तुमको क्या मालूम.....!
तुमको क्या मालूम तुम्हारे बिन मैं कैसे जीता हूँ ;
ख़्वाब शहद - से जीवन के थे , उम्र नीम - सी पीता हूँ . दिखने को तो बाहर से संपन्न दिख रहा हूँ सबको ; कोई नहीं बस मैं जानूं भीतर से तुझ बिन रीता हूँ . ऊंचा उड़ने की चाहत में बोझ समझ तुम छोड़ गयी ; तेरी अभिलाषा में बाधक वक़्त तेरा मैं बीता हूँ . साथ छोड़ना ही था तो मुझको क्यों तू भरमाती थी ; ' राम बनाकर रक्खूंगी , तेरी भावी परिणीता हूँ ' . खुशियों की उम्मीद जगा तू ज़ख्म लगाकर दूर हुई ; ग़ज़ल रिसा करतीं उतनी , ज़ख्मों को जितना सीता हूँ . रोने को भी हुनर में मैंने जबसे है तब्दील किया ; अपने गम को बेच के अब मैं इस दुनिया में जीता हूँ . दुनियादारी का अंकुश पाखण्ड करा ले चाहे जो ; पर सच है हर सच्चे आशिक़ सा स्मृतियाँ जीता हूँ . रचयिता ~~ डॉ .राकेश श्रीवास्तव विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ . ( शब्दार्थ ~ परिणीता = ब्याहता स्त्री ) |
Re: तुमको क्या मालूम.....!
बहुत खूब कविवर ! 'ग़ज़ल रिसा करतीं उतनी, ज़ख्मों को जितना सीता हूं !' ग़ज़ब का शब्द संयोजन और अनुपम बिम्ब है यह ! :thumbup:
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Re: तुमको क्या मालूम.....!
गजब की रचना है, डॉक्टर साहब... :cheers::cheers:
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Re: तुमको क्या मालूम.....!
Quote:
भई, मजा आ गया ये हुनर सबको थोड़े ना आता है |
Re: तुमको क्या मालूम.....!
इस हुनर की क्या तारीफ करूँ, जब ये पढी गजल आपकी, दिल शुश्क हुआ, मिजाज मस्त,
तमन्ना सिर्फ इतनी रही कि इस हुनर की चाह दुआओं में सामिल करूँ। |
Re: तुमको क्या मालूम.....!
आप एक अच्छे रचनाकार हैं ___इसमे कोई शक नहीं ।
बेहतरीन कविता । :cheers: |
Re: तुमको क्या मालूम.....!
ख़्वाब शहद - से जीवन के थे , उम्र नीम - सी पीता हूँ .
bahoot khoob aek achhi or sunder rachana ke dhanyavaad dr sahab |
Re: तुमको क्या मालूम.....!
बेहतरीन ग़ज़ल के लिये बधाई स्वीकार करें. आपकी आगामी रचनाओं का इन्तज़ार रहेगा.
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