Re: कतरनें
बनारस के घाटों पर कल होगा अदभुत नजारा
वाराणसी ! उत्तर प्रदेश में देश की धार्मिक और सांस्कृतिक नगरी वाराणसी के ऐतिहासिक गंगा घाटों पर कल देव दीपावली पर देवलोक का नजारा देखने को मिलेगा । नीचे कल कल बहती सदा नीरा गंगा की लहरें, घाटों की सीढियों पर जगमगाते लाखों दीपक एवं गंगा के समानांतर बहती हुई दर्शकों को जनधारा देव दीपावली की नाम से आधी रात तक अनूठा दृश्य प्रस्तुत करती है ।
विश्वास, आशा एवं उत्सव के इस अनुपम दृश्य को देखने के उत्सुक देश विदेश के लोग खिंचे चले आते हैं । प्रमुख घाटों पर तिल रखने की जगह नहीं रहती । दुनिया के कोने कोने से पहुंचे देशी-विदेशी पर्यटकों से शहर के होटल एवं धर्मशालाएं पूरी तरह भर गयी हैं । इस अदभुत नजारों को दिखाने का फायदा नाविक भी उठाते हैं और किराये कई गुना बढा देते हैं ।
देव दीपावली का यह तिलस्मी आकर्षण अब अंतर्राष्ट्रीय रूप लेता जा रहा है । दीपावली के पद्रह दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा को काशी में गंगा के अर्द्ध चन्द्राकार घाटों पर दीपों का अद्भुत जगमग प्रकाश देवलोक जैसा वातावरण प्रतुत करता है । पिछले दस-बारह साल में ही पूरे देश एवं विदेशों में आकर्षण का केन्द्र बन चुका देव दीपावली महोत्सव देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी की संस्कृति की पहचान बन चुका है ।
गंगा के करीब ।0 किलोमीटर में फैले अर्द्धचन्द्राकार घाटों तथा लहरों में जगमगाते-इठलाते बहते दीप एक अलौकिक दृश्य उपस्थित करते हैं । कल शाम होते ही सभी घाट दीपों की रोशनी से नहा उठेंगे ।
शाम गंगा पूजन के बाद काशी के सभी 80 घाटों पर दीपों की लौ जगमगा उठेगी । गंगा घाट ही नहीं अब तो नगर के तालाबों, कुओं एवं सरोवरों पर भी देव दीपावली की परम्परा बन चुकी है ।
देव दीपावली महोत्सव काशी में सामूहिक प्रयास का अदभुत नमूना पेश करता है । बिना किसी सरकारी मदद के लोग अपने घाटों पर लोग न केवल दीप जलाते है बल्कि हफ्तों पूर्व से घाटों की साफ सफाई में जुट जाते हैं ।
कल के ही दिन दशाश्वमेध घाट पर बने राष्ट्र्रीय राजधानी दिल्ली स्थित इंडिया गेट की प्रतिकृति पर सेना के तीनों अंगों के जवानों द्वारा देश के लिए शहीद जवानों को श्रद्धासुमन अर्पित किया जाता है तथा सेना के जवान बैंड की धुन बिखेरते हैं ।
शरद ऋतु को भगवान श्रीकृष्ण की महा रासलीला का काल माना गया है । श्रीमदभागवत गीता के अनुसार शरद पूर्णिमा की चांदनी में श्रीकृष्ण का महारास सम्पन्न हुआ था । एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शंकर ने देवताओं की प्रार्थना पर राक्षस त्रिपुरा सुर का वध किया था । परम्परा और आधुनिकता का अदभुत संगम देव दीपावली धर्म परायण महारानी अहिल्याबाई से भी जुडा है । अहिल्याबाई होल्कर ने प्रसिद्ध पंचगंगा घाट पर पत्थरों से बना खूबसूरत हजारों दीप स्तंभ स्थापित किया था जो इस परम्परा का साक्षी है । आधुनिक देव दीपावली की शुरुआत दो दशक पूर्व यहीं से हुई थी ।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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