Re: नेहरु भी चाहते थे कश्मीर में जनमत संग्रह
9. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी को अपनी रिपोर्ट में 6 जुलाई, 1951 को स्टेट्समैन में 9 जुलाई, 1951 को प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार पंडित नेहरू ने कहा, "कश्मीर को गलत तौर पर भारत और पाकिस्तान के बीच एक इनाम के रूप में देखा गया है. लोग शायद भूल जाते हैं कि कश्मीर कोई बिकाऊ माल या अदला-बदली की चीज़ नहीं है. उसका अपना अलग अस्तित्व है और वहाँ के लोग ही अपने भाग्य के अंतिम निर्णायक हो सकते हैं. यहीं पर एक संघर्ष फल-फूल रहा है, युद्धभूमि में नहीं, बल्कि जनमानस में."
10. 11 सितंबर, 1951 को संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि को अपने पत्र में पंडित नेहरू ने लिखा, "भारत सरकार न केवल इस बात को दृढ़तापूर्वक दोहराती है कि उसने इस सिद्धांत को माना है कि जम्मू तथा कश्मीर के विलय के जारी रहने के सवाल का हल जनतांत्रिक तरीके से संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में एक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जनमत-संग्रह के द्वारा हो, बल्कि वो इस बात के लिए भी चिंतित है कि इस जनमत-संग्रह के लिए ज़रूरी हालात जितनी जल्दी हो सके तैयार किए जाएँ."
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