244 (i) की पांचवीं अनुसूची में अनुसूचित जनजातियों की संख्या व क्षेत्र एवं अनुच्छेद 244 (ii) की छठवीं अनुसूची में असम में जनजातियों के क्षेत्र व इनके स्वायत्त जिलों का प्रावधान है. लेकिन, 1982 में अनुच्छेद 244 (ii) में संशोधन किया गया और इसमें शामिल स्वायत्त जिलों के प्रावधान को असम के बाहर नागालैंड, मणिपुर, सिक्किम जैसे दूसरे पूर्वोत्तर राज्यों पर भी लागू किया गया. त्रिपुरा में जनजातियों की स्वायत्त जिला परिषद् का गठन भी इसी संशोधन के आधार पर किया गया. संविधान के अनुच्छेद 17 के तहत अनुसूचित जातियों को लेकर व्याप्त अस्पृश्यता को समाप्त किया गया. अनुच्छेद 164 के तहत छतीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश और ओड़िशा जैसे राज्यों में जनजातियों के कल्याण की देख-रेख के लिए एक मंत्री नियुक्त करने का प्रावधान है. वहीं अनुच्छेद 275 में जनजाति कल्याण के लिए केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार को अनुदान देने का प्रावधान शामिल है. अनुच्छेद 330, 332 एवं 334 के तहत लोकसभा और राज्यों के विधानसभाओं में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण से संबंधित है. अनुच्छेद 335 के तहत जनजातियों को नौकरी एवं पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान है. अनुसूचित जाति-जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015 अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के विरुद्ध होनेवाले अपराधों को रोकने के लिए अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015 दिनांक 26 जनवरी 2016 से लागू है. अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 में संशोधन के लिए विधेयक को चार अगस्त, 2015 को लोकसभा तथा 21 दिसंबर, 2015 को राज्यसभा द्वारा पारित किया गया था. 31 दिसंबर 2015 को इसे राष्ट्रपति ने स्वीकृति दी थी. इसके बाद एक जनवरी, 2016 को इसे भारत के असाधारण गजट में अधिसूचित किया गया. |
Re: दलितों को सम्मान सहित जीने का अधिकार कब मि
बहुत ही जानकारीवर्धक सुत्र। बहुत ही जानकारीदायक सुत्र। भारत का सिर्फ विकासशील होना ही काफी नहीं है, उसे सभी स्तर की प्रजा के साथ उपर आना होगा।
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