क्रिकेटिया राजनीति का शिकार हुआ मजदूर का ê
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100 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले देश में अपनी अलग पहचान बनाना घास के ढेर में सुई ढूंढने जैसा ही मुश्किल काम है। अगर पहचान मिल भी जाए तो उसे बनाए रखना उससे भी बड़ी चुनौती होती है। फिल्मी पर्दे पर आने वाले कलाकार भले ही लंबे समय तक लोगों को याद रहें, लेकिन मैदान पर पसीना बहाने वाले खिलाड़ी महज एक चूक से ही लोगों की माइंड की पिक्चर से साफ हो जाते हैं। कुछ ऐसी मुश्किलों से जूझ रहे हैं आज के बर्थडे ब्वॉय उमेश यादव। महाराष्ट्र का विदर्भ क्षेत्र। देश के इस हिस्से की चर्चा अकसर किसानों की आत्महत्या से जोड़कर ही की जाती है। जहां दो समय की रोटी की जुगाड़ लगा पाना जिंदगी की पहली और सबसे अहम चुनौती होती है, अपनी मेहनत और लगन के दम पर नाम कमाने वाले उमेश इसी विदर्भ से ताल्लुक रखते हैं। मजदूर पिता की संतान उमेश आज अपना 26वां जन्मदिन मना रहे हैं। वर्तमान में भारतीय क्रिकेट टीम अदद तेज गेंदबाजों के अभाव से जूझ रही है। ऐसे में उमेश यादव का टीम में ना चुना जाना रणनीति है या राजनीति, यह एक बड़ा सवाल है। |
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उमेश कुमार तिलक यादव का जन्म 25 अक्टूबर 1987 को महाराष्ट्र के नागपुर शहर के पास स्थित वाल्ली गांव में हुआ। |
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वाल्ली खदानों में काम करने वाले मजदूरों का गांव है। यहां के युवा आमतौर पर या तो अपने पिता की तरह खदानों पर काम करने की सोचते हैं या छोटी-मोटी सरकारी नौकरी ढूंढकर अपनी लाइफ सुरक्षित करना चाहते हैं। उमेश के सपने जरा हटकर थे।
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एक इंटरव्यू के दौरान उमेश ने कहा था, "मैंने खेलना शुरू किया तो रुका ही नहीं। अबतक खेल ही रहा हूं। अपना पेट पालने के लिए सभी कुछ ना कुछ कर रहे हैं। यदि मैं क्रिकेट नहीं खेल रहा होता तो कुछ और करता।"
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उमेश विदर्भ में होने वाले टेनिस बॉल टूर्नामेंट में रफ्तारभरी गेंदें डाला करते थे। उनकी कला देखकर उनके दोस्त ने उन्हें चमड़े की गेंद वाले टूर्नामेंट में हिस्सा लेने की सलाह दी। उसी सलाह का नतीजा है कि आज उमेश विदर्भ की शान हैं।
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विदर्भ क्रिकेट एसोसिएशन के पास रजिस्ट्रेशन करवाते ही उमेश की गाड़ी चल निकली। संघ से जुड़ने के चंद महीनों बाद ही उनका चयन रणजी टीम में हो गया। अपने डेब्यू सीजन में उमेश ने 14.60 के औसत से 20 विकेट चटकाए।
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2008 के सीजन में ही उन्हें दुलीप ट्रॉफी खेलने का मौका मिला। सेंट्रल जोन से खेलते हुए उन्होंने राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण जैसे दिग्गजों को आउट करने का कारनामा कर दिखाया। पूत के पांव पालने में दिख चुके थे। अब दरकार थी नेशनल टीम से बुलावा मिलने की।
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दिसंबर 2011 में उन्होंने वेस्ट इंडीज के खिलाफ विशाखापट्टनम में हुए वनडे में 38 रन के खर्च पर 3 विकेट चटकाए। उसी सीरीज के टेस्ट मुकाबलों में उन्हें डेब्यू करने का मौका मिला। दिल्ली में हुए पहले टेस्ट में तो वे कुल 2 विकेट ले सके, लेकिन कोलकाता टेस्ट में 7 विकेट लेकर उन्होंने अपना दम दिखा दिया।
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