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-   -   ग़ज़ल: सूर्य का अवतरण ढूँढते रह गए (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=5633)

rajnish manga 28-12-2012 09:43 PM

ग़ज़ल: सूर्य का अवतरण ढूँढते रह गए
 
सूर्य का अवतरण ढूँढते रह गए.
हम उजाले के कण ढूँढते रह गए.

मोतियों की तरह रास्ते भर कहीं,
खो गए थे जो क्षण ढूँढते रह गए.

ज़िंदगी जब जटिलताओं से घिर गयी,
कायरों का मरण ढूँढते रह गए.

नंगे लोगों की बस्ती में अपने लिये,
हम धवल आवरण ढूँढते रह गए.

अपने होने का परचम हिलाते हुये,
इक निरापद शरण ढूँढते रह गए.

खिल सके मुस्कराहट अनायास जब,
ऐसे दो चार क्षण ढूँढते रह गए.

abhisays 28-12-2012 10:17 PM

Re: ग़ज़ल: सूर्य का अवतरण ढूँढते रह गए
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 201123)
सूर्य का अवतरण ढूँढते रह गए.
हम उजाले के कण ढूँढते रह गए.

मोतियों की तरह रास्ते भर कहीं,
खो गए थे जो क्षण ढूँढते रह गए.

ज़िंदगी जब जटिलताओं से घिर गयी,
कायरों का मरण ढूँढते रह गए.

नंगे लोगों की बस्ती में अपने लिये,
हम धवल आवरण ढूँढते रह गए.

अपने होने का परचम हिलाते हुये,
इक निरापद शरण ढूँढते रह गए.

खिल सके मुस्कराहट अनायास जब,
ऐसे दो चार क्षण ढूँढते रह गए.

काफी जानदार और शानदार कविता है। :bravo::bravo:

Dark Saint Alaick 29-12-2012 03:46 AM

Re: ग़ज़ल: सूर्य का अवतरण ढूँढते रह गए
 
अति श्रेष्ठ सृजन है, रजनीशजी। सम्पूर्ण ग़ज़ल में भाव-भूमि जितनी सशक्त है, शब्द-विन्यास भी उतना ही प्रवहमान और सहज है। शुद्ध हिन्दी के अत्यंत कठिन अनेक शब्द आपके प्रयोग-कौशल से इस ग़ज़ल के पाठक को चिर-परिचित लगते हैं, यह आपकी बड़ी उपलब्धि है। कृपया इस अनुपम सृजन के रसास्वादन का सुख-भोग करने के लिए मेरा आभार स्वीकार करें। :bravo:

Awara 29-12-2012 07:45 AM

Re: ग़ज़ल: सूर्य का अवतरण ढूँढते रह गए
 
बहुत ही अच्छी रचना है रजनीश जी। :bravo::bravo::bravo:

bindujain 29-12-2012 05:40 PM

Re: ग़ज़ल: सूर्य का अवतरण ढूँढते रह गए
 
खिल सके मुस्कराहट अनायास जब,
ऐसे दो चार क्षण ढूँढते रह गए.

बहुत ही शानदार .......

jai_bhardwaj 29-12-2012 07:29 PM

Re: ग़ज़ल: सूर्य का अवतरण ढूँढते रह गए
 
रजनीश जी, अत्यंत मनोहारी पंक्तियाँ प्रस्तुत की हैं आपने। पढ़ते पढ़ते मन मुग्ध हो गया। इस मुक्तामणि के लिए हार्दिक अभिनन्दन बन्धु।

aspundir 29-12-2012 07:44 PM

Re: ग़ज़ल: सूर्य का अवतरण ढूँढते रह गए
 
बहुत ही अच्छी रचना है

Dr. Rakesh Srivastava 29-12-2012 08:05 PM

Re: ग़ज़ल: सूर्य का अवतरण ढूँढते रह गए
 
बहुत ही सार्थक, शानदार और धारदार ग़ज़ल . इस रचना विशेष हेतु हार्दिक बधाई .

malethia 30-12-2012 07:18 PM

Re: ग़ज़ल: सूर्य का अवतरण ढूँढते रह गए
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 201123)

ज़िंदगी जब जटिलताओं से घिर गयी,
कायरों का मरण ढूँढते रह गए.

नंगे लोगों की बस्ती में अपने लिये,
हम धवल आवरण ढूँढते रह गए.

अपने होने का परचम हिलाते हुये,
इक निरापद शरण ढूँढते रह गये .

अति सुन्दर पंक्तिया .........


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