Re: दुश्यन्त कुमार की कविताएँ
ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारों,
अब कोई ऐसा तरीका भी निकालो यारो।
दर्दे दिल वक्त को पैगाम भी पहुँचाएगा,
इस कबूतर को जरा प्यार से पालो यारो।
लोग हाथों में लिए बैठे हैं अपने पिंजरे,
आज सय्याद को महफ़िल में बुला लो यारो।
आज सीवन को उधेड़ों तो जरा देखेंगे,
आज संदूक से वे खत तो निकालो यारो।
रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया,
इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारो।
कैसे आकाश में सुराख नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो।
लोग कहते थे कि ये बात नहीं कहने की,
तुमने कह दी है तो कहने की सजा लो यारो।
- दुश्यन्त कुमार
Last edited by anoop; 27-09-2011 at 01:48 PM.
|