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-   -   अपनी पहचान बनानी हो तो ... (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=4184)

Dr. Rakesh Srivastava 11-03-2012 08:46 AM

अपनी पहचान बनानी हो तो ...
 
कुछ जुदा सोच पालते रहिये
और हक़ीकत में ढालते रहिये

ज़िन्दगी खुद - ब - खुद न संवरेगी
कोई सूरत निकालते रहिये

छाँव गर चाहिए उमर भर की
धूप का शौक पालते रहिये

अपनी पहचान बनानी हो तो
सबको अचरज में डालते रहिये

विवश हो गौर करेगी दुनिया
ढंग से मुद्दा उछालते रहिये

दोस्तों , मेरी बेहतरी के लिए
नुक्स मुझमें निकालते रहिये

यक - ब - यक दिल कोई चुरा लेगा
लाख इसको संभालते रहिये

वो ग़ज़ल पढ़ के पसीजेंगे कभी
भरम का क्या है , पालते रहिये

रचयिता ~~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ .

abhisays 11-03-2012 11:14 AM

Re: अपनी पहचान बनानी हो तो ...
 
लाजवाब.. बेहतरीन.. :fantastic:

sombirnaamdev 11-03-2012 02:45 PM

Re: अपनी पहचान बनानी हो तो ...
 
dr. sahab aap ka bhi javab nahi aap lajvaab hai


shukriya hajoor ek baar phir se

Sikandar_Khan 11-03-2012 10:30 PM

Re: अपनी पहचान बनानी हो तो ...
 
Quote:

Originally Posted by dr. Rakesh srivastava (Post 136635)
कुछ जुदा सोच पालते रहिये
और हक़ीकत में ढालते रहिये

ज़िन्दगी खुद - ब - खुद न संवरेगी
कोई सूरत निकालते रहिये

छाँव गर चाहिए उमर भर की
धूप का शौक पालते रहिये

अपनी पहचान बनानी हो तो
सबको अचरज में डालते रहिये

विवश हो गौर करेगी दुनिया
ढंग से मुद्दा उछालते रहिये

दोस्तों , मेरी बेहतरी के लिए
नुक्स मुझमें निकालते रहिये


यक - ब - यक दिल कोई चुरा लेगा
लाख इसको संभालते रहिये

वो ग़ज़ल पढ़ के पसीजेंगे कभी
भरम का क्या है , पालते रहिये

डॉक्टर साहब , मुझे आपकी ये पंक्तियाँ बहुत ही ज्यादा पसंद आयी |

arvind 12-03-2012 04:33 PM

Re: अपनी पहचान बनानी हो तो ...
 
Quote:

Originally Posted by dr. Rakesh srivastava (Post 136635)
कुछ जुदा सोच पालते रहिये
और हक़ीकत में ढालते रहिये

ज़िन्दगी खुद - ब - खुद न संवरेगी
कोई सूरत निकालते रहिये

छाँव गर चाहिए उमर भर की
धूप का शौक पालते रहिये

अपनी पहचान बनानी हो तो
सबको अचरज में डालते रहिये

विवश हो गौर करेगी दुनिया
ढंग से मुद्दा उछालते रहिये

दोस्तों , मेरी बेहतरी के लिए
नुक्स मुझमें निकालते रहिये

यक - ब - यक दिल कोई चुरा लेगा
लाख इसको संभालते रहिये

वो ग़ज़ल पढ़ के पसीजेंगे कभी
भरम का क्या है , पालते रहिये

रचयिता ~~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ .

कामयाब जिंदगी जीने का शानदार फलसफा...... बेहतरीन।

Dark Saint Alaick 13-03-2012 02:27 AM

Re: अपनी पहचान बनानी हो तो ...
 
कविवर ! एक बार एक शायर ने किसी अन्य शायर की एक ग़ज़ल पर फ़िदा होकर कहा था कि आप यह ग़ज़ल मेरे नाम कर दें और मेरा सारा कलाम आप ले लें ! मैं यह तो नहीं कहूंगा, क्योंकि फोरम पर मैंने अब तक ऐसा कुछ रचा ही नहीं है, किन्तु यह अवश्य कहूंगा कि फोरम पर आपकी अब तक प्रस्तुत रचनाओं में यह सर्वश्रेष्ठ है ! इस अनुपम सृजन का मुझे साक्षी करने के लिए मैं आपका तहे-दिल से शुक्रगुजार हूं ! यकीन मानें, मुझे यह स्वीकार करने में तनिक संकोच नहीं है कि इन दिनों हिन्दी ग़ज़ल के नाम पर जो रचा जा रहा है, आपकी यह ग़ज़ल; यदि कभी कसौटी तैयार की गई, तो उसमें सबसे ऊपर होगी ! मेरा मानना है कि आपने पूर्व में भले ही एक 'ग़ज़ल को गाकर देखने' की दावत दी थी, किन्तु गायन के लिहाज़ से इस ग़ज़ल का कोई जवाब नहीं है ! अगर मैं मेहदी हसन या गुलाम अली होता, तो आपसे यह ग़ज़ल अनुरोध कर मांग लेता ! मेरे अनेक मित्रों ने आपको अन्यान्य अशआर पर बधाई दी है, किन्तु मुझे आपका यह शे'र हासिले-ग़ज़ल लगा - 'छांव गर चाहिए उमर भर की/ धूप का शौक पालते रहिए' ! एक बार फिर आभार !

Dr. Rakesh Srivastava 14-03-2012 10:04 PM

Re: अपनी पहचान बनानी हो तो ...
 
Quote:

Originally Posted by dark saint alaick (Post 136728)
कविवर ! एक बार एक शायर ने किसी अन्य शायर की एक ग़ज़ल पर फ़िदा होकर कहा था कि आप यह ग़ज़ल मेरे नाम कर दें और मेरा सारा कलाम आप ले लें ! मैं यह तो नहीं कहूंगा, क्योंकि फोरम पर मैंने अब तक ऐसा कुछ रचा ही नहीं है, किन्तु यह अवश्य कहूंगा कि फोरम पर आपकी अब तक प्रस्तुत रचनाओं में यह सर्वश्रेष्ठ है ! इस अनुपम सृजन का मुझे साक्षी करने के लिए मैं आपका तहे-दिल से शुक्रगुजार हूं ! यकीन मानें, मुझे यह स्वीकार करने में तनिक संकोच नहीं है कि इन दिनों हिन्दी ग़ज़ल के नाम पर जो रचा जा रहा है, आपकी यह ग़ज़ल; यदि कभी कसौटी तैयार की गई, तो उसमें सबसे ऊपर होगी ! मेरा मानना है कि आपने पूर्व में भले ही एक 'ग़ज़ल को गाकर देखने' की दावत दी थी, किन्तु गायन के लिहाज़ से इस ग़ज़ल का कोई जवाब नहीं है ! अगर मैं मेहदी हसन या गुलाम अली होता, तो आपसे यह ग़ज़ल अनुरोध कर मांग लेता ! मेरे अनेक मित्रों ने आपको अन्यान्य अशआर पर बधाई दी है, किन्तु मुझे आपका यह शे'र हासिले-ग़ज़ल लगा - 'छांव गर चाहिए उमर भर की/ धूप का शौक पालते रहिए' ! एक बार फिर आभार !

मित्र डार्क सैंट अलैक जी ;
सच तो यह है कि आपकी प्रतिक्रिया अपने आपमें सदैव एक रचना होती है . मेरी ये ग़ज़ल आप जैसे मसिजीवी को यदि कुछ अधिक ही पसंद आयी तो यह मेरे जैसे प्रशिक्षु रचनाकार के लिए निश्चित ही प्रेरणा व संतोष का विषय है . मैं तो पहले - पहल इस फोरम पर शौकिया ही प्रकट होकर अपनी समझ से तुकबंदी मात्र कर रहा था किन्तु इस फोरम ने मुझमें संभावनाओं का आंकलन कर , मुझे कवि के तमगे से नवाज़ कर , मुझ जैसे चलायमान व्यक्ति को मेरे शौक के प्रति गंभीर बनाने व इससे विमुख न होने देने में महती भूमिका अदा की . सो मै अपनी तरफ से स्वयं में निरंतर सुधार के भरसक प्रयास कर रहा हूँ . इस सन्दर्भ में मुझे सदैव फोरम के समस्त सक्रिय सदस्यों का अमूल्य सहयोग भी मिलता रहा है . जिसके लिए मैं सभी का आजीवन आभारी रहूँगा .
आपने जिस एक और ग़ज़ल का जिक्र किया है उसके सन्दर्भ में मेरा अभी भी विनम्र मत ये है कि वो आम आदमी को पसंद आ सकने वाली गाने योग्य ग़ज़ल थी जबकि ये ग़ज़ल , जैसा कि मेरा अनुमान है ,आपकी राय में ख़ास आदमी द्वारा गाई जा सकती है . प्रसंग जब गाने का चल ही निकला है तो यह बात आपसे साझा करना चाहूंगा कि एक क्षेत्रीय एल्बम निर्माता ने कुछ माह पूर्व मेरी कुछ गजलों में दिलचस्पी लेते हुए मेरे सम्मुख प्रस्ताव विशेष रखा था किन्तु मैंने उसके कद व विस्तार क्षमता को पर्याप्त न मानते हुए विनम्रतापूर्वक असहमति व्यक्त कर दी . क्योंकि मुझमें उचित अवसर की प्रतीक्षा हेतु पर्याप्त धैर्य है और अपने बारे में मेरी ये धारणा है कि मुझे अभी सफलता हेतु काफी लम्बा सफ़र करना होगा . यदि बीच में ही मेरी लय भंग न हुई तो . सम्मेलनों आदि में भी शरीक होने में मेरी दिलचस्पी इस गुणा भाग के चलते नहीं है क्योंकि इससे मेरी प्रैक्टिस बर्बाद हो जायेगी और आप तो जानते ही हैं कि भूखे भजन न होय गोपाला . हाँ ये मलाल अवश्य है कि कम्पयूटर विधा में अकुशल होने के कारण मैं अपने बल पर अपनी रचनाओं को मनचाहा विस्तार नहीं दे पा रहा हूँ .
अंत में कृतज्ञता व्यक्त करते हुए इतना भर कहूँगा कि आपने मेरी रचना या मेरे बारे में जो भी राय व्यक्त की है उससे मै संकोच अनुभव कर रहा हूँ और कामना करता हूँ कि ये संकोच मुझमें पर्याप्त विनम्रता भी लाये .
आशा है आप , साथियों समेत , मुझ पर निरन्तर नज़र बनाए रखते हुए मेरा मार्ग दर्शन करते रहेंगे . आपका बहुत - बहुत धन्यवाद

Dr. Rakesh Srivastava 14-03-2012 10:33 PM

Re: अपनी पहचान बनानी हो तो ...
 
मित्र Abhisays जी ;
आपने पढ़ा और पसंद किया
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava 14-03-2012 10:38 PM

Re: अपनी पहचान बनानी हो तो ...
 
Quote:

Originally Posted by sombirnaamdev (Post 136637)
dr. sahab aap ka bhi javab nahi aap lajvaab hai


shukriya hajoor ek baar phir se

मित्र Sombirnaamdev जी ;
आपने पढ़ा और पसंद किया
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava 14-03-2012 10:41 PM

Re: अपनी पहचान बनानी हो तो ...
 
Quote:

Originally Posted by sikandar_khan (Post 136662)
डॉक्टर साहब , मुझे आपकी ये पंक्तियाँ बहुत ही ज्यादा पसंद आयी |

मित्र सिकंदर खान जी ;
आपने पढ़ा और पसंद किया
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .


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