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-   -   रूप और रुबाइयां (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=4911)

Dark Saint Alaick 08-10-2012 04:04 AM

रूप और रुबाइयां
 
दोस्तो, जैसा कि यह शीर्षक ज़ाहिर कर रहा है, इस सूत्र में मैं अनेक सुंदरियों की अनेकानेक आकर्षक भंगिमाएं प्रस्तुत करूंगा और हर चित्र के साथ उसकी भंगिमा से तालमेल बिठाती एक रुबाई भी होगी ! यह स्पष्ट किए देता हूं कि रुबाई उर्दू शायरी की एक ऎसी छंद-बद्ध काव्य विधा है, जिसमें शायर सिर्फ चार पंक्तियों में अपने भावों की अभिव्यक्ति करता है ! मशहूर शायर मरहूम फ़िराक गोरखपुरी साहब इस विधा में गज़ब की महारत रखते थे ! इस सूत्र में (उनसे क्षमा याचना के साथ) ज्यादातर उन्हीं के सृजन का उपयोग होगा ! आइए, शुरू करते हैं यह रूप-यात्रा !

Dark Saint Alaick 08-10-2012 04:16 AM

Re: रूप और रुबाइयां
 
1 Attachment(s)
इंसान के पैकर में उतर आया है माह
कद या चढ़ती नदी है अमृत की अथाह
लहराते हुए बदन पे पड़ती है जब आंख
रस के सागर में डूब जाती है निगाह

http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1349651765

abhisays 08-10-2012 08:24 AM

Re: रूप और रुबाइयां
 
एक ही शब्द है इस सूत्र के लिए और वो है बेहतरीन। और भी प्रविस्तियो का इंतज़ार रहेगा :cheers:

ndhebar 08-10-2012 03:45 PM

Re: रूप और रुबाइयां
 
अति सुन्दर अलैक भाई
अद्भुत

ndhebar 08-10-2012 03:54 PM

Re: रूप और रुबाइयां
 
1 Attachment(s)
चित्र मैं प्रस्तुत कर देता हूँ
रुबाइ आप लिख दीजिये
http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1349693529

aspundir 08-10-2012 04:14 PM

Re: रूप और रुबाइयां
 
अति सुन्दर

Dark Saint Alaick 09-10-2012 12:05 AM

Re: रूप और रुबाइयां
 
Quote:

Originally Posted by ndhebar (Post 167121)
चित्र मैं प्रस्तुत कर देता हूँ
रुबाइ आप लिख दीजिये
http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1349693529

मित्र निशांतजी ! आप कई जगह ऐसा फंसा देते हैं कि जवाब देते नहीं बनता ! फ़िराक साहब के ज़माने में तो मोबाइल था नहीं, फिर वे इस पर क्या रुबाई रचते ... अब यह काम आपके चित्र के लिए मुझे ही करना होगा ! मजबूरी है, लीजिए हाज़िर है ...

अक्स अपना सेल में देखा मैंने
आईना शायद सोच लिया मैंने
रू-ब-रू होने की तमन्ना थी तेरे
खुद को तुझमें पा लिया मैंने . :think:

ndhebar 09-10-2012 07:30 AM

Re: रूप और रुबाइयां
 
Quote:

Originally Posted by Dark Saint Alaick (Post 167219)
मित्र निशांतजी ! आप कई जगह ऐसा फंसा देते हैं कि जवाब देते नहीं बनता ! फ़िराक साहब के ज़माने में तो मोबाइल था नहीं, फिर वे इस पर क्या रुबाई रचते ... अब यह काम आपके चित्र के लिए मुझे ही करना होगा ! मजबूरी है, लीजिए हाज़िर है ...

अक्स अपना सेल में देखा मैंने
आईना शायद सोच लिया मैंने
रू-ब-रू होने की तमन्ना थी तेरे
खुद को तुझमें पा लिया मैंने . :think:

bhai waah
maja aa gaya
alaik bhaai thanks for express service.


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