कुछ अधूरी कहानिया :.........
इस सूत्र में आप पायेंगे कुछ ज्वलंत संजीदा कथाओ का संग्रह : |
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इसी कड़ी में प्रस्तुत हें प्रथम मार्मिक सत्य कथा : छोटी बहु : http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1403160618 |
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छोटी बहु : दीनानाथ अब गाँव बाजार में सीना तान के चलने लगा था, क्यों न चले, बेटे की शादी दुबारा जो कर ली थी उसने, वो अलग बात है की पहली वाली बहू अब उनके पास नहीं थी, उसका बेटा हर्ष भी नयी दुल्हन मनीषा के साथ आनंद और हर्ष के साथ दिन काट रहा था और घरवाले नयी दुल्हन और हर्ष को चिढ़ा-चिढ़ा कर मजे ले रहे थे, जो घर मेले के तरह कई दिनों से शोर शराबे से गूंझ रहा था, वहां अब मेले अंत की तरह शोर और उत्साह कम होता जा रहा था, इस भरे परिवार के बीच में नयी दुल्हन मनीषा कभी अकेलापन महसूस करती तो कभी अपने आप को मेले में खड़ा महसूस करती. एक अच्छे घर की बेटी की तरह उसने अपने सारे दुःख और सुख इस परिवार के साथ बाँटने शुरू कर दिए| लेकिन जैसे जैसे समय बीत रहा था एक डर उसके दिल में अपनी जगह बनाता जा रहा था, और क्यों न हो जिन लोगों को वो भगवान की तरह पूज रही थी वो इस काबिल थे नहीं, जो सच उसे अपने ससुराल वालों के बारे में शादी से पहले पता न थे वो धीरे धीरे उसे पता चल रहे थे और उसका अकेलापन बढ़ा रहे थे| और सच भी तो कुछ ऐसे ही थे, दीनानाथ रूढ़ समाज में जीने वाला जिसकी दो पत्नियाँ थी, एक का तो अभी अभी १-२ साल पहले ही देहांत हुआ था और हर्ष उसी का बेटा था, हर्ष की भी ये दूसरी शादी थी, शादी करना और करवाना शायद दीनानाथ के लिए एक खेल हो गया था, हर्ष की पहली बीबी को दीनानाथ और उसकी बीबी ने सता सता के भाग जाने को मजबूर कर दिया था, एक और बेटा था जो अच्छी जिंदगी जी रहा था, सही कमाता था और उसके ससुराल से खुश रहने का सामान भी काफी मिला था| मनीषा का डर बढ़ता जा रहा था कभी कम भी हो जाता था जब घर वाले प्यार जता देते थे, लेकिन समय के साथ वो प्यार रूखेपन में बदलने लगा, शादी गर्मियों में हुयी थी तब घर का मौसम ठंडा था लेकिन अब सर्दियाँ आने को हो रही थी तो उसकी बजह से घर का मौसम गर्म होने लगा था, जेठानी और सास के फरमान बढ़ने लगे थे, मनीषा उन सब का दिल अपने काम से जीतने की कोशिश करने लगी लेकिन जो लोग घर आने वाली नयी बहू को दहेज़ का पिटारा समझते हों उनके लिए काम और इज्जत कहाँ माईने रखती है :......... __________________________________________________ ____ अधूरी कहानी के सौजन्य से :......... |
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छोटी बहु : बरसात का मौसम जोरों पर था और ससुराल वालों के ताने मेंढक की टर्र टर्र से तेज होते जा रहे थे, मनीषा खुद को ससुराल में तो कभी महसूस ही नहीं कर पाई, सपने टूट जाने के बाद भी खुश रहने की कोशिश कर रही थी लेकिन, अब तो हद हो गयी थी हर्ष ने भी उसका साथ छोड़ दिया था उसने भी कभी उसके साथ सहानूभूति नहीं जताई, ये वक्त हमें तोड़ के रख देता जब वही इंसान हमारे बारे में नहीं सोचता जिसके लिए हम सारी दुनिया छोड़ देते है और कैसा वो इन्सान होता है जो ये भूल जाता है की कोई मुसाफिर दूर देश से चल कर सिर्फ ओर सिर्फ उसी के लिए आया है, इंसान का दर्द तब हद से बढ़ जाता है जब उसके पास दर्द बाँटने वाला कोई नहीं रह जाता, वही हाल मनीषा का था, न बाहर वालों से अपना दर्द बाँट सकती थी न अपने माईके वालों से, गरीब जो थे, सिर्फ बड़ा घर देख कर कुछ जाने बिना अपने बेटी की शादी कर दी, अब उसकी रातें करवटों में और दिन अंधेरो में गुजरने लगे| कुछ और समय बीत गया, उसकी सारी कोशिशें नाकाम हो गयी, घर वालों ने उसके लिए प्यार को नौकरी से निकाल देने का फैसला कर लिया था शायद, झुंझलाहट और अकेलेपन से उसकी हालत पतझड़ के पेड़ की तरह हो गयी, काफी कमजोर हो गयी थी वो होती कैसे नहीं, अब तानो के साथ साथ सास और जेठानी से घुसे भी मिलने लगे थे वो भी फ्री ऑफ़ कास्ट, दूसरी और उसकी जेठानी के ठाट देखिये महारानी पैर पे पैर रख कर मजे लेती थी और मनीषा को इतना सब करने के बाद सूखी रोटियां खानी पड़ती थी और कभी तो भूखे पेट भी सोना पड़ता था ये सब उसके साथ शायद इसलिए हो रहा था क्योंकि वो अपनी जेठानी की तरह दहेज़ का पिटारा साथ नहीं लायी थी, कैसे जीते है लोग ऐसे समाज में जहा बेटी और बहू को एक नजर से नहीं देखा जाता, जहाँ बहू को सिर्फ गरीबी मिटाने और दहेज़ पाने का जरिया समझा जाता है :......... __________________________________________________ ____ अधूरी कहानी के सौजन्य से :......... |
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छोटी बहु : दो घंटे बीत गए मनीषा को करवट बदलते बदलते, आखिरकार उसने हर्ष को जगाने के लिए उसने हाथ बड़ा ही लिया| "सुनो" मनीषा ने हर्ष को हिलाते हुए कहा| मगर वो बेहोश सोता रहा| "क्या हुआ? क्यों शोर मचा रही हो" मनीषा की काफी कोशिशों के बाद हर्ष ने करवट बदलते हुए कहा| "दर्द हो रहा मुझे" मनीषा दर्द में बिलखती हुई बोली| "उधर दवाई पड़ी है ले लो" हर्ष ने लापरवाही से कहा| "ठीक है पर सुबह डॉक्टर के पास तो ले जावोगे ना" मनीषा को महसूस हुआ की उसका ये दर्द काफी बड़ा है, वो दवाई उठाने चारपाई से उठते हए बोली| "पागल हो गयी, इतनी छोटी से बात के लिए डॉक्टर के पास नहीं जाते" हर्ष ने ये जाने बगैर की मनीषा को दर्द कितना है अपनी बात कह दी, और दूसरी और करवट बदल कर सो गया, मनीषा पांच मिनट तक उसे लाचारी से देखती रही फिर अपनी दवाई ली और कई देर तक करवटें लेने के बाद उसे भी नींद आ गयी, उसने अपने दर्द को गंभीरता से लिया तो था लेकिन उससे कई बड़े घाव देने वाला था उसका ये दर्द उसे| सुबह मनीषा को फिर से दर्द महसूस होने लगा कई देर तक आनाकानी चलती रही उसे डॉक्टर के पास ले जाने के लिए, मगर जब पानी सर से ऊपर हो गया तो उसे पास के डॉक्टर के पास ले जाया गया| खबर अच्छी थी, वो माँ बनने वाली थी| मगर डॉक्टर की माने तो उसकी हालत बच्चे को जन्म देने लायक थी ही नहीं, उसका शरीर एकदम सूखी बेल की तरह हो गया था :......... __________________________________________________ ____ अधूरी कहानी के सौजन्य से :......... |
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छोटी बहु : "बहू को खाना नहीं देते क्या" डॉक्टर ने दीनानाथ और उसकी बीबी सरला पैनी नजर से देखा| "नहीं बेटा, खाती नहीं है" दोनों एक सुर में बोले| डॉक्टर ने कागज का टुकड़ा लिया कुछ लिखा और बोला "ये लो ये दवाइयां और खुराक बहू को जरूर खिला देना और हाँ ज्यादा काम मत करने देना"| डॉक्टर की बात सुनके दोनों ने उसे ऐसे घूरे जैसे वो एक फैक्ट्री के मालिक हो और डॉक्टर ने मजदूरों को छुट्टी पर भेजने के लिए कह दिया हो फिर मनीषा उनके लिए मजदूर से कम तो थी नहीं, फिर भी दोनों ने झूठी हाँ में सर हिलाया और घर की और चल दिए| ये उस घर में रहने वालों के लिए नहीं बाहर वालों के लिए ख़ुशी की खबर थी और मनीषा के लिए भी नहीं, जहाँ वो मर जाने का फैसला करने वाली थी नयी मुसीबत उसके गले आ गयी थी, वो जिस दुनिया में खुद नहीं जीना चाहती थी वह अपने बच्चे को कैसे जन्म दे सकती थी, उसके लिए अब वो समय आ गया था जब वो जी भी नहीं पा रही थी और मर भी नहीं सकती थी| लेकिन एक उम्मीद काफी होती है जीने के लिए, ये बच्चा उसके लिए उम्मीद बन के आ रहा था| हाँ दिक्कतें बहुत थी, सास ससुर ने डॉक्टर के पास सर तो हिला दिया था लेकिन न उसे दवाइयां लाकर दी और न काम से दूर रखा| हाँ नया ताना जरूर मिल गया था उन्हें उसे सुनाने के लिए " कामचोर को नया बहाना मिल गया" ख़ुशी आने से पहले एक और दर्द मनीषा के दिल पे पत्थर मार के चला गया, उसका बच्चा होने से पहले हर्ष शहर को चला गया, क्या गुजारी होगी उसके दिल पर जब उसे हर्ष की सबसे ज्यादा जरूरत थी वो उसे छोड़ के चला गया, आखिर वो दिन आ ही गया| घर में फिर से बधाइयों का ताँता लगा गया, लोग बधाइयाँ देते और सरला कहती "काहे की ख़ुशी, ये तो पहले ही कंगाल कर गया हमें" :......... __________________________________________________ ____ अधूरी कहानी के सौजन्य से :......... |
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छोटी बहु : घर वालों के चहरे पर झूठी ख़ुशी दिखाई देने लगी, मनीषा को शायद शादी के बाद पहली बार कुछ ख़ुशी मिली थी, एक उम्मीद जग गयी थी दिल में उसके, लेकिन ये क्या ऊपर वाले गम का नया पत्थर उसके ऊपर फेकने वाला था, ये कहें कि फैंक चुका था लेकिन उसे अहसास देर में हुआ, उस रात ही उसे पता चला कि उसका अभी अभी जन्मा बेटा रोहित, अपंग है| वो उस लाखों हजारों महिलाओं कि भीड़ में शामिल हो गयी थी जो अपंग बच्चों को जन्म देते है, वो मजबूर होते हैं, आवाज नहीं उठा पाते, और हम उनकी मजबूरी को कभी समझ नहीं पाते और न कोशिश करते| और क्या उस बच्चे की गलती होती है जो जन्म लेने से पहले ही इस समाज के गलत बर्ताव की बजह से अपंग हो जाता है, हमे क्या हक़ है, अपने रूढ़ परम्पराओं और गलत विचारों से किसी की जिंदगी बर्बाद करने का| वो रात मनीषा के लिए क़यामत ले के आ गयी थी, मुश्किलों से लड़ने के लिए जिस चीज पे आस लगायी थी वो ही उसे बे आस कर के चली गयी, उसके सपने, बीते पल एक फ्लेश बेक की तरह उसकी आँखों में चलने लगे, शायद वो हर उम्मीद खो चुकी थी, उसे लगा जिस समाज में वो नहीं जी पाई उस समाज में उसका अपंग बच्चा कैसे लडेगा :......... __________________________________________________ ____ अधूरी कहानी के सौजन्य से :......... |
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छोटी बहु : उसने एक बहुत बड़ा फैसला कर लिया था आखरी फैसला अपने आप को मिटाने का और साथ में अपने बच्चे को भी| वो बच्चे के पास लेट गयी उसे गले लगाया, बाहर सन्नाटा था और कमरा उसकी सिसकियों से गूंज रहा था, मनीषा ने शरीर में खड़े होने की ताकत तो नहीं थी फिर भी मनीषा ने अपनी मौत के लिए कुछ सामान जुटा ही लिया एक रस्सी और एक कनस्तर, मरने के लिए क्या चाहिए इन्सान को, बस दो चीजें| रस्सी को छत पर बांधने के लिए ऊपर तो चढ़ी मगर सही से उतर नहीं पाई लेकिन उसने अपनी मौत का इंतजाम पूरा कर लिया था| पहले इस जहाँ से विदा लेने की बारी रोहित की थी, वो फिर खड़ी हुयी, लड़खड़ाते हुए रोहित की ओर बड़ी मगर उसके शरीर ने उसका साथ नहीं दिया वो जोर से लड़खड़ाकर दीवार पे जा गिरी और इस बार ऐसे गिरी की फिर उठ न पायी, कुछ देर तक उसकी सिसकियाँ कमरे में गूंज रही थी मगर थोड़ी देर में सन्नाटा छा गया मनीषा हमेशा के लिए खामोश हो गयी| उसका कोई सपना पूरा नहीं हो पायी और न आखरी काम वो रोहित को नहीं मार पायी शायद अब रोहित को इस समाज से लड़ना था| दीनानाथ का घर एक बार फिर शोर से भर गया कहीं झूठी सिसकियाँ तो कही अपने ही हाथों से किये खून पे रोने की आवाजें, सही तो था मनीषा ने आत्महत्या नहीं उसे तो समाज ने मारा था दीनानाथ के घरवालों ने मारा था. लेकिन मनीषा की मौत से घर में कुछ तो बदल गया था ये मजबूरी थी या फिर प्यार लेकिन जो भी था अच्छा था, दीनानाथ और उसकी पत्नी सरला ने रोहित को अपने गले लगा लिया था, अब तो कई बार रोहित की बजह से बड़ी बहू सुषमा को भी डांटने लगे थे :......... __________________________________________________ ____ अधूरी कहानी के सौजन्य से :......... |
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छोटी बहु : घर के नौकरानी मर चुकी थी, घर का काम अब सुषमा को करना पड़ता था तो सास बहू के झगड़े बढ़ने लगे, सास बहू का पुराना गठबंधन टूट गया, वो क्यों सुनती अपनी सास की वो तो दहेज़ का पिटारा लेकर आई थी, और दोनों बेटे घर आये और दोनों ने हमेशा ही अपनी माँ बाप को गलत बताया, कभी साथ नहीं दिया उनका, दीनानाथ और सरला को मनीषा की कमी महसूस होने लगी, फिर एक दिन आया की घर सूना हो गया सास बहू का झगडा बढ़ गया और बच्चे परदेश को चले गए हर्ष ने भी उन का ही साथ दिया और रोहित को छोड़ कर परदेश चला गया| सारा घर सूना हो गया, रह गए तो सिर्फ दीनानाथ, सरला, अपंग पोता और उनके बुरे कर्म, वो बुरे कर्म जो अब हर बार उन्हें अहसास दिला रहे थे कि वो कितने बुरे थे| सात साल बीत गये लेकिन उनके बच्चे लौट कर नहीं आये, लेकिन फिर भी दोनों ने जीने का जरिया संभाल के रखा था उनका पोता, लेकिन शायद उनकी हैवानियत का कर्ज अभी अदा नहीं हुआ था| दोपहर का समय था, दीनानाथ और सरला घर के किसी कोने मैं बैठ कर अपने आज और कल की बातें कर रहे थे, अचानक कुछ जलने की बू दोनों को लगी, दोनों को लगा शायद बाहर कुछ जल रहा है, मगर जब कुछ आवाजें भी आने लगी तो दोनों घर से बहार को झांके, तो वो क्या नजारा था आग बाहर नहीं उन्ही के घर को जला रही थी, इससे पहले की दोनों कुछ कर पाते आग ने सारे घर को चपेट में ले लिया :......... __________________________________________________ ____ अधूरी कहानी के सौजन्य से :......... |
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