"दीमकों से चमन को कैसे बचायें?" :.........
" साभार " एक बढ़िया कविता " दर्द " भरी " : "दीमकों से चमन को कैसे बचायें?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) http://hindi.pardaphash.com/uploads/...660/118576.jpg |
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" साभार " एक बढ़िया कविता " दर्द " भरी " : "दीमकों से चमन को कैसे बचायें?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) http://hindi.pardaphash.com/uploads/...660/105514.jpg दीमकों से चमन को कैसे बचायें? मोतियों की फसल को कैसे उगायें? अन्न को घुन मुक्त होकर चर रहे हैं, माल को परदेश में वो भर रहे हैं, दरिन्दे बेखौफ हरकत कर रहे हैं, बालिकाएँ और बालक डर रहे हैं, हम बदन के कोढ़ को कैसे मिटायें? मोतियों की फसल को कैसे उगायें? |
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" साभार " एक बढ़िया कविता " दर्द " भरी " : "दीमकों से चमन को कैसे बचायें?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) http://www.janatantra.com/news/wp-co...iament-400.jpg कोयला-लक्कड़ व पत्थर खा रहे हैं, मुल्क में गद्दार बढ़ते जा रहे हैं, कुर्सियों पर बोझ बनकर छा रहे हैं, सुख यहाँ काले फिरंगी पा रहे हैं, अब सरोवर को विमल कैसे बनायें? मोतियों की फसल को कैसे उगायें? |
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" साभार " एक बढ़िया कविता " दर्द " भरी " : "दीमकों से चमन को कैसे बचायें?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) http://images.jagran.com/images/29_0...parliament.jpg शाख अपनी धूल में हमने मिला दी, खो चुकी है आज अपनी शान खादी, कह रही हिन्दोस्ताँ की आज दादी, अब लुटेरों की बनी पहचान खादी, चैन की वंशी यहाँ कैसे बजायें? मोतियों की फसल को कैसे उगायें? |
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" साभार " एक बढ़िया कविता " दर्द " भरी " : "दीमकों से चमन को कैसे बचायें?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) http://aankhodekhi.com/wp-content/up.../lok-sabha.jpg हम भुलाने में लगे हैं धर्म और ईमान को, लूटने में हम लगे हैं राम-को रहमान को, छोड़ बैठे आज हम परिवेश के परिधान को, हो गया है आज क्या अच्छे-भले इन्सान को, सभ्यता का पाठ अब कैसे पढ़ायें? मोतियों की फसल को कैसे उगायें? |
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" साभार " एक बढ़िया कविता " दर्द " भरी " :
"दीमकों से चमन को कैसे बचायें?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) दीमकों से चमन को कैसे बचायें? मोतियों की फसल को कैसे उगायें? अन्न को घुन मुक्त होकर चर रहे हैं, माल को परदेश में वो भर रहे हैं, दरिन्दे बेखौफ हरकत कर रहे हैं, बालिकाएँ और बालक डर रहे हैं, हम बदन के कोढ़ को कैसे मिटायें? मोतियों की फसल को कैसे उगायें? कोयला-लक्कड़ व पत्थर खा रहे हैं, मुल्क में गद्दार बढ़ते जा रहे हैं, कुर्सियों पर बोझ बनकर छा रहे हैं, सुख यहाँ काले फिरंगी पा रहे हैं, अब सरोवर को विमल कैसे बनायें? मोतियों की फसल को कैसे उगायें? शाख अपनी धूल में हमने मिला दी, खो चुकी है आज अपनी शान खादी, कह रही हिन्दोस्ताँ की आज दादी, अब लुटेरों की बनी पहचान खादी, चैन की वंशी यहाँ कैसे बजायें? मोतियों की फसल को कैसे उगायें? हम भुलाने में लगे हैं धर्म और ईमान को, लूटने में हम लगे हैं राम-को रहमान को, छोड़ बैठे आज हम परिवेश के परिधान को, हो गया है आज क्या अच्छे-भले इन्सान को, सभ्यता का पाठ अब कैसे पढ़ायें? मोतियों की फसल को कैसे उगायें? https://lh4.googleusercontent.com/cj...w154-h192-p-no |
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सत्य परिपूर्ण कविता
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आज के भ्रष्ट राजनेताओं पर प्रहार करती हुयी एक बढ़िया कविया.
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