Quote:
Originally Posted by Dr. Rakesh Srivastava
कुछ अलग सोच ज़रा अमल में लाकर देखो ;
मन के औज़ार को हथियार बना कर देखो .
जिन्होंने ज़ख्म दिए हैं , उन्हें बख्शो न कभी ;
उनकी मेहँदी में अपना खून मिला कर देखो .
बहुत मुमकिन है कल को दोस्त वो बन जाये फिर ;
दुश्मनी ठानो मत , कुछ वक्त भुलाकर देखो .
कुछ एक ढीठ हैं ऐसे , के जो साधे न सधें ;
खुद को थोपो न उन पे , दिल में समा कर देखो .
उम्र झगड़ों में गुज़र जाये , इससे बेहतर है ;
थोड़े अधिकार को दूजे में बाट कर देखो .
लाख दुश्मन हो , मगर जब बहुत बीमार पड़े ;
तुम ऐन वक़्त उसे , उसके घर जाकर देखो .
हर बड़े फैसले से पहले सबकी बात सुनो ;
जिनसे मतभेद हैं उनको भी बुलाकर देखो .
सामने वाला अगर आग - बबूला हो तो ;
पलीता मौन का तुम उसके लगाकर देखो .
रचयिता ~~डॉ . राकेश श्रीवास्तव
गोमती नगर,लखनऊ,इंडिया .
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दुश्मनी कर ली है उन्होंने हमसे, जब मतलब निकल गया,
वो वफ़ा न कर सकेंगी-हम बेवफाई न कर सकेंगे ये हमें मालूम था,
हम उनकी बेवफाई से अनजान थे, उनके अचानक पलटने से हैरान थे वो रुसवा करेंगी हमें सरेआम इस बात से हम paresan थे |
kuch tuti futi si likha hun ....pasand aae to aah bharna hosake to kabhi na kisi se tum pyr karna...