Quote:
Originally Posted by ranveer
मेरी नजर में यदि नैतिकता (धार्मिक लोगों के लिए ) तथा पशु के लिए सहानुभूति वाली बात हटाकर सोचा जाए तो मांस से कोई वैसा नुक्सान नहीं है /
मांस खाने के फायदे में केवल प्रोटीन ही शामिल नहीं है इसके अतिरिक्त बिटामिन (बी ६),पोटेशियम ,फास्फोरस आदि भी प्राप्त होतें हैं
तार्किक बात तो यह है की वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार मानव शरीर के उचित पोषण के लिए एनिमल प्रोटीन आवश्यक है ( हालांकि दूध में भी ये मिलता है )
मानव शरीर की बनावट वैसी नहीं है ये कहना उपयुक्त नहीं है /आधुनिक विकसित मानव के विकास के ५ लाख वर्ष के इतिहास में मात्र इधर के ५००० वर्षों में ही इसने ठीक से कृषि करना सिखा है /इसके पूर्व उनका आहार मुख्य रूप से मांस ही रहा है / और जहां तक मेरी जानकारी है आग के आविष्कार के पूर्व तो मांस को पकाकर भी नहीं खाया जाता था /अगर मनुष्य के पाचन तंत्र की बनावट वैसी नहीं होती तो इनका अस्तित्व ही नहीं होता /
नैतिक रूप के कहें तो मै भी इसका समर्थन नहीं करता
पर डार्विन के सिद्धांत याद आती है तो सब भूल जाता हूँ और मजे से खाता हूँ /
|
अगर अहिंसा के प्रति नैतिकता और पशु जीवन के प्रति सहानुभूति को निकाल भी दिया जाय तब भी पोषण, आरोग्य और पर्यावरण के दृष्टिकोण से मांसाहार अनुचित है।
प्रोटीन वही उत्तम है जो हमारा शरीर स्वयं निर्मित करे, पशु- प्रटीन सेच्युरेटेड होता है, क्यों कि वह पूर्व ही पूर्णता पा चुका होता है। ऐसे प्रोटीन के मस्तिक्ष में जमा हो जाने की अधिक सम्भावनाएं होती है। जिस से अल्जाईमर्स नामक बिमारी की सम्भावनाएं प्रबल होती है।
नवीनत्तम शोध कहती है कि प्रागैतिहासिक मानव शाकाहारी भी था।
डार्विन का सिद्धांत तो विकासवाद का है, एक कोशिय जीव से पंचेन्द्रीय पशु और मानव तक का, उन के सिद्धांत से तो अधिक विकसित जीव को आहार बनाना प्रकृति का क्रूरत्तम शोषण है। विकसित का विनाश है। संसाधनों का दुरपयोग है। अगर इस बात को नज़रअंदाज़ किया जाता है तो यह आग मानव के पेरों तक पहुंचेगी।