अहोई
संतान के सुख और उसकी लंबी आयु की कामना के लिए किए जाने वाले व्रतों में अहोई माता का व्रत भी है। सामान्यत: यह पर्व अक्टूबर या नवम्बर में करवा चौथ के चार दिन बाद और दीपावली से ठीक आठ दिन पहले कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी पर मनाया जाता है।
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Re: अहोई
संतान सम्बन्धित व्रत होते हुए भी इस व्रत को सभी लोगों द्वारा मनाने का रिवाज प्रचलित नहीं है। अहोई पर्व पर किये गए शोध के उपरान्त हमारी जानकारी में आया है कि इस पर्व को विशेषतः खत्री समुदाय द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है। खत्रियों में भी दो अलग समुदाय हैं- पूर्वी खत्री और पश्चिमी खत्री। इस पर्व को पश्चिमी खत्री मनाते हैं, पूर्वी खत्री नहीं। सुनने में आया है कि पश्चिमी की तर्ज़ पर अब पूर्वी भी इस पर्व को मनाने लगे हैं।
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Re: अहोई
मान्यता है कि इस व्रत को केवल संतान वाली महिलाएं ही रख सकती है, क्योंकि यह व्रत बच्चों के सुख के लिए रखा जाता है। इस व्रत में अहोई देवी की तस्वीर के साथ सेई और सेई के बच्चों के चित्र भी बनाकर पूजे जाते हैं। जिन महिलाओं को यह व्रत करना होता है वह दिन भर उपवास रखती हैं। शाम के समय श्रृद्धा के साथ दीवार पर अहोई की पुतली रंग भरकर बनाती हैं। उसी पुतली के पास सेई व सेई के बच्चे भी बनाती हैं। कई महिलाएं तो बाजार में बिकने वाली अहोई का रंगीन चित्र ले लेती है और उसी से पूजा करती है। (क्रमशः)
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