वाकई चांद पर नहीं पहुंचा था इंसान!
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20 जुलाई, 1969 का दिन मानव इतिहास के लिए खास माना जाता है। इंसान ने पहली बार चंद्रमा पर कदम रखा था। इसी तरह पांच अगस्त का दिन भी बेहद खास है, क्योंकि नील आर्मस्ट्रांग का जन्मदिन है। 1930 में अमेरिका की भयानक मंदी के साल में पैदा हुए नील को मानव इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा। वह चांद पर कदम रखने वाले दुनिया के पहले इंसान थे। अगर अंतरिक्ष में जाने वाले पहले आदमी रूस के यूरी गागरिन को जैसा सम्मान दिया जाता है तो अमेरिका के नील आर्मस्ट्रांग को भी वैसा ही सम्मान दिया जाना चाहिए। लेकिन कुछ विशेषज्ञ आज भी मानने को तैयार नहीं है कि एयरोनॉटिकल इंजीनियर और अमेरिकी सैनिक पायलट नील आर्मस्ट्रांग ने ऐसा कोई भी महान काम किया था। वे तो आर्मस्ट्रांग के चंद्रमा पर कदम रखने की बात को सिरे नकार देते हैं। उनके सामने कई तथ्य हैं, जो वे सिलसिलेवार तरीके से झुठलाते हैं। |
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भले ही 20 जुलाई, 1969 को नासा का अपोलो-11 चंद्रमा पर उतर गया हो, लेकिन कुछ लोगों ने अमेरिका पर सवाल उठा दिए। उनका कहना था कि यह सारी उपलब्धियां एक फिल्म स्टूडियो में रची गई हैं। उन्होंने मिशन से जुड़ी हुई कई तस्वीरों को ध्यान से देखने पर ऐसा कहा था। उन्होंने कहा कि सूर्य से निकलने वाली रेडिएशन किसी भी इंसान को मार सकती है। फिर नासा इन सभी को सुरक्षित कैसे लेकर आया। दिखाई गई तस्वीरों में अमेरिकी झंडा हवा में उड़ता हुए दिखाई दे रहा है। जानकार मानते हैं कि वायुमंडल न होने के कारण चंद्रमा पर ऐसा संभव ही नहीं है। |
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क्यों चांद पर कदम रखने वाले दो अंतरिक्ष यात्री दिखाई दे रहे हैं। नील आर्मस्ट्रांग के हेलमेट के कांच पर दूसरा साथी दिखाई दे रहा है। इसमें यह दिखाई नहीं दे रहा है कि यह तस्वीर किसने और कब ली। सच इसके बचाव में नासा कहता है कि यह तस्वीर दूसरे एस्ट्रोनॉट द्वारा ली गई थी। यह कैमरा उसके हेलमेट पर ही लगा था, जिसने सामने खड़े हुए आर्मस्ट्रांग को कैमरे में उतारा था। |
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क्यों इस मिशन की सभी तस्वीरों में तारे नदारद हैं। लोगों का कहना है कि सभी ओर काला क्यों दिखाई दे रहा है। सच इसका जवाब ऐसे दिया जाता है कि चंद्रमा की सतह सूर्य की रोशनी से जगमगा रही थी। इससे तारों को तस्वीर में दिखना नामुमकिन था। |
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क्यों एस्ट्रोनॉट के चंद्रमा पर तस्वीरें खिचाने के दौरान उनकी परछाइयां भी कई रहस्य पैदा करती हैं। लोग इस बात पर तर्क देते हैं कि वहां सभी की परछाई अलग-अलग कोण से और कई आकारों की दिखाई देती है। ऐसा लगता है, जैसे कई दिशाओं से रोशनी पड़ रही हो, जैसा किसी स्टूडियो फिल्माया जाता है। सच हां, वहां रोशनी के कई स्रोत थे। ऐसा सूर्य की रोशनी के कारण था और पृथ्वी से पलट कर आ रही उसकी रोशनी से वहां कई तरह की आकृतियां बन रही थीं। |
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क्यों फिर लोग कहते हैं कि एस्ट्रोनॉट के चांद पर कदम रखने के निशान इतने साफ कैसे बने, जबकि वहां न तो वायुमंडल है और न वहां बरसात होती है। ठोस जमीन पर ऐसा होना संभव ही नहीं है। सच इस तथ्य को बकवास करार देते हुए नासा ने बताया कि चंद्रमा धूल से भरी हुई जगह है। उसकी सतह पर पाउडर सरीखी धूल भरी पड़ी है। माइक्रोस्कोप से निरीक्षण करने पर पता चलता है कि यह ज्वालामुखी से निर्मित धूल है। इसमें नमी की मात्रा बिल्कुल नहीं थी। |
Re: वाकई चांद पर नहीं पहुंचा था इंसान!
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क्यों इस तस्वीर में रहस्यमयी रोशनियों को देख कर फिल्म स्टूडियो का अहसास होता है। यह एक बात नासा के करोड़ों डॉलर के प्रोजेक्ट पर पानी फेरती हुई दिखाई देती है। सच तस्वीर में दिखाई दे रही इस तरह की अजीब रोशनी का कारण लेंस फ्लेयर है। |
Re: वाकई चांद पर नहीं पहुंचा था इंसान!
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चंद्रमा पर उतरते ही पहले व्यक्ति नील आर्मस्ट्रांग ने कहा था, ‘यह मानव के लिए एक छोटा कदम, लेकिन मानवजाति के लिए छलांग है।’ इसे लेकर भी पिछले साल विवाद छिड़ गया था। नील ने कहा था कि ये शब्द उनके मुंह से अचानक निकले थे। उनके भाई डीन ने कहा है कि इन शब्दों की रिहर्सल नील ने चंद्रमा पर जाने से कई महीने पहले कर ली थी। इससे सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या नील आर्मस्ट्रांग ने झूठ बोला था? |
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उनके भाई डीन ने कहा था कि नील ने केप केनेवरल जाने से पहले उन्हें कागज का एक टुकड़ा दिया था। उस पर ये शब्द लिखे थे। उन्होंने कहा पढ़ो और बताओ कैसे हैं। मैंने पढ़ा, ‘दैट्स वन स्मॉल स्टैप फॉर मैन, वन जाइंट लीप फॉर मैनकाइंड’। मैंने कहा था ‘फैब्युलस’। डीन ने बताया कि नील किशोरावस्था में मां के साथ ‘मे आई’ खेला करते थे। इसमें वे पूछते थे ‘मदर मे आई टेक वन स्माल स्टैप।’ लिंकन यूनिवर्सिटी के डॉ. क्रिस्टोफर रिले ने कहा हो सकता है ये शब्द तब से नील के दिमाग में हों। |
Re: वाकई चांद पर नहीं पहुंचा था इंसान!
सारी सूटिंग्स नेवाडा के रण प्रदेश में की गई और अमरीका ने सारी दुनीया को मुर्ख बनाय..........................
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