(15 नवंबर को पुण्यतिथि पर)
विनोबा भावे ने सैद्धांतिक और व्यावहारिक रुप से सत्याग्रह को अपनाया
भूदान आंदोलन के जरिए समाज के भूस्वामियों और भूमिहीनों के बीच की गहरी खाई को पाटने में अतुल्य योगदान देने वाले आचार्य विनोबा भावे को महात्मा गांधी का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी कहा जाता है। गांधी शांति प्रतिष्ठान के सचिव सुरेंद्र कुमार के अनुसार महात्मा गांधी की ओर से वर्ष 1940 में विनोबा को पहला व्यैक्तिक सत्याग्रही कहा जाना इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने सैद्धांतिक और व्यावहारिक रुप से सत्याग्रह को अपनाया। विनोबा भावे भूदान आंदोलन को यज्ञ की संज्ञा दिया करते थे और उनका कहना था कि आंदोलन में भागीदारी करनी पड़ती है, जबकि यज्ञ में आहूति देनी पड़ती है। लिहाजा भूदान आंदोलन के तहत भूस्वामियों को अपनी भूमि की आहुति देनी पड़ी।
सुरेंद्र कुमार ने कहा, ‘‘विनोबा भावे ने भूदान के जरिए समाज में गहराई तक मौजूद असमानता को दूर करने में काफी हद तक सफलता हासिल की, हालांकि बाद में उस विचार को पूरी तरह कार्यान्वित नहीं किए जाने के कारण उनका सपना पूरी तरह साकार नहीं हो पाया।’’ उन्होंने कहा कि अगर विनोबा ने वह आंदोलन नहीं शुरू किया होता, तो समाज में फैली असमानता से उपजे असंतोष से देश में बड़े पैमाने पर हिंसा भी हो सकती थी। विनोबा मूल रूप से एक सामाजिक विचारक थे और उनका जन्म 11 सितंबर 1895 को महाराष्ट्र के कोलाबा जिला के गागोदे गांव में हुआ था। शुरुआती शिक्षा के बाद वह संस्कृत में अध्ययन के लिए काशी गए। विनोबा के नेतृत्व में तेलांगाना आंदोलन के दौरान उस क्षेत्र की एक हरिजन बस्ती में भूदान आंदोलन की नींव पड़ी और जल्द ही यह पूरे देश में भूमिहीन मजदूरों की समस्या के हल के तौर पर लोकप्रिय हो गया। इस आंदोलन के तहत उत्तर प्रदेश, बिहार, केरल, उड़ीसा समेत कई राज्यों में बड़े-बड़े भूखंडों के मालिकों ने अपनी जमीन दान दी। देश की आजादी के आंदोलन के दौरान विनोबा को कई बार जेल जाना पड़ा। अपने आंदोलन के दौरान 13 वर्षों तक देश के विभिन्न भागों की पदयात्रा करने वाले विनोबा का निधन 15 नवंबर 1982 को हुआ। आचार्य विनोबा भावे को वर्ष 1958 में सामुदायिक सेवा के लिए पहले मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया और वर्ष 1983 में उन्हें मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया।