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Old 18-10-2011, 07:07 PM   #1
Dark Saint Alaick
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Default एक सफ़र ग़ज़ल के साए में

दोस्तो ! उर्दू ग़ज़ल की एक खूबसूरत सुदीर्घ रवायत है, जिसे किसी एक सूत्र में समेट पाना कठिन है, लेकिन मैं इस सूत्र में कोशिश कर रहा हूं कि इसके कुछ नूर-आफरीं कतरों से आपको रू-ब-रू करा सकूं ! सूत्र में मेरा प्रयास रहेगा कि आप कलाम के साथ शोअरा से भी आशना हो सकें और कठिन अल्फ़ाज़ के भावार्थ भी आपको मिल सकें ! यहां अर्थ मैंने इसलिए नहीं लिखा कि शायर ने जो कहा है, उसे सब अपने-अपने नज़रिए से देखते हैं यानी हम उसके भाव के नजदीक ही पहुंच पाते हैं ! अर्थ तक तभी पहुंचा जा सकता है, जब पाठक का जुड़ाव, मानसिक स्तर और स्थिति शायर से तालमेल बिठा ले, जो निश्चय ही आसान नहीं है ! खैर, आपको कोई अतिरिक्त लफ्ज़ कठिन प्रतीत हो, तो निसंकोच मुझे कहें, भावार्थ में प्रस्तुत कर दूंगा ! तो चलिए, आपको ले चलता हूं, ग़ज़ल के इस खूबसूरत सफ़र पर !
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु

Last edited by Dark Saint Alaick; 18-10-2011 at 08:51 PM.
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