Re: श्री कृष्ण-गीता (हिन्दी पद्द-रूप में)
छ्ठा अध्याय
योगी के लक्षण
भगवान-
कर्मों के फ़ल का ध्यान न कर
सत्कर्म किया करता जो नर
चाहे हो वह कर्मों का भोगी
हे अर्जुन! वह तो भी योगी
जिसको कर्मों से प्यार नहीं
अपने मन पर अधिकार नहीं
वह नर योगी हो कर है भोगी
है पाप उसे कहना योगी
योगी कहलाना चाहे जो
इस पद को पाना चाहे जो
वह इच्छाओं से रहे परे
निष्काम हुआ वह कर्म करे
जो इच्छाओं का दास नहीं
जिसमें विषयों का वास नहीं
वह नर योगी कहलाता है
उसको दुख नहीं सताता है
है अपना शत्रु आप हीं नर
और आप ही अपना है हितकर
अपने मन को अपने वश कर
अपने तन को अपने वश कर
है कर्म किया करता जो नर
वह जान आप अपना हितकर
जो खुद हीं मन के वश में हो
जो खुद हीं तन के वश में हो
है कर्म किया करता, अर्जुन
वह अपना शत्रु आप है सुन
वह निशि-दिन पाप कमाता है
जीवन को नरक बनाता है
उसको सुख कभी न मिल सकता
उसका मन कभी न खिल सकता
अर्जुन, तन-मन के हो अधीन
तू क्यों बनता है कर्म-हीन?
अपने तन-मन को वश में कर
उठ हो जा लड़ने को तत्पर
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