ग़ज़लें, नज्में और गीत
प्रस्तुत सूत्र में अंतरजाल और पत्र-पत्रिकाओं से प्राप्त कुछ ग़ज़लें, नज्मे अथवा गीत प्रसुत करने का प्रयास कर रहा हूँ।
उर्दू भाषा के शब्द प्रयोग में कहीं कहीं भूल-चूक हो सकती है। उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। |
Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत
ना ही इब्तेदा पे उदास हूँ, ना ही इन्तेहा पे मलाल है
बिना वस्ल कैसे गुजर गयी, मेरा ज़िन्दगी से सवाल है तुझे पूजने में गुज़ार दी, मैंने सदियाँ लेल-ओ-नाहर की तेरे इश्क से बंधी है, जो मेरी चाह ला ज़वाल है मेरी चाहतों से बेखबर, तू वादियों में खो गया तेरी याद का एक काफिला, मेरी ज़ात में बदहाल है कई उलझनों से सूजी हुई, मेरी ज़िन्दगी की लकीर में कहीं करबे माजी-ओ-हाल है, कहीं मौज-ए-दर्द-ए-विसाल है कभी ख्वाहिशों की तलब मुझे, कभी बे-यकीनी का डर मुझे मेरा नफस जिस सिम्त भी चले, वही रास्ता मेरा ज़वाल है तेरे अक्स में पिन्हाँ हूँ मैं, तेरे दर्द से भी जुड़ा हूँ मैं तुझे सोचना तो अज़ीम है, तुझे पाना कसब-ए-मुहाल है कहीं इश्क है कहीं नफरतें, कहीं बेबसी की उदासियाँ यही ज़िनदगी की हैं राहतें, यही ज़िन्दगी का वबाल है कैसे दिल से 'शौकत' जुड़ा करें, कैसे दिल में अपने पनाह दें इसी कशमकश में जिए चलो, यही बंदगी का ज़माल है |
Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत
वो जो खुद पैरवी-ए-एहद-ए-वफ़ा करती थी
मुझसे मिलती थी तो तलकीन-ए-वफ़ा करती थी उस के दामन में कोई फूल नहीं मेरे लिए जो मेरी तंगी-ए-दामन का गिला करती थी आज जो उसको बुलाया तो गुमसुम ही रही दिल धड़कने की जो आवाज सुना करती थी आज वो मेरी हर एक बात के मायने पूछे जो मेरी सोच की तफसीर लिखा करती थी उसकी दहलीज पे सदियों से खडा हूँ 'ज़ैन" मुझसे मिलने को लम्हात गिना करती थी |
Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत
आवाज जगाती है अहसास
शब्द रच देते हैं सपनों का नया संसार। सपने जिंदगी के सपने अपनों के सपने सोती आंखों के सपने जागती आंखों के। सपनों केमूल में है शब्दों की अनंत सत्ता। शब्दों से ही आकार लेता है ब्रह्म। शब्दों से ही आकार लेती है जिंदगी शब्दों संग चलती जिंदगी शब्द बन जाते हैं अर्थवान कर देते हैं जिंदगी को सार्थक शब्द जब हो जाते हैं निरर्थक जिंदगी में भर देते हैं मायूसी। शब्द हो जाते हैं मौन तब भी देते हैं नया अर्थ जिंदगी के लिए। |
Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत
Quote:
नीरज जी की कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं: मैं वही हूँ जिसे वरदान फरिश्तों का समझ तुमने औढ़ा था किसी रेशमी आँचल की तरह और हंस हंस के प्यार को जिसके तुमने अपनी आँखों में रचा था कभी काजल की तरह. याद शायद हो तुम्हें गोद में मेरी छुप कर तुम ज़मीं क्या, फ़लक तक से नहीं डरती थीं और माथे पे सजा कर मेरे होंठों के कँवल खुद को तुम मिस्र की शहजादी कहा करती थी. |
Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत
Quote:
|
Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत
ख़्वाबों का इक जहां मुझे दे गया कोई
मिट्टी का इक मकां मुझे दे गया कोई वो दिल में रह गया है कि दिल से उतर गया कितना अजाब गुमां, मुझे दे गया कोई सेहरा पे अपने घर का पता लिख गया था वो मिटता हुआ निशां, मुझे दे गया कोई माह-ओ-नजूम नोच के, सूरज बुझा दिया फिर सारा आसमां, मुझे दे गया कोई किश्ती में छेद उसने किया और उसके बाद कागज़ का बादबां, मुझे दे गया कोई उसने गुलाब हाथ में ले कर कहा बतूल खुशबू का तर्जुमाँ, मुझे दे गया कोई |
Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत
आसमानों ने हम को क्या न दिया
दिल मगर हम को बे-वफ़ा न दिया हम ज़माने को दोष देते रहे ज़ख्म तुम ने भी कुछ नया न दिया कू-ब-कू नाचती फिरी खुशबू फिर भी फूलों ने कुछ गिला ना दिया ख्वाब में एक दिन मिलेंगे अगर तुमने यादों को जो मिटा ना दिया सारी दौलत जहां को दी है मगर दिल में रखा हुआ खुदा ना दिया हम ने घर को जला ही लेना था तुमने अच्छा किया, दिया ना दिया ज़िन्दगी से यही शिकायत है हम को जीने का रास्ता ना दिया सारे मंज़र थे आस पास मगर तुम ने क्यों ख्वाब से जबा ना दिया बस इशारों में बात की है 'बतूल' कोई इलज़ाम बरमला ना दिया |
Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत
कुछ इस तरह से इबादत खफ़ा हुयी हम से
नमाज़-ए-इश्क बहुत कम अदा हुयी हम से गरीब आँखों में आंसू भी अब नहीं आते इलाही रहम! कि फिर क्या खता हुयी हम से हम इब्तदा ही कहाँ नेकियों की थे या रब ! तो फिर गुनाहों क्यों इन्तेहा हुयी हम से ये बद-नसीबी हमारी है कम हुआ ऐसे कि दुश्मनों के भी हक़ में दुआ हुयी हम से सलूक मौत का हम से ना जाने कैसा हो ये ज़िन्दगी तो बहुत में-मज़ा हुयी हम से कहाँ छुपायेंगे महशर में खुद को आजार कहाँ अता अत-ए-खैर-उल-वरा हुयी हम से |
Re: ग़ज़लें, नज्में और गीत
बात कम कीजे ज़ेहानत को छुपाए रहिए
अजनबी शहर है ये, दोस्त बनाए रहिए दुश्मनी लाख सही, ख़त्म न कीजे रिश्ता दिल मिले या न मिले हाथ मिलाए रहिए ये तो चेहरे की शबाहत हुई तक़दीर नहीं इस पे कुछ रंग अभी और चढ़ाए रहिए ग़म है आवारा अकेले में भटक जाता है जिस जगह रहिए वहाँ मिलते मिलाते रहिए कोई आवाज़ तो जंगल में दिखाए रस्ता अपने घर के दर-ओ-दीवार सजाए रहिए 2. कच्चे बखिए की तरह रिश्ते उधड़ जाते हैं हर नए मोड़ पर कुछ लोग बिछड़ जाते हैं यूँ, हुआ दूरियाँ कम करने लगे थे दोनों रोज़ चलने से तो रस्ते भी उखड़ जाते हैं छाँव में रख के ही पूजा करो ये मोम के बुत धूप में अच्छे भले नक़्श बिगड़ जाते हैं भीड़ से कट के न बैठा करो तन्हाई में बेख़्याली में कई शहर उजड़ जाते हैं निदा फ़ाज़लीhttp://hindi.webdunia.com/articles/0...823066_1_1.jpg |
All times are GMT +5. The time now is 06:57 AM. |
Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.