Re: श्री कृष्ण-गीता (हिन्दी पद्द-रूप में)
ध्यान-योग
हे अर्जुन! जो नर वन में जा
और सुन्दर-स्वच्छ धरातल पा
स्थापित कर ऐसे आसन को
अति ऊँचा और न नीचा जो
फ़िर उस पर बिछा कुशा आला
और सुन्दर सी एक मृग-छाला
अपने तन को अपने वश कर
अपने मन को अपने वश कर
उस पर आसीन करे खुद को
और ध्यान में लीन करे खुद को
गर्दन और कमर को रख सीधा
और अपने तन को अचल बना
निज नाक-नोक पर टिका नजर
देखता नहीं जो इधर-उधर
अपने मन को यों कर अधीन
जो मुझमें होता है ध्यान-लीन
वह परम मोक्ष को पाता है
मेरे समान हो जाता है
जग के जितने भी आकर्षण
उन सब से रोक के अपना मन
जो मुझमें ध्यान लगाता है
उसका मन न डोल पाता है
उसका मन रहता है ऐसे
बंद वायु में दीपक जैसे
उसका मन भटक नहीं सकता
विषयों में अटक नहीं सकता
वह नर पापों से दूर रहे
सुख से हरदम भरपूर रहे
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