Re: छींटे और बौछार
कहाँ थे हम ? क्यूँ थे हम ? क्या थे हम ?
इस सोच की राख को कुरेदने का वक़्त आया है,
आईना देखने और दिखाने का वक़्त आया है
शीशे में श़क्ल नहीं, रूह को तलाशना है,
वादे बहुत हो चुके खुद से, अब निभाने का वक़्त आया है,
आईना देखने और दिखाने का वक़्त आया है/
ज़िन्दगी यूँ ही जीए जा रहे थे, या मर ही चुके थे हम,
ज़िन्दगी जिंदा है, इस एहसास को जीने का वक़्त आया है,
आईना देखने और दिखाने का वक़्त आया है/
अब तक भीड़ का एक भेड़ ही तो थे हम,
आज इंसान बन, कुछ कर गुज़रने का वक़्त आया है,
आईना देखने और दिखाने का वक़्त आया है/
जीत की क्या बात करें ?
अंतरिक्ष को कदमों से रौंदा,
समंदर की गहराई को नापा,
हिमालय की चोटी को चूमा,
इसी धरती पे, रावण को मारा,
फिर हारने का आज डर क्यूँ ?
इस डर को डराने का वक़्त आया है,
आज तो हद से गुज़र जाने का वक़्त आया है,
आईना देखने और दिखाने का वक़्त आया है/
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घर से निकले थे लौट कर आने को
मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए
बिगड़ैल
Last edited by ndhebar; 18-09-2011 at 01:03 PM.
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