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-   -   ग़ज़ल गा के देखो (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=3653)

Dr. Rakesh Srivastava 06-11-2011 07:20 AM

ग़ज़ल गा के देखो
 
जो हकीक़त में मिली ना , मिल गयी कल ख़्वाब में ;
लड़ के वो मासूम बोली , आते हो क्यों ख़्वाब में .

कुछ दिनों तक और ज़िन्दा रहने की सूरत बनी ;
खेल कर ज़ख्मों से , ताज़ा कर गई वो ख़्वाब में .

पहले भी लड़ती थी ख़ुब , लड़ने के ढँग में प्यार था ;
प्यार अपने ढँग से वो छलका गई फिर ख़्वाब में .


आग मुद्दत से जुदाई की दहकती दिल में थी ;
गरज कर , फिर बरस कर उसने बुझाई ख़्वाब में .

इक कश्मकश उसके पूरे जिस्म से थी झाँकती ;
पाँव थे उससे ख़फ़ा , रुखसत हुई जब ख़्वाब में .

आँख से ओझल हुई फिर भी दिखी वो देर तक ;
ये करिश्मा भी मुझे दिखला गई वो ख़्वाब में .


मुझको लगता था महज़ मेरे ही ख़्वाबों में है वो ;
मैं भी दिखता हूँ उसे जतला गई वो ख़्वाब में .

उस हकीक़त का करूँ क्या जिसमें वो ना मिल सके ;
काश पूरी ज़िन्दगी कट जाए यूँ ही ख़्वाब में .


रचयिता ~~~डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड -2,गोमती नगर ,लखनऊ .

abhisays 06-11-2011 07:36 AM

Re: ग़ज़ल गा के देखो
 
एक और ख़ूबसूरत कविता के लिए धन्यवाद राकेश जी.

Sikandar_Khan 06-11-2011 07:37 AM

Re: ग़ज़ल गा के देखो
 
Quote:

Originally Posted by Dr. Rakesh Srivastava (Post 119643)
जो हकीक़त में मिली ना , मिल गयी कल ख़्वाब में ;
लड़ के वो मासूम बोली , आते हो क्यों ख़्वाब में .

कुछ दिनों तक और ज़िन्दा रहने की सूरत बनी ;
खेल कर ज़ख्मों से , ताज़ा कर गई वो ख़्वाब में .

पहले भी लड़ती थी ख़ुब , लड़ने के ढँग में प्यार था ;
प्यार अपने ढँग से वो छलका गई फिर ख़्वाब में .


आग मुद्दत से जुदाई की दहकती दिल में थी ;
गरज कर , फिर बरस कर उसने बुझाई ख़्वाब में .

इक कश्मकश उसके पूरे जिस्म से थी झाँकती ;
पाँव थे उससे ख़फ़ा , रुखसत हुई जब ख़्वाब में .

आँख से ओझल हुई फिर भी दिखी वो देर तक ;
ये करिश्मा भी मुझे दिखला गई वो ख़्वाब में .


मुझको लगता था महज़ मेरे ही ख़्वाबों में है वो ;
मैं भी दिखता हूँ उसे जतला गई वो ख़्वाब में .

उस हकीक़त का करूँ क्या जिसमें वो ना मिल सके ;
काश पूरी ज़िन्दगी कट जाए यूँ ही ख़्वाब में .



:bravo::bravo:
बहुत ही खूब राकेश जी
तहेदिल से दाद क़ुबूल करें |

Dr. Rakesh Srivastava 06-11-2011 04:50 PM

Re: ग़ज़ल गा के देखो
 
Abhisays जी ,
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava 06-11-2011 04:52 PM

Re: ग़ज़ल गा के देखो
 
Sikandar जी ,
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .

ndhebar 06-11-2011 05:47 PM

Re: ग़ज़ल गा के देखो
 
Quote:

Originally Posted by dr. Rakesh srivastava (Post 119643)
काश पूरी ज़िन्दगी कट जाए यूँ ही ख़्वाब में .


रचयिता ~~~डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड -2,गोमती नगर ,लखनऊ .

बहुत खूब बड़े भाई

Dr. Rakesh Srivastava 06-11-2011 06:16 PM

Re: ग़ज़ल गा के देखो
 
n.dhebar जी ,
आपने पसन्द किया ,
आपका शुक्रिया .

anoop 06-11-2011 07:57 PM

Re: ग़ज़ल गा के देखो
 
एक और...बहुत शानदार है। बधाई...

Dr. Rakesh Srivastava 06-11-2011 08:47 PM

Re: ग़ज़ल गा के देखो
 
अनूप जी ,
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava 07-11-2011 12:29 PM

Re: ग़ज़ल गा के देखो
 
http://myhindiforum.com/showthread.php?t=3653


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