Re: उल्लुं शरणं गच्छामि…उल्लू की खिदमत में खड&
का समय उदघाटन में गुजारते हैं। दिन में पाषाण प्रतिमाओं के और रात में जीवंत प्रतिमाओं के आवरण उतारते हैं। इस समय भी वे जन सेवा की भावना से लबालब ओत-प्रोत होकर ,एक अत्यंत परम प्राइवेट प्रक्रिया द्वारा,सार्वजविक समस्या को सुलझाने के लिए,शराब और शबाब के बीच गठबंधन कायम करने में जुटे हैं। उलूकराज का दृढ़ मत है कि भारत कभी सोने की चिड़िया हुआ करता था, आज उसकी ये दुर्दशा इसलिए हुई है क्योंकि अतीत में इसने उल्लुओं को कभी गंभीरता से नहीं लिया। आज की बात और है। वेद-पुराण गवाह हैं कि पारसमणि सिर्फ उल्लुओं के ही घोंसलों में ही हुआ करती थी। उल्लू अपनी पारसमणि से जिस चिड़िया को छू देते वही चिड़िया सोने की हो जाती थी। इसलिए तब यह देश सोने की चिड़िया नहीं सोने की चिड़ियाओंवाला देश हुआ करता था। आज जिन सोणी-सोणी चिड़ियाओं को ये बात समझ में आ गई है वह सोने की होने के लिए निःसंकोच उल्लुओं के पास पहुंच रही हैं।
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बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
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