शेखचिल्ली
शेखचिल्ली
^ शेखचिल्ली नाम का पात्र सैकड़ों वर्षों सेहमारे जनमानस में समाया हुआ है. बीरबल और तेनाली राम के मजेदार किस्सों की तरह शेखचिल्ली के भी बहुत से किस्से भारतीय उप महाद्वीप में प्रचलित हैं. इन किस्से कहानियों पर गौर करेंगे तो हम पायेंगे कि यह एक सीधा सीधा पात्र है जो अपनी सहज बुद्धि से सोच कर हर समस्या का निदान करता है और उसका हल ढूँढने की अनोखी कोशिशें करता हुआ दिखाई देता है. इस कोशिश में वह बीरबल या तेनालीराम की तरह कुशाग्रबुद्धि या प्रत्युत्पन्नमति भले न दिखे लेकिन उपमहाद्वीप के बच्चों और बड़ों में लोकप्रियता के मामले में किसी से कम नहीं है. |
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शेखचिल्ली कैसे बने शेखचिल्ली? शेखचिल्ली के बारे में यही कहा जाता है कि उसका जन्म किसी गांव में एक गरीब शेख परिवार में हुआ था। पिता बचपन में ही गुजर गए थे, मां ने पाल-पोस कर बड़ा किया। मां सोचती थी कि एक दिन बेटा बड़ा होकर कमाएगा तो गरीबी दूर होगी। उसने बेटे को पढ़ने के लिए मदरसे में दाखिला दिला दिया। सब बच्चे उसे 'शेख' कहा करते थे। मौलवी साहब ने पढ़ाया, लड़का है तो 'खाता' है और लड़की है तो 'खाती' है । जैसे रहमान जा रहा है, रजिया जा रही है। एक दिन एक लड़की कुएं में गिर पड़ी। वह मदद के लिए चिल्ला रही थी। शेख दौड़कर साथियों के पास आया और बोला वह मदद के लिए चिल्ली रही है। पहले तो लड़के समझे नहीं। फिर शेखचिल्ली उन्हें कुएं पर ले गया। उन्होंने लड़की को बाहर निकाला। वह रो रही थी। शेख बार-बार समझा रहा था- 'देखो, कैसे चिल्ली रही है। ठीक हो जाएगी। किसी ने पूछा- 'शेख! तू बार-बार इससे 'चिल्ली-चिल्ली क्यों कह रहा है? शेख बोला- 'लड़की है तो 'चिल्ली' ही तो कहेंगे। लड़का होता तो कहता चिल्ला मत। लड़कों ने शेख की मूर्खता समझ ली और उसे 'चिल्ली-चिल्ली' कहकर चिढ़ाने लगे। उसका तो फिर नाम ही 'शेखचिल्ली हो गया। असल बात फिर भी शेख चिल्ली की समझ में न आई। न ही उसने नाम बदलने का बुरा माना। |
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कुत्ते खुल्ले घूम रहे हैं और ईंट को बाँध रखा है एक बार शेख़ चिल्ली किसी रिश्तेदार से मिलने पड़ौस के गाँव में जा रहा था. एक अजनबी को अजीब सी वेशभूषा में जाते हुये देख कर उस गाँव के कुछ आवारा कुत्ते शेखचिल्ली के पीछे पड़ गये और भौंकने लगे. थोड़ी देर तक तो वह सहन करता रहा. लेकिन जब कुत्ते नहीं रुके तो उन्हें भगाने के लिये शेखचिल्ली ने उन्हें मारने के लिये जमीन से पत्थर उठाया. लेकिन पत्थर आधा जमीन में दबा होने के कारण उससे उठाया नहीं गया. दस कदम आगे जा कर उसे एक ईंट दिखाई दी. ईंट को उठाने के लिये उसने अपना हाथ बढ़ाया. लेकिन ईंट भी जमीन में दबी थी, सो उससे नहीं उठाई गई. कुत्ते उसका पीछा न छोड़ रहे थे. शेख़ चिल्ली को क्रोध आ गया. वह कहने लगा, “इस गाँव के लोग भी अजीब हैं. कुत्तों जैसे जानवर को खुल्ला छोड़ रखा है और ईंट - पत्थर, जिन्हें खुल्ला रखना चाहिये, उन्हें बाँध कर रखा गया है. |
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शेखचिल्ली
^ चिट्ठी शेख़चिल्ली की सौजन्य - डॉ. महाराज कृष्ण जैन शुभ तारिका जी बच्चो, तुमने मियाँ शेख चिल्ली का नाम सुना होगा। वही शेख चिल्ली जो अकल के पीछे लाठी लिए घूमते थे। उन्हीं का एक और कारनामा तुम्हें सुनाएँ। मियाँ शेख चिल्ली के भाई दूर किसी शहर में बसते थे। किसी ने शेख चिल्ली को बीमार होने की खबर दी तो उनकी खैरियत जानने के लिए शेख ने उन्हें खत लिखा। उस जमाने में डाकघर तो थे नहीं, लोग चिट्ठियाँ गाँव के नाई के जरिये भिजवाया करते थे या कोई और नौकर चिट्ठी लेकर जाता था। लेकिन उन दिनों नाई उन्हें बीमार मिला। फसल कटाई का मौसम होने से कोई नौकर या मजदूर भी खाली नहीं था अत: मियाँ जी ने तय किया कि वह खुद ही चिट्ठी पहुँचाने जाएँगे। अगले दिन वह सुबह-सुबह चिट्ठी लेकर घर से निकल पड़े। दोपहर तक वह अपने भाई के घर पहुँचे और उन्हें चिट्ठी पकड़ा कर लौटने लगे। उनके भाई ने हैरानी से पूछा - अरे! चिल्ली भाई! यह खत कैसा है? और तुम वापिस क्यों जा रहे हो? क्या मुझसे कोई नाराजगी है? भाई ने यह कहते हुए चिल्ली को गले से लगाना चाहा। पीछे हटते हुए चिल्ली बोले - भाई जान, ऐसा है कि मैंने आपको चिट्ठी लिखी थी। चिट्ठी ले जाने को नाई नहीं मिला तो उसकी बजाय मुझे ही चिट्ठी देने आना पड़ा। भाई ने कहा - जब तुम आ ही गए हो तो दो-चार दिन ठहरो। शेख चिल्ली ने मुँह बनाते हुए कहा - आप भी अजीब इंसान हैं। समझते नहीं। यह समझिए कि मैं तो सिर्फ नाई का फर्ज निभा रहा हूँ। मुझे आना होता तो मैं चिट्ठी क्यों लिखता? |
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शेखचिल्ली ^ जब शेखचिल्ली के खुरपे को बुखार हुआ एक बार घरवालों ने शेखचिल्ली को घास खोदने के लिए जंगल भेज दिया। दोपहर तक उसने एकगट्ठर घास खोद ली और गट्ठर उठाकर घर चला आया। घरवाले बड़े खुश हुए। पहली बार शेखचिल्ली ने कोई काम किया था। परंतु जब कई घंटे बीच गए तब शेखचिल्ली को याद आया कि घास खोदने के लिए जिस खुरपे को वह ले गया था, वह तो वहीं रह गया है, जहाँ उसने घास खोदी थी। तेज धूप में पड़ा-पड़ा खुरपा गर्म हो गया था। चिल्ली ने चिलचिलाती धूप में पड़ा हुआ अपना गर्म तवे-सा तपता खुरपा मूठ से पकड़ा लेकिन मूठ भी गर्म हो चुकी थी। शेखचिल्ली घबरा गया। ‘अरे! खुरपे को तो बुखार चढ़ गया है।’ मन-ही-मन चिल्ली मुस्कुराता हुआ हकीम साहब के पास पहुंचा और बोला, ‘हकीम साहब, हमारे खुरपे को बुखार हो गया है। जरा दवाई दे दीजिए।’ हकीम साहब समझ गए किशेखचिल्ली शरारत कर रहा है। उन्होंने वैसा ही उत्तर दिया, ‘अरे हाँ, वाकई इसे तो बुखार है। जाओ जल्दी से इसे रस्सी से बाँधकर कुएँ में लटकाकर डुबकी लगवा दो।तब भी बुखार न उतरे तो इसे मेरे पास ले आना।’ शेखचिल्ली चला गया। >>> |
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शेखचिल्लीने रस्सी ने खुरपा बाँधा और उसे कुएँ में लटकाकर खूब गोते लगवाया। थोड़ी देर बादउसने उसे ऊपर खींचा। खुरपा ठंडा हो चुका था। चिल्ली ने हकीम साहब को धन्यवाद दिया।
संयोगवश एक दिन हकीम साहब के दूर की एक रिश्तेदार को तेज बुखार हो गया था।वह बूढ़ी उन्हीं से अक्सर दवाई लेने आती थी। वह शेखचिल्ली के पड़ोस में रहतीथी। चिल्ली ने देखा कि तेज बुखार से तपती हुई उस सत्तर वर्ष की बुढ़िया कोलोग हकीम साहब के पास ले जाना चाहते हैं। शेखचिल्ली को शरारत सूझी। उसनेहकीम साहब को बताया हुआ नुस्खा उन्हें बताते हुए कहा कि, ‘हकीम साहब जो वहाँबताएँगे, मैं यहीं बताए देता हूँ। दादीजान को तेज बुखार है। यह गरम खुरपे-सी तप रहीहै। इसका सबसे अच्छा इलाज यह है कि इन्हें किसी कुएँ या तालाब में खूब अच्छी तरहडुबकी लगवाओ। बुखार नाम की चीज सदा के लिए दूर हो जाएगी। यह तरकीब मुझे हकीम साहबने खुद बताई थी।’ लोगों ने शेखचिल्ली की बात मान ली और बुढ़िया को एक पीढ़ेपर बैठाकर रस्सियों से बाँधकर कुएँ में लटका दिया। कुएँ के पानी में बुढ़िया को खूबडुबकियाँ लगवाई गईं। कई डुबकियाँ लगवाने के बाद जब बुढ़िया को बाहर निकाला गया तोवह ठंडी पड़ चुकी थी। >>> |
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शेख़चिल्ली
https://encrypted-tbn2.gstatic.com/i...xY1U8NAmGtVXo4 <<< उसके प्राण-पखेरू उड़ गए थे। लोग शेखचिल्ली पर बिगड़उठे। बुढ़िया के घरवालों ने गुस्से में कहा, ‘तुमने तो दादीजान को मार ही दिया।’ शेखचिल्ली बोला, ‘मियाँ, मैंने केवल बुखार की गारंटी ली थी। अच्छी तरह देख लो, बुखार उतर गया है या नहीं।’ हकीम साहब का नुस्खा गलत नहीं है। यह उन्हीं कीबताई हुई तरकीब है। खुद जाकर पूछ लो। तरकीब गलत होती तो इस बुढ़िया का बुखार नउतरता।’ लोग हकीम साहब के पास गए। हकीम साहब से पूछा गया तो उन्होंने चिल्ली केखुरपे के बुखार वाली बात बताते हुए कहा कि उन्होंने गर्म खुरपे को ठंडा करने के लिएचिल्ली को तरकीब बताई थी। बुढ़िया को बुखार था। उसे पानी में नहीं डुबाना चाहिए था।वह इंसान थी, खुरपा नहीं। शेखचिल्ली पर इस घटना के कारण घरवालों की बहुत डाँटपड़ी। ** |
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शेखचिल्ली का नाम किस तरह पड़ा मुझे मालूम नहीं था ,आपने शेखचिल्ली का परिचय बेखूबी से कराया, शेखचिल्ली की कहानियो से मनोरजन कराने के लिए धन्यवाद
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मज़ेदार ज्ञानवर्धक कथाओ का भण्डार......... |
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