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Rajat Vynar 13-10-2014 05:41 PM

आत्मरतिक/Narcissist
 
त्मरतिक होना एक प्रकार की मानसिक बीमारी ही है. आत्मरतिक को अंग्रेज़ी में Narcissist कहते हैं. इन्हें पहचानने का पहला सूत्र यह है कि इनके पास परानुभूति अर्थात Empathy का अभाव होता है. इसके अतिरिक्त ये सिर्फ अपनी ही प्रशंसा सुनना पसन्द करते हैं. ये दूसरों की प्रशंसा कर ही नहीं सकते. इन्हें अपनी हर गलत बात भी सही लगती है. ये दूसरों का परामर्श किसी हालत में मानने को तैयार नहीं होते. कृपया ध्यान दें कि हम यहाँ पर सहानुभूति अर्थात Sympathy की बात नहीं कर रहे हैं. संक्षेप में, परानुभूति का अर्थ होता है- दूसरों के वास्तविक दुःख-दर्द को उनके स्थान पर स्वतः महसूस करना. जबकि सहानुभूति में आपको दूसरों का कष्ट देखकर दुःख तो होता है लेकिन बिलकुल वही दुःख का अनुभव नहीं होता जो दूसरे को हो रहा होता है. जैसे- आपने देखा कि एक व्यक्ति को दुर्घटना में चोट लग गई. परानुभूति में आप ऐसा महसूस करेंगे जैसे आपको खुद चोट लग गई है और आपको भयंकर दर्द हो रहा है. प्रायः लेखकों और कवियों के पास परानुभूति की ही भावना प्रचुरता के साथ होती है, इसीलिए ये किसी भी विषय का वर्णन आसानी से करने में सक्षम होते हैं. उदहारण के लिए एक उपन्यास लिखते समय खुद कहानी का नायक (Protagonist) बन गए, खुद कहानी का प्रतिद्वंद्वी (Antagonist) बन गए, खुद कहानी की नायिका बन गए.अब उपन्यास में लड़कियों का पात्र लिखना हो तो किसी लेखिका को किराए पर बुलाकर थोड़े ही लाएँगे!

rajnish manga 13-10-2014 08:08 PM

Re: आत्मरतिक/Narcissist
 
आत्मरतिक व्यक्ति की चारित्रिक विशेषताओं (या दोषों) को आपने बहुत सुंदर ढंग से समझाने का प्रयास किया है. बहुत बहुत धन्यवाद.

soni pushpa 13-10-2014 10:06 PM

Re: आत्मरतिक/Narcissist
 
नया सूत्र शुरू करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद रजत जी ....

Pavitra 13-10-2014 10:54 PM

Re: आत्मरतिक/Narcissist
 
:bravo:
आपने बहुत अच्छी तरह से आत्मरतिक लोगों के बारे में बताया और हमारा ज्ञान बढ़ाया।

:thanks:

rajnish manga 14-10-2014 03:07 PM

Re: आत्मरतिक/Narcissist
 
आत्मरति अथवा आत्ममुग्धता (जिससे ग्रस्त व्यक्ति को आत्मरतिक कहा गया है) विषय पर रजत जी के विचार पढ़ने और सुधिजनों की टिप्पणियाँ पढ़ने के बाद मैं यहाँ से diversion लेना चाहता हूँ. रजत जी के आलेख का पहला वाक्य ही कहता है -त्मरतिक होना एक प्रकार की मानसिक बीमारी ही है. मैं इससे सहमत नहीं हूँ. यदि इसी यार्ड स्टिक को ले कर चलेंगे तो हम पायेंगे कि चिंता, क्रोध, कुंठा व भूलना आदि की अवस्थाएं भी मानसिक बीमारियाँ ही हैं. लेकिन असलियत में ऐसा है नहीं. आप मानेंगे कि हर व्यक्ति को जीवन में थोड़ा बहुत इन स्थितियों से दो चार होना पड़ता है. उदाहरण के लिये यदि मनुष्य में भूलने की प्रवृति नहीं होगी और वह हर छोटी-बड़ी, दुखदाई-सुखदाई बात को अपने भेजे में समाता जायेगा अर्थात याद रखता जायेगा तो एक समय ऐसा आ जायेगा जब उसके अंदर विस्फोट हो जायेगा. अतः भूलना एक सामान्य प्रक्रिया है जो किसी व्यक्ति के जीवन में रक्षा कवच का काम करती है.

इसका यह अर्थ नहीं कि भूलना हर स्थिति में सामान्य प्रक्रिया कही जायेगी. भूलना तब जरूर असामान्य स्थिति या एक बीमारी कहा जायेगा जब वह हमारे रोजमर्रा के क्रिया कलाप में बाधा उत्पन्न करने लगे, हम अपनी पहचान भूल जायें या कतिपय जरूरी बातों को भूल जायें. भूलने की भी कई अवस्थाएँ हो सकती हैं जैसे अल्प अवधि की स्मृति शून्यता या पूरी तरह खुद को, परिवार जनों को या परिचितों को या जीवन में घटित होने वाली बातों को भूल जाना. (हिंदी की कई पुरानी फ़िल्में इसी थीम पर बनाई गई हैं जिसमें एक दुर्घटना में नायक या नायिका स्मृति शून्यता से बाधित हो जाते हैं लेकिन बाद में दूसरे एक्सीडेंट के बाद उन्हें सब कुछ याद आ जाता है)

ऊपर मैंने सिर्फ एक उदाहरण दिया है. इसी तरह से आत्म-मुग्धता की बात करें तो हम पायेंगे कि हर व्यक्ति कहीं न कहीं खुद से प्यार करता है, सजना चाहता है, सुन्दर दिखना चाहता है. वह ऐसा क्यों करता है? ताकि वह समाज के दूसरे व्यक्तियों को आकर्षित कर सके. इसमें उसके प्रियजन भी शामिल हैं. यदि वह स्वयं से प्यार नहीं करेगा यानी आत्ममुग्धता की भावना को पोषित नहीं करता तो उसे सजने की भी जरुरत नहीं होगी. मैं यह कहना चाहता हूँ कि यहाँ तक तो यह एक सामान्य प्रक्रिया है. हां, यदि इस भावना की इतनी अति हो जायेगी कि हमारा सामान्य व्यवहार बाधित हो जाये तो यह असामान्य कहा आयेगा. तब इसे जरूर एक बीमारी ही मानना पड़ेगा और आत्मरतिक व्यक्ति को मानसिक रोगी.

Rajat Vynar 14-10-2014 07:40 PM

Re: आत्मरतिक/Narcissist
 
Quote:

Originally Posted by soni pushpa (Post 533364)
नया सूत्र शुरू करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद रजत जी ....

शुभ संध्या, सोनी पुष्पा जी.. हुदहुद चक्रवात के कारण उत्तर भारत में ठण्ड एकाएक बढ़ गयी है. अफ्रीका में तो अभी जमकर लू चल रही होगी? ;)

Rajat Vynar 14-10-2014 08:08 PM

Re: आत्मरतिक/Narcissist
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 533428)
आत्मरति अथवा आत्ममुग्धता (जिससे ग्रस्त व्यक्ति को आत्मरतिक कहा गया है) विषय पर रजत जी के विचार पढ़ने और सुधिजनों की टिप्पणियाँ पढ़ने के बाद मैं यहाँ से diversion लेना चाहता हूँ. रजत जी के आलेख का पहला वाक्य ही कहता है -त्मरतिक होना एक प्रकार की मानसिक बीमारी ही है. मैं इससे सहमत नहीं हूँ. यदि इसी यार्ड स्टिक को ले कर चलेंगे तो हम पायेंगे कि चिंता, क्रोध, कुंठा व भूलना आदि की अवस्थाएं भी मानसिक बीमारियाँ ही हैं. लेकिन असलियत में ऐसा है नहीं. आप मानेंगे कि हर व्यक्ति को जीवन में थोड़ा बहुत इन स्थितियों से दो चार होना पड़ता है. उदाहरण के लिये यदि मनुष्य में भूलने की प्रवृति नहीं होगी और वह हर छोटी-बड़ी, दुखदाई-सुखदाई बात को अपने भेजे में समाता जायेगा अर्थात याद रखता जायेगा तो एक समय ऐसा आ जायेगा जब उसके अंदर विस्फोट हो जायेगा. अतः भूलना एक सामान्य प्रक्रिया है जो किसी व्यक्ति के जीवन में रक्षा कवच का काम करती है.

इसका यह अर्थ नहीं कि भूलना हर स्थिति में सामान्य प्रक्रिया कही जायेगी. भूलना तब जरूर असामान्य स्थिति या एक बीमारी कहा जायेगा जब वह हमारे रोजमर्रा के क्रिया कलाप में बाधा उत्पन्न करने लगे, हम अपनी पहचान भूल जायें या कतिपय जरूरी बातों को भूल जायें. भूलने की भी कई अवस्थाएँ हो सकती हैं जैसे अल्प अवधि की स्मृति शून्यता या पूरी तरह खुद को, परिवार जनों को या परिचितों को या जीवन में घटित होने वाली बातों को भूल जाना. (हिंदी की कई पुरानी फ़िल्में इसी थीम पर बनाई गई हैं जिसमें एक दुर्घटना में नायक या नायिका स्मृति शून्यता से बाधित हो जाते हैं लेकिन बाद में दूसरे एक्सीडेंट के बाद उन्हें सब कुछ याद आ जाता है)

ऊपर मैंने सिर्फ एक उदाहरण दिया है. इसी तरह से आत्म-मुग्धता की बात करें तो हम पायेंगे कि हर व्यक्ति कहीं न कहीं खुद से प्यार करता है, सजना चाहता है, सुन्दर दिखना चाहता है. वह ऐसा क्यों करता है? ताकि वह समाज के दूसरे व्यक्तियों को आकर्षित कर सके. इसमें उसके प्रियजन भी शामिल हैं. यदि वह स्वयं से प्यार नहीं करेगा यानी आत्ममुग्धता की भावना को पोषित नहीं करता तो उसे सजने की भी जरुरत नहीं होगी. मैं यह कहना चाहता हूँ कि यहाँ तक तो यह एक सामान्य प्रक्रिया है. हां, यदि इस भावना की इतनी अति हो जायेगी कि हमारा सामान्य व्यवहार बाधित हो जाये तो यह असामान्य कहा आयेगा. तब इसे जरूर एक बीमारी ही मानना पड़ेगा और आत्मरतिक व्यक्ति को मानसिक रोगी.

रजनीश जी, यह सत्य है कि हर इंसान अपने आप से प्रेम करता है किन्तु दूसरों से भी सहानुभूति रखता है और इसे आत्मरतिक नहीं कहते. एक आत्मरतिक व्यक्ति सिर्फ अपनी ही प्रशंसा सुनना पसन्द करता है और दूसरे की प्रशंसा कर ही नहीं सकता. एक आत्मरतिक व्यक्ति को दूसरों से सहानुभूति या परानुभूति होती ही नहीं. एक आत्मरतिक व्यक्ति से कहकर देखिए कि आपके परिवार में किसी का स्वर्गवास हो गया है तो इनके ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और न ही ये अपनी सहानुभूति व्यक्त करेंगे! और क्षमा चाहूँगा- चिंता, क्रोध, कुंठा आदि बीमारी नहीं. एक प्रकार की भावना है. भूलना निःसंदेह एक बीमारी ही है.


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