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-   -   जिद्दी मन को और न भाये (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=3469)

Dr. Rakesh Srivastava 02-10-2011 08:46 AM

जिद्दी मन को और न भाये
 
हुस्न सदा से रहा खिलाड़ी , इश्क ने हरदम बाज़ी हारी .
बहुत सिकन्दर बने फटीचर , उजड़ गयीं जागीरें सारी .
थोड़े दिन कश्मीर भोग , अब भुगत रहे हैं कालाहारी .
आशिक बन्दर - माफ़िक नाचे , हुस्न भी है इक अज़ब मदारी .
जिद्दी मन को और न भाये , वरना दुनिया में भरमारी .
रूठा यार न माने फिर से , इससे बढ़कर क्या लाचारी .
दिल नन्हा सा होता है पर सारी दुनिया इससे हारी .
प्यार का कर्जा एक बार ले ,
चुका रहा ता उम्र उधारी .
प्रेम का सावन चार दिनों था , आँख की बरखा अब तक जारी .
बिन धूवें के आग धधकती , ऐसी है दिल की बीमारी .
मरते दम फीके न पड़ें रंग , यार ने मारी वो पिचकारी .
इश्क - पिटे का जीवन घिसटे , पर्वत ने ज्यों धूप उतारी .
ये दो मिल नेमत बनते हैं , पेट में हलुवा बाँह
में नारी .
जिसकी शैली अलग सुखद हो , वो लूटेगा महफ़िल सारी .


रचयिता ~~डॉ. राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड-२,गोमती नगर,लखनऊ .
(शब्दार्थ ~~ कालाहारी = प्रतिकूल परिस्थितियों वाला अफ्रीकी रेगिस्तान )

YUVRAJ 02-10-2011 08:50 AM

Re: जिद्दी मन को और न भाये
 
बहुत ही मस्त रचना :bravo: और बिगड़े मिजाज़ को मस्त कर दिया आपने…:cheers:

Sikandar_Khan 02-10-2011 08:54 AM

Re: जिद्दी मन को और न भाये
 
Quote:

Originally Posted by dr. Rakesh srivastava (Post 108346)
हुस्न सदा से रहा खिलाड़ी , इश्क ने हरदम बाज़ी हारी .
बहुत सिकन्दर बने फटीचर , उजड़ गयीं जागीरें सारी

थोड़े दिन कश्मीर भोग , अब भुगत रहे हैं कालाहारी .
आशिक बन्दर - माफ़िक नाचे , हुस्न भी है इक अज़ब मदारी .
जिद्दी मन को और न भाये , वरना दुनिया में भरमारी .
रूठा यार न माने फिर से , इससे बढ़कर क्या लाचारी .
दिल नन्हा सा होता है पर सारी दुनिया इससे हारी .
प्यार का कर्जा एक बार ले , भुगते ये ता उम्र उधारी .
प्रेम का सावन चार दिनों था , आँख की बरखा अब तक जारी .
बिन धूवें के आग धधकती , ऐसी है दिल की बीमारी .
मरते दम फीके न पड़ें रंग , यार ने मारी वो पिचकारी .
इश्क - पिटे का जीवन घिसटे , पर्वत ने ज्यों धूप उतारी .
ये दो मिल नेमत बनते हैं , पेट में हलुवा बगल में नारी .
जिसकी शैली अलग सुखद हो , वो लूटेगा महफ़िल सारी .

डॉक्टर साहब मै सोच रहा था आज तो इतवार है अभी तक खुराक क्योँ नही मिली |
बहुत ही खूबसूरत रचना है आपकी दिल को छू गई
तहेदिल से दाद कुबूल करेँ |

abhisays 02-10-2011 09:19 AM

Re: जिद्दी मन को और न भाये
 
हर बार की तरह एक और शानदार रचना. इस हफ्ते का खुराक पूरा हुआ.. :bravo::bravo:

khalid 02-10-2011 10:00 AM

Re: जिद्दी मन को और न भाये
 
तहेदिल से आभार डाक्टर साहब इतनी अच्छी अच्छी रचना के लिए
:bravo::bravo::bravo:

Ranveer 02-10-2011 09:21 PM

Re: जिद्दी मन को और न भाये
 
अब इसका मुख्य कारण बस अपना जिद्दी मन ही है , वरना बाज़ार में प्यार बहुत सस्ता है |

Dr. Rakesh Srivastava 02-10-2011 09:58 PM

Re: जिद्दी मन को और न भाये
 
सर्वश्री Abhisays जी , युवराज जी , सागर जी ,
सिकंदर जी , रणवीर जी एवं खालिद जी ;
आप सभी का का बहुत - बहुत शुक्रिया .

malethia 05-10-2011 12:30 PM

Re: जिद्दी मन को और न भाये
 
दिल नन्हा सा होता है पर सारी दुनिया इससे हारी .

एक बार फिर से बहुत ही सुंदर रचना की प्रस्तुती,
आपको हमारे नन्हे से दिल की तरफ से धन्यवाद !


Dr. Rakesh Srivastava 05-10-2011 01:07 PM

Re: जिद्दी मन को और न भाये
 
माननीय मलेथिया जी ,
आपने समानुभूति व्यक्त की ,
सो मै आपका आभार व्यक्त करता हूँ .

bhavna singh 05-10-2011 04:27 PM

Re: जिद्दी मन को और न भाये
 
Quote:

Originally Posted by dr. Rakesh srivastava (Post 108346)
हुस्न सदा से रहा खिलाड़ी , इश्क ने हरदम बाज़ी हारी .
बहुत सिकन्दर बने फटीचर , उजड़ गयीं जागीरें सारी .
थोड़े दिन कश्मीर भोग , अब भुगत रहे हैं कालाहारी .
आशिक बन्दर - माफ़िक नाचे , हुस्न भी है इक अज़ब मदारी .
जिद्दी मन को और न भाये , वरना दुनिया में भरमारी .
रूठा यार न माने फिर से , इससे बढ़कर क्या लाचारी .
दिल नन्हा सा होता है पर सारी दुनिया इससे हारी .
प्यार का कर्जा एक बार ले ,
चुका रहा ता उम्र उधारी .
प्रेम का सावन चार दिनों था , आँख की बरखा अब तक जारी .
बिन धूवें के आग धधकती , ऐसी है दिल की बीमारी .
मरते दम फीके न पड़ें रंग , यार ने मारी वो पिचकारी .
इश्क - पिटे का जीवन घिसटे , पर्वत ने ज्यों धूप उतारी .
ये दो मिल नेमत बनते हैं , पेट में हलुवा बाँह
में नारी .
जिसकी शैली अलग सुखद हो , वो लूटेगा महफ़िल सारी .


रचयिता ~~डॉ. राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड-२,गोमती नगर,लखनऊ .
(शब्दार्थ ~~ कालाहारी = प्रतिकूल परिस्थितियों वाला अफ्रीकी रेगिस्तान )

डॉक्टर राकेश साहब आपकी ये पंक्तियाँ दिल को छु गयीं ........!


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