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Old 19-10-2011, 05:22 PM   #8
singhtheking
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Default Re: नेहरु भी चाहते थे कश्मीर में जनमत संग्रह

वचनबद्धता

11. अमृत बाज़ार पत्रिका, कलकत्ता, में 2 जनवरी, 1952 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय विधानमंडल में डॉ. मुकर्जी के इस प्रश्न के जवाब में कि कांग्रेस सरकार उस एक तिहाई इलाके के बारे में क्या करने जा रही है जिस पर अब भी पाकिस्तान का कब्ज़ा है, पंडित नेहरू ने कहा, "यह भारत या पाकिस्तान की संपत्ति नहीं है. इस पर कश्मीरी लोगों का हक है. जब कश्मीर का भारत में विलय हुआ था, तब हमने कश्मीरी लोगों के सामने यह स्पष्ट कर दिया था कि अंततः हम उनके जनमत-संग्रह के फैसले का सम्मान करेंगे. अगर वो हमें बाहर निकल जाने के लिए कहते हैं, तो मुझे बाहर आने में कोई हिचक नहीं होगी. हम मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र तक ले गए और हमने शांतिपूर्ण हल के प्रति अपना वचन दिया है. एक महान राष्ट्र होने के नाते उससे पलट नहीं सकते. हमने अंतिम हल का सवाल कश्मीर के लोगों पर छोड़ दिया है और हम उनके फ़ैसले पर अमल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं."

12. भारतीय संसद में 7 अगस्त, 1952 को अपने वक्तव्य में पंडित नेहरू ने कहा, "मैं यह बात एकदम स्पष्ट कर देना चाहूंगा कि हम इस मूलभूत प्रस्ताव को स्वीकार करते हैं कि कश्मीर का भविष्य अंततः वहाँ के लोगों की सद्भावना और इच्छा से निर्धारित किया जाएगा. इस मामले में इस संसद की सद्भावना और इच्छा का कोई महत्व नहीं है, इसलिए नहीं कि संसद के पास कश्मीर प्रश्न को हल करने कि शक्ति नहीं है, बल्कि इसलिए कि किसी भी तरह की ज़बरदस्ती उन सिद्धांतों के खिलाफ़ होगी जिन्हें यह संसद मानती है. कश्मीर के लिए हमारे दिलों और दिमागों में बहुत जगह है और अगर वो किसी निर्णय या प्रतिकूल परिस्थिति के कारण भारत का अंग नहीं रहता तो यह हमारे लिए बहुत कष्ट और संताप की बात होगी. फिर भी, अगर, कश्मीर की जनता हमारे साथ नहीं रहना चाहती तो उन्हें अपनी राह जाने का पूरा हक है. हम उन्हें उनकी इच्छा के विरूद्ध रोक कर नहीं रखेंगे, चाहे हमारे लिए यह कितनी ही कष्टदाई क्यों न हो. मैं ज़ोर देकर कहना चाहता हूँ कि सिर्फ़ कश्मीर के लोग ही कश्मीर के भाग्य का निर्णय कर सकते हैं. ऐसा नहीं है कि हमने संयुक्त राष्ट्र संघ से और कश्मीर की जनता से सिर्फ़ ऐसा कहा है, हमारा यह दृढ़ विश्वास है और यह उस नीति पर आधारित है जिसका हम पालन करते रहे हैं, सिर्फ़ कश्मीर में ही नहीं बल्कि सब जगह. हालांकि इन पाँच सालों में हमारे सब कुछ करने के बाद भी बहुत परेशानी और खर्चा हुआ है, हम स्वेच्छा से छोड़ने के लिए तैयार हैं यदि हमारे सामने यह स्पष्ट हो जाए कि कश्मीर के लोग चाहते हैं कि हम चले जाएं. हम चाहे कितना भी उदास अनुभव करें, हम लोगों की इच्छा के विरूद्ध रुकने वाले नहीं हैं. हम खुद को संगीन की नोक पर उनके ऊपर काबिज नहीं करना चाहते."
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