हिंदी फिल्मो की अभिनेत्रिया
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:welcome: दोस्तों,
इस थ्रेड में मैं हिंदी फिल्मो के प्रसिद्ध नए पुराने अभिनेत्रियों के बारे में बात करुँगी और उनकी ज़िन्दगी से जुडी कुछ दिलचस्ब बातें बताऊंगी. http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1293934341 थैंक्स |
Re: हिंदी फिल्मो की अभिनेत्रिया
तो सुरुआत किजीए ......?
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देविका रानी देविका रानी हिन्दी फ़िल्मों की पहली प्रसिद्ध अभिनेत्री हैं, इनका भारतीय सिनेमा के लिये योगदान अपूर्व रहा है और यह हमेशा हमेशा याद रखा जायेगा| जिस जमाने में भारत की महिलायें घर की चारदीवारी के भीतर भी घूंघट में मुँह छुपाये रहती थीं, देविका रानी ने चलचित्रों में काम करके अदम्य साहस का प्रदर्शन किया था| उन्हें उनके अद्वितीय सुंदरता के लिये भी याद किया जाता रहेगा| |
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देविका रानी, भारतीय रजतपट की पहली नायिका, का जन्म वाल्टेयर (विशाखापत्तनम) में हुआ था| वे विख्यात कवि श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर के वंश से सम्बंधित थीं, श्री टैगोर उनके चचेरे परदादा थे| देविका रानी के पिता कर्नल एम.एन. चौधरी मद्रास (अब चेन्नई) के पहले 'सर्जन जनरल' थे| उनकी माता का नाम श्रीमती लीला चौधरी था| |
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स्कूल की शिक्षा समाप्त करने के बाद 1920 के दशक के आरंभिक वर्षों में देविका रानी नाट्य शिक्षा ग्रहण करने के लिये लंदन चली गईं और वहाँ वे 'रॉयल एकेडमी आफ ड्रामेटिक आर्ट' (RADA) और रॉयल 'एकेडमी आफ म्युजिक' नामक संस्थाओं में भर्ती हो गईं| वहाँ उन्हें 'स्कालरशिप' भी प्रदान किया गया| उन्होंने 'आर्किटेक्चर', 'टेक्सटाइल' एवं 'डेकोर डिजाइन' विधाओं का भी अध्ययन किया और 'एलिजाबेथ आर्डन' में काम करने लगीं|
अध्ययन काल के मध्य देविका रानी की मुलाकात हिमांशु राय से हुई| हिमांशु राय ने देविका रानी को लाइट आफ एशिया नामक अपने पहले प्रोडक्शन के लिया सेट डिजाइनर बना लिया| सन् 1929 में उन दोनों ने विवाह कर लिया| विवाह के बाद हिमांशु राय को जर्मनी के प्रख्यात यू.एफ.ए. स्टुडिओ में 'ए थ्रो आफ डाइस' नामक फिल्म बनाने के लिये निर्माता का काम मिल गया और वे सपत्नीक जर्मनी आ गये| |
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भारत में भी उन दिनों चलचित्र निर्माण का विकास होने लग गया था अतः हिमांशु राय अपने देश में फिल्म बनाने का विचार करने लगे और वे देविका रानी के साथ स्वदेश वापस आ गये| भारत आकर उन्होंने फिल्में बनाना शुरू कर दिया और उनकी फिल्मों में देविका रानी नायिका का काम करने लगीं| सन् 1933 में उनकी फिल्म कर्मा प्रदर्शित हुई और इतनी लोकप्रिय हुई कि लोग देविका रानी को कलाकार के स्थान पर स्टार सितारा कहने लगे|
इस तरह देविका रानी भारतीय सिनेमा की पहली महिला फिल्म स्टार बनीं| देविका रानी और उनके पति हिमांशु राय ने मिलकर बांबे टाकीज़ स्टुडिओ की स्थापना की जो कि भारत के प्रथम फिल्म स्टुडिओं में से एक है| बांबे टाकीज़ को जर्मनी से मंगाये गये उस समय के अत्याधुनिक उकरणों से सुसज्जित किया गया| अशोक कुमार, दिलीप कुमार, मधुबाला जैसे महान कलाकारों ने बांबे टाकीज़ में काम कर चुके है। अछूत कन्या, किस्मत, शहीद, मेला जैसे अत्यंत लोकप्रिय फिल्मों का निर्माण वहाँ पर हुआ है| अछूत कन्या उनकी बहुचर्चित फिल्म रही है क्योंकि वह फिल्म एक अछूत कन्या और एक ब्राह्मण युवा के प्रेम प्रसंग पर आधारित थी| |
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http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1293959293
सन् 1940 में देविका रानी विधवा हो गईं| बांबे टाकीज का सम्पूर्ण संचालन उनके पति हिमांशु राय किया करते थे| देविका रानी ने अपने स्टुडिओ बांबे टाकीज़ के संचालन के लिये जी जान लड़ा दिया परंतु सन् 1943 में सशधर और अशोक कुमार तथा अन्य विश्वसनीय लोगों के स्टुडिओ से नाता तोड़ लेने की वजह से वे असहाय हो गईं| उन लोगों ने बांबे टाकीज़ से सम्बंध समाप्त करके फिल्मिस्तान नामक नया स्टुडिओ बना लिया| परिणामस्वरूप देविका रानी को फिल्मों से अपना नाता तोड़ना पड़ा| उन्होंने रूसी चित्रकार स्वेतोस्लाव रॉरिक के साथ सन् 1945 में विवाह कर लिया और बंगलौर में जाकर बस गईं| भारत के राष्ट्रपति ने सन् 1958 में देविका रानी को पद्मश्री सम्मान प्रदान किया| उन्हें सन् 1970 में प्रथम बार दादा साहेब फाल्के पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव भी मिला| |
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1943 हमारी 1941 अंजान 1937 सावित्री 1937 इज़्ज़त 1936 अछूत कन्या 1936 जन्मभूमि 1936 जीवन नैया |
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मीना कुमारी (1 अगस्त, 1932 - 31 मार्च, 1972) भारत की एक मशहूर अभिनेत्री थीं। इन्हें खासकर दुखांत फ़िल्म में उनकी यादगार भूमिकाओं के लिये याद किया जाता है। 1952 में प्रदर्शित हुई फिल्म बैजू बावरा से वे काफी वे काफी मशहूर हुईं। |
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मीना कुमारी का असली नाम माहजबीं बानो था और ये बंबई में पैदा हुई थीं । उनके पिता अली बक्श भी फिल्मों में और पारसी रंगमंच के एक मँजे हुये कलाकार थे और उन्होंने कुछ फिल्मों में संगीतकार का भी काम किया था। उनकी माँ प्रभावती देवी (बाद में इकबाल बानो),भी एक मशहूर नृत्यांगना और अदाकारा थी जिनका ताल्लुक टैगोर परिवार से था । माहजबीं ने पहली बार किसी फिल्म के लिये छह साल की उम्र में काम किया था। उनका नाम मीना कुमारी विजय भट्ट की खासी लोकप्रिय फिल्म बैजू बावरा पड़ा। मीना कुमारी की प्रारंभिक फिल्में ज्यादातर पौराणिक कथाओं पर आधारित थे। मीना कुमारी के आने के साथ भारतीय सिनेमा में नयी अभिनेत्रियों का एक खास दौर शुरु हुआ था जिसमें नरगिस, निम्मी, सुचित्रा सेन और नूतन शामिल थीं। |
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