रिसर्च : जो सोचने को मजबूर कर दे
दुनिया भर में मर्द हो रहे हैं 'कमजोर', कुछ ही सालों में हो जाएंगे खत्म
http://i2.dainikbhaskar.com/thumbnai...305_cromo1.jpg दुनिया भर के पुरुषों के दिन अब लदने शुरू हो गए हैं। ऑस्ट्रेलिया की एक वैज्ञानिक का दावा है कि पुरुषों की प्रजाति ज्यादा दिन तक इस दुनिया में नहीं टिक पाएगी। बस कुछ 50 लाख वर्षों में इस प्रजाति का पृथ्वी से सफाया हो जाएगा। इस महिला वैज्ञानिक का यह भी दावा है कि पुरुष प्रजाति के खात्मे की शुरुआत हो चुकी है। क्रोमोसोम्स को आधार बनाते हुए इस महिला वैज्ञानिक ने दावा किया है कि महिलाओं के क्रोमोसोम्स पुरुषों से कहीं ज्यादा मजबूत हैं और इसी वजह से महिला प्रजाति पुरुषों से कहीं ज्यादा दिनों तक जिंदा रहेगी। प्रोफेसर जेनी ग्रेव्स ऑस्ट्रेलिया की जानी मानी महिला वैज्ञानिक हैं। उनका मानना है कि सबसे अंत तक जिंदा रहने की रेस महिलाएं ही जीतेंगी। पुरुष इस रेस में पिछड़ जाएंगी। प्रो.जेनी का कहना है कि पुरुष प्रजाति के खात्मे की शुरुआत हो चुकी है। पुरुष प्रजाति के खात्मे की शुरुआत खुद उनके Y क्रोमोसोम ने की है। प्रो. जेनी का यह शोध पुरुष व महिलाओं के कई सारे क्रोमोसोम के अध्ययन के बाद सामने आया है। |
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प्रो. जेनी का दावा है कि स्त्रियों का X क्रोमोसोम पुरुषों के Y क्रोमोसोम से हजार गुना स्वस्थ होता है। जब पुरुषों का Y क्रोमोसोम स्त्रियों के X क्रोमोसोम के साथ आता है तो यह कमजोर होने लगता है। उनका तो यह भी दावा है कि पुरुष प्रजाति उधार के दिनों पर गुजर-बसर कर रही है। प्रो.जेनी के अध्ययन के मुताबिक पिछले कई लाख वर्षों में पुरुषों के क्रोमोसोम्स में से सौ जींस कम हो चुके हैं। इनमें SRY जींस भी है, जो पुरुषों का मास्टर स्विच भी कहा जाता है। यह जींस एंब्रयो को मेल या फीमेल बनाता है। इसके अलावा स्त्रियों में जहां दो एक्स क्रोमोसोम पाए जाते हैं, वहीं पुरुषों में सिर्फ एक ही वाई क्रोमोसोम होता है। |
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कैनबेरा यूनिुवर्सिटी की प्रो.जीन का कहना है कि स्त्रियों का एक्स क्रामोसोम संख्या में दो होने की वजह से एक-दूसरे की मदद करता है, लेकिन पुरुषों का वाई क्रोमोसोम अकेला होने की वजह से ऐसा नहीं कर पाता। इस बीच अगर वाई क्रोमोसोम पर हमला होता है तो वह खत्म भी होने लगता है। अपने लेक्चर में प्रो.जीन ने कहा कि दुनिया भर के पुरुषों के लिए यह बुरी खबर है। |
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वैसे, खराब खबरें अभी और भी हैं। ऑस्ट्रेलियन साइंस अकादमी में एक वार्ता के दौरान प्रो.जीन ने बताया कि वाई क्रोमोसोम में जो बचे हुए जींस हैं, उनमें से अधिकतर 'जंक' हैं। प्रो.जीन का मानना है कि पचास लाख वर्षों में वाई क्रोमोसोम खत्म हो जाएंगे। पुरुषों में यह क्रोमोसोम बनेगा ही नहीं। इससे उनकी प्रजाति विकसित नहीं होगी। क्रोमोसोम और जींस आदि पर अध्ययन करने वाले दूसरे वैज्ञानिकों का कहना है कि इस मामले पर पुरुषों को ज्यादा पेन लेने की जरूरत नहीं है। लंदन के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल रिसर्च के लिंग क्रोमोसोम एक्सपर्ट प्रो.रॉबिन लॉवेल बैज का कहना है कि प्रो.जीन का यह अध्ययन क्रोमोसोम के फटने पर होने वाले नुकसान की बात करता है। पिछले 250 लाख वर्षों से वाई क्रोमोसोम में कोई नुकसान नहीं हुआ है। प्रो.राबिन ने तो यहां तक कहा कि उनका मानना है कि इस स्टडी पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए। |
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यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के प्रो.क्रिस मेसन का कहना है कि अगर वाई क्रोमोसोम में अगले कुछ लाख वर्षों तक इसी तरह से तोड़फोड़ होती रही तो उसके लिए दवाइयां बनेंगी। दवाइयों के पास काफी वक्त है क्रोमोसोम में होने वाली तोड़फोड़ से हुए नुकसान की भरपाई करने का। उन्होंने कहा कि प्रो. जीन का कहना है कि वाई क्रोमोसोम गिरकर टुकड़ों में बंट जाता है और खो जाता है। मजाक में प्रो.क्रिस ने कहा कि अगर सचमुच ऐसा है तो इसका मतलब है कि पुरुष प्रजाति नहीं, बल्कि कोई नई प्रजाति है। फोटो- प्रोफेसर जेनी ग्रेव्स। |
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दूसरी खतरनाक रिसर्च
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भारतीय पुरुषों का 'साइज' सबसे कम?
http://i10.dainikbhaskar.com/thumbna..._targetmap.jpg हाल ही में एक प्रसिद्ध ब्रिटिश वैज्ञानिक रिचर्ड लिन ने पुरुषों के प्राइवेट पार्ट (लिंग) के साइज पर एक शोधपत्र प्रकाशित किया है। इस शोध में 113 देशों के पुरुषों के प्राइवेट पार्ट के साइज का विश्लेषण किया गया है। इस आधार पर देशों की एक लिस्ट भी बनाई गई है। इस लिस्ट में भारत 110वें स्थान पर है। लिस्ट में 7.1 इंच के औसत 'साइज' के साथ कांगो सबसे ऊपर है। कोरिया और कंबोडिया (3.9 इंच) सबसे नीचे हैं। भारत इन्हीं दो देशों से ऊपर है। भारतीय पुरुषों का 'औसत साइज' 4 इंच बताया गया है। लेकिन इस पर सवाल उठ रहे हैं। साल 2006 में भारत में कंडोम का साइज तय करने के लिए किए गए 'साइज सर्वे' की रिपोर्ट आई थी। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) द्वारा कराए गए सर्वे 'स्डटी ऑन प्रापर लेंथ एंड ब्रेड्थ स्पेसिफिकेसंस फॉर कंडोम बेस्ड एंथ्रोपोमेट्रिक मेजरमेंट' के बाद यह नतीजा निकला था कि भारतीय बाजार में मिलने वाले कंडोम पुरुषों के लिंग के साइज के अनुपात में बड़े होते हैं। आईसीएमआर के लिए सर्वे करने वाले डॉ. शर्मा ने अपनी शोध रिपोर्ट साल 2006 में भारत सरकार को सौंप दी थी। हालांकि इसके बाद कंडोम बनाने वालों के लिए कोई भी दिशा निर्देश जारी नहीं किए गए थे। ड्रग्स एंड कास्मेटिक एक्ट 1940 के अनुच्छेद 'आर' के मुतबाकि भारत में कंडोम का साइज कम से कम 6.7 इंच रखना अनिवार्य है। बहरहाल, सर्वे में 1400 पुरुषों का डाटा लिया गया था। सर्वे में 18-50 आयुवर्ग के पुरुष शामिल थे। इससे पहले साल 2001 तक मुंबई में इकट्ठा किए गए (200 लोगों के) डाटा के मुताबिक 60 प्रतिशत भारतीय पुरुषों के प्राइवेट पार्ट की औसत लंबाई 4.4 से 4.9 इंच के बीच और 30 प्रतिशत की लंबाई 4 से 4.9 इंच बताई गई थी। |
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रिचर्ड के सर्वे पर सवाल डॉ. रिचर्ड द्वारा जारी डाटा के मुताबिक भारतीय पुरुषों के लिंग की औसत लंबाई चार इंच है। उन्होंने अपनी रिपोर्ट का आधार आईसीएमआर के सर्वे को बनाया है। इसलिए इस सर्वे को लेकर सवाल भी उठाए जा रहे हैं। द ओपेन मैग्जीन की एक रिपोर्ट के मुताबिक आईसीएमआर द्वारा कराए गए सर्वे के नतीजे ही विश्वसनीय नहीं थे। तो फिर इसे आधार बना कर किया गया कोई और सर्वे कैसे विश्वसनीय हो सकता है? आईसीएमआर के सर्वे को बेहतर रेस्पांस नहीं मिल पाया था। भारत में कोई भी पुरुष इस तरह के सर्वे के लिए तैयार हो जाए, यह बात भी आसान नहीं है। आईसीएमआर के लिए सर्वे करने वाले डॉ. आरएस शर्मा के मुताबिक सर्वे के लिए आंकड़े इकट्ठा करने में उन्हें खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। डॉ. शर्मा ने साल 2001 में आंकड़े इकट्ठा करना शुरू किया था। उन्हें इसमें पांच साल लग गए थे। डॉ. शर्मा कहते हैं, 'भारतीय पुरुषों के लिंग का औसत साइज निकालना बाकी देशों से भिन्न है क्योंकि यहां अलग-अलग जाति और नस्लों के लोग रहते हैं।' डॉ. शर्मा की टीम ने सात सेंटरों पटना, गुवाहाटी, कटक, चंडीगढ़, दिल्ली, मुंबई और हुबली में पुरुषों के प्राइवेट पार्ट के साइज के सैंपल इकट्ठा किए थे। तस्वीर में डॉ. रिचर्ड लिन, डॉ. रिचर्ड यूनिवर्सिटी ऑफ अलस्टर में प्रोफेसर हैं। उन्होंने मनोविज्ञान में स्नातक के बाद कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पीएचडी की है |
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कैसे हुआ था सर्वे और क्या आई थीं मुश्किलें चंडीगढ़ में डॉ. एस के सिंह ने यह सर्वे किया था। डॉ. सिंह 220 पुरुषों का सैंपल लेने में कामयाब रहे थे। पुरुषों के अंग का साइज मापने के लिए एक किट बनाई गई थी जो अंग की मोटाई और लंबाई मापती थी। इसमें दो पेपर स्ट्रिप थी जिनसे माप लिया जाता था। एक पुरुष के कम से कम तीन माप लिए जाते थे और फिर औसत को अंतिम माप मान लिया जाता था। पुरुषों के अंग का माप लेना भी एक बड़ी समस्या थी। पहले आईआईटी खड़गपुर के एक प्रोफेसर ने अंग का माप लेने के लिए एक डिजिटल कैमरा भी विकसित किया था लेकिन महंगा होने के कारण इसे अपनाया नहीं गया था। कई व्यावहारिक दिक्कतें भी पेश आई थीं। पहले तो पुरुषों को सर्वे में शामिल होने के लिए तैयार करना ही टेढ़ी खीर था। अगर किसी तरह तैयार किया भी जाता था तो माप देते वक्त वे सहज नहीं हो पाते थे। उन्हें इसके लिए बोल्ड मैग्जीन आदि दिखा कर 'तैयार' किया जाता था। शादीशुदा पुरुषों को अपनी पत्नी को साथ लाने की इजाजत दी गई थी। इसके बावजूद सही माप लेने में कई मुश्किलें आती थीं। चंडीगढ़ में सर्वे करने वाले डॉ. सिंह तो पुरुषों को सर्वे में शामिल होने के लिए देशहित तक का हवाला दे देते थे। |
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सर्वे में शामिल अहम देशों का औसत साइज रिपब्लिक ऑफ कांगो - 7.1 इंच इक्वाडोर- 7 इंच घाना - 6.8 इंच कोलंबिया - 6.7 इंच आइसलैंड - 6.5 इंच इटली - 6.2 इंच दक्षिण अफ्रीका - 6 इंच स्वीडन - 5.9 इंच ग्रीस - 5.8 इंच जर्मनी - 5.7 इंच न्यूजीलैंड - 5.5 इंच यूके - 5.5 इंच कनाडा - 5.5 इंच स्पेन - 5.5 इंच फ्रांस - 5.3 इंच ऑस्ट्रेलिया - 5.2 इंच रूस - 5.2 इंच यूएसए - 5.1 इंच आयरलैंड - 5 इंच रोमानिया - 5 इंच चीन - 4.3 इंच भारत - 4 इंच थाइलैंड - 4 इंच दक्षिण कोरिया - 3.8 इंच उत्तर कोरिया - 3.8 इंच |
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