Re: विदेश में हिन्दी लेखन
झील जैसी गहरी आँखों और चाँदनी जैसे रंग वाली बेटी कब जवान होकर अपनी स्वतंत्र ईकाई बन गई, पता ही नहीं चला।
कॉलेज में काफ़ी लड़के विधु के पीछे लगे रहते थे। धरणी को थोड़ी असहजता होती। बातों-बातों में कभी इस का उदाहरण दे और कभी उस का। ज़्यादातर अपनी ही माँ की बातों को अनजाने ही दोहरा देती। फिर आधुनिक माँ बन जाती। कहती, अपने पाँव पर खड़ी होकर व्यस्क निर्णय लेना। पर निर्णय क्या लेना चाहिए, अपरोक्ष रूप से यह भी बता देती। पशु-पक्षी भी तो एक रंग-रूप की ही जोड़ी बनाते हैं। मूल्य समान हों, अपने जैसी ही पृष्ठ-भूमि हो तो ज़िन्दगी आसान हो जाती है। अपने देशी लड़कों में स्थिरता होती है, शादी के बाद ''बार'' में नहीं जाते, घर पत्नी और बच्चों के पास लौटते हैं। वही बोली, वही खाना-पीना, वही मूल्य, वही रंग-रूप की समता। कम से कम बाहरी बातों का संघर्ष तो नहीं रहता, अन्दर की हज़ार बातें होती हैं - ताल-मेल करने को।
विधु बस सुनती रहती थी। उसे लगता जैसे उसके ऊपर अपरोक्ष रूप से भार रखा जाता है, जो उसे मंज़ूर नहीं। पर पटक सके, इतनी ताक़त भी तो नहीं। उसके मानस-पटल पर अमरीकी लड़कों की तस्वीर थी। उसे छह फ़ुट लम्बे क़द, बलिष्ठ शरीर, गहरी धँसी आँखें, चेहरे का रेखांकन करती नुकीली ठुड्डी और जबड़े की हड्डियों में ही पुरुषत्व का आकर्षण दीखता।
सागर और धरणी इसे बेटी का बचपना समझते। फिर अचानक ही एक दिन बड़ी बेटी का निमंत्रण-पत्र मिला। मुझे मालूम था कि आप कभी स्वीकृति नहीं देंगे इसलिए मैंने आठ अगस्त को एरिक से शादी करने का निर्ण्य कर लिया है। अगर आप चाहें तो आकर शादी में आकर आशीर्वाद दे सकते हैं।
सागर के लिए यह बहुत बड़ा झटका था। उन्हें लगा जैसे उनका स्वाभिमान, इज़्ज़त, मान्यताएँ, सब कुछ, जिसमें वह विश्वास रखते थे, टूट- टूट कर बिखर गया। नपुंसक और दयनीय क्रोध में आकर वह चीख़ते, चीज़ें पटक डालते। विधु दरवाज़ों की ओट में खड़ी होकर काँपती।
|