दो मिथक
नमाज के बारे में कुछ हिन्दुओं के मध्य प्रचलित मिथक यह है कि 'नमाज़ नियत देखकर पढ़ी जाती है', किन्तु यह सत्य नहीं है क्योंकि 'नमाज नियत बाँधकर पढ़ी जाती है'। जिन लोगों को हमारे कथन पर ज़रा भी शक़ हो वे परेश रावल की हिन्दी फ़ीचर फ़िल्म 'धर्मसंकट' देखकर अपने शक़ का समाधान कर सकते हैं। ऐसा प्रतीत होता है जैसे गैर-मुस्लिम लोग नमाज को नमाज नहीं, शहादत में शामिल खेल का खेल समझकर नियमों को तोड़-मरोड़कर माफ़ करने की बात करते हैं। यह सच है कि इस्लाम के उदय के वक्त काफी खून-खराबा हुआ था, किन्तु नमाज खेल नहीं है। इसलिए माफ़ी की बात करना कुफ्र हेै। हमारी नजरों में तो शहादत में शामिल लोग भी अगर ऐसी बात करें तो सज़ा पाने के हकदार हैं। पढ़कर हमारा ही नहीं, हमारी बहन तक का खून खौल गया। हुआ यह कि एक गैर-मुस्लिम द्वारा लिखी कविता में 'घर पर पढ़ लेते नमाज, बेकार भटके कि मस्जिद कहीं पास होगी' जैसी पंक्तियाँ पढ़कर मैं दंग रह गया। सूरतुन्निसां के हवाले से अजान की आवाज़ सुनाई देने पर घर पर नहीं, मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ने का हुक्म है और इससे माफी नहीं है। महिलाएँ ही घर पर नमाज पढ़ सकती हैं। गैर-मुस्लिम नमाज नहीं पढ़ते, किन्तु नमाज पढ़ना यदि किसी प्रकार सीख लिया है जैसा कि हिन्दी फ़ीचर फ़िल्म 'धर्मसंकट' में परेश रावल ने सीखा था तो नमाज पढ़ने से शर्माने की कोई ज़रूरत नहीं है, क्योंकि यह एक तरह की पूजा और प्रेयर ही है। नमाज पढ़ने में बड़ा आनन्द है। नमाज पढ़ने के बाद आपके दिल को सुकून मिलता है। गैर-मुस्लिम को पाँचों वक्त नमाज पढ़ने की कोई ज़रूरत नहीं है। दिन में एक बार पढ़िए या दो दिन में एक बार पढ़िए या हफ्ते में एक बार पढ़िए, किन्तु कायदे से पढ़िए और मन लगाकर दिल खोलकर अल्लाह की मोहब्बत में डूबकर पढ़िए। भूल जाइए कि आप गैर-मुस्लिम हैं। अल्लाह तआला बड़ा खुश होगा। नमाज़ पढ़ने के तुरन्त बाद ही आपको पता चल सकता है कि आपके दिल में अल्लाह के लिए सच्ची मोहब्बत है या नहीं? क्योंकि नमाज पढ़ना एक फर्ज़ है और फ़र्ज़ की अदायगी के बाद भी अगर आप अपने दिल में अल्लाह के लिए मोहब्बत महसूस करते हैं तो आप सचमुच अल्लाह के सच्चे बन्दे हैं।
हिन्दुओं के बीच प्रचलित दूसरा मिथक यह है कि नमाज़ पढ़ने से शरीर घिस जाता है। इसलिए नमाज पढ़ना जानते हुए भी नमाज पढ़ने से कतराते रहते हैं तथा पूर्व में कभी पढ़ी गई नमाज के कारण उनका शरीर घिस चुका है समझकर चिन्तित और विचलित होते रहते हैं और हर जगह बेशर्मी के साथ ढ़िंढोरा पीटते रहते हैं कि नमाज पढ़ने के कारण उनका शरीर घिस चुका है। ऐसा बिल्कुल नहीं है। नमाज एक तरह से कसरत भी है। नमाज पढ़ने से शरीर घिसता नहीं बल्कि और मज़बूत हो जाता है। इसलिए अपना दिल छोटा करने की कोई ज़रूरत नहीं है। भूल जाइए कि आप गैर-मुस्लिम हैं। अगर आप अपने आप को गैर-मुस्लिम समझकर नमाज पढ़ना छोड़ देंगे तो नमाज पढ़ने की प्रैक्टिस छूट जाएगी। नमाज़ पढ़ना याद रहेगा तो ज़रूरतमन्दों को जब-तब कायदे से नमाज पढ़ना सिखाकर अल्लाह को खुश करके सवाब हासिल कर सकते हैं। नमाज पढ़ने की पूरी थ्योरी जानते हुए भी हम नमाज पढ़ने की बिल्कुल हिम्मत नहीं करते। आखिर प्रैक्टिकल भी कोई चीज़ होती है। है कोई ऐसा जानकार जो मेहनत करके कायदे से नमाज़ पढ़ना सिखा सके? अपने मोबाइल नम्बर के साथ आज ही हमें लिखें। बिना मोबाइल नम्बर के साथ आए आवेदन-पत्रों को फर्ज़ी समझकर निरस्त कर दिया जाएगा। दक्षिण भारत से आए आवेदन-पत्रों को प्राथमिकता दी जाएगी, क्योंकि सुना है- दक्षिण में इस्लाम की अच्छी तालीम दी जाती है। |
Re: दो मिथक
नमाज़ के संबंध में सारगर्भित जानकारी.
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