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Old 24-09-2011, 06:15 PM   #18
anoop
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Default Re: दुश्यन्त कुमार की कविताएँ

मुक्तक



संभल संभल के बहुत पाँव धर रहा हूँ मैं
पहाड़ी ढाल से जैसे उतर रहा हूँ मैं
कदम कदम पे' मुझे टोकता है दिल ऐसे
गुनाह कोई बड़ा जैसे कर रहा हूँ मैं।



तरस रहा है मन फूलों की नयी गंध पाने को
खिली धूप में, खुली हवा में गाने मुसकाने को
तुम अपने जिस तिमिरपाश में मुझको कैद किये हो
वह बंधन ही उकसाता है बाहर आ जाने को।



गीत गाकर चेतना को वर दिया मैने
आँसुओं के दर्द को आदर दिया मैने
प्रीत मेरी आस्था की भूख थी, सहकर
ज़िन्दगी़ का चित्र पूरा कर दिया मैने।



जो कुछ भी दिया अनश्वर दिया मुझे
नीचे से ऊपर तक भर दिया मुझे
ये स्वर सकुचाते हैं लेकिन तुमने
अपने तक ही सीमित कर दिया मुझे।
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