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जिद्दी मन को और न भाये
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05-10-2011, 05:27 PM
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naman.a
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Re: जिद्दी मन को और न भाये
शब्दरुपी मोतियो को इतने सुन्दर रुप मे पिरो कर प्रस्तुत करना किसी कवि के ह्रदय के बस की बात है । हम तो बस ये ही कह सकते है
जब तक ना पढे कविता आपकी, फ़ोरम को निहारे आंखे सारी
बहुत समजाया जिद्दी मन को, पर क्या करे, जिद्दी मन से दुनिया हारी ।
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हारना मैने कभी सिखा नही
और
जीत कभी मेरी हुई नही ।
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naman.a
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