Re: आइए भारत को भ्रष्टाचार मुक्त बनाएं
अनिल जी
आपने बहुत ही सुन्दर बात कही की ‘’ कानून ’’ होने से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं ‘‘ कानून का पालन होना ’’
यदि राजनितिक दृढ इच्छाशक्ति हो तो लोकपाल जैसे कानून की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी | परन्तु ये भी देखना जरुरी है एक लोकतंत्र के संक्रमण काल में भारत की राजनीति में मजबूत इच्छाशक्ति वाले लोगों की भारी कमी है |
मै दो राज्यों की बात करता हूँ बिहार और झारखण्ड | बंटवारे के बाद बिहार में संसाधनों की कमी के बावजूद विकास तेजी से हुआ वहीँ झारखंड में भ्रष्टाचार और लूट खसोट मौजूद रहा | दोनों में अंतर ये रहा की बिहार में शासन एक कुशल व्यक्ति के हाथ में था और झारखंड में अयोग्य लोगों के | वहाँ कोई भी ऐसा विभाग नहीं है जहां पर नेताओं और अफसरों ने लूट खसोट न मचाई हो , यहाँ तक की न्यायपालिका पर भी सवाल उठ रहें हैं जिसका गठन विभाजन के बाद हुआ है | अब सवाल ये उठता है की यदि झारखंड में सारी राजनैतिक पार्टी ही भ्रष्ट है तो आम जनता किसे सत्ता पर बैठाए ? क्या ऐसी स्थिति में एक ऐसे कानून की आवश्यकता नहीं है जहां पर आम पब्लिक सवाल कर सके ?
दूसरी बात ये कहना चाहूँगा की ऐसा नहीं है की बिहार में भ्रष्टाचार नहीं है ..आज भी ठेकेदारी चलती है ..आज भी ब्यूरोक्रेट में घुस का बोलबाला है ..आज भी सार्वजनिक क्षेत्र में लूट खसोट है ...आज भी जनता दरबार के नाम पर लोगों को ठगा जाता है .. बस अंतर ये है की पहले से थोडा कम हुआ है | आपकी जानकारी के लिए बता दूँ की नितीश कुमार भी कुछ मामलों में असहाय होतें हैं और उन्हें भी चुपचाप रहना पड़ता है | हाँ लेकिन संरचनात्मक और आधारभूत विकास को पब्लिक के सामने दिखाने का भी प्रयास करतें हैं |
अब केन्द्र की बात की जाए | भारत में वर्तमान में कई पार्टियां सक्रिय है जो देश के विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करती है | प्रत्येक पार्टी से चुनकर आने वाले जनप्रतिनिधियों का हित उनके क्षेत्र से जुडा होना चाहिए ताकि लगे की सच में वो उस क्षेत्र के प्रतिनिधि हैं ,पर वास्तविकता में उनका हित खुद का और खुद की पार्टी से जुडा होता है ताकि किसी तरह वे सता में बने रहें | ऐसे में आम जनता मजबूर हो जाती है ये सोचने के लिए की कहीं हमने गलत आदमी को तो नहीं चुना | एक बार चुन लेने के बाद फिर वो पांच साल के बाद ही उसे पुनः वोट देने पर विचार कर सकती है ..आखिर तब तक के लिए कोई तो हथियार होना चाहिए जिसमे वो अपने प्रतिनिधि से कड़े सवाल कर सके | जब एक डर उन सांसदों में बैठ जाएगा की लोकपाल जैसे काननों के द्वारा पुब्लिक हमारे कार्यों की समीक्षा कर सकती है तो कुछ तो गलत काम करने से बचेंगे |
अच्छे लोगों को चुनने में अक्सर जनता बेवक़ूफ़ बन जाती है , क्यूंकि भारत की जनता अभी तक न तो राजनितिक रूप से जागरूक है और न ही विकसित , तो ऐसे में ये मानना की हम खुद ही अछे लोग चुनकर संसद में क्यूँ नहीं भेजते.... बेमानी हो जाएगा |
अब ब्यूरोक्रेट की बात करता हूँ | मेरे कई करीबी मित्र ias , ips और एलाइड सेवा में मौजूद हैं | जो कोलेज के दिनों में कुछ अच्छे काम करने के लिए संकल्प लेते थे | अब वो पैसे कमाने का कोई भी मौक़ा नहीं चुकते ..स्वम खुलकर गलत तरीके से पैसे कमाने की बात स्वीकारी है | कई बार तो ये कहतें है की यदि हमने ऐसा नहीं किया तो कार्य करना दूभर हो जाएगा क्यूंकि पूरा तंत्र एक दूसरे से जुडा है जिसमे भ्रष्टाचार व्याप्त है | क्लास २ के अफसरों को हर हालत में उनकी बात माननी पड़ती है , चाहे या न चाहें | अक्सर मै भी सोचने लग जाता हूँ की कहीं मै ही गलत नहीं सोचता ..पर बाद में खुद को देखने पर कोई दुःख नहीं होता | आप सोच सकतें हैं की जब नए लोग जो ये सोचकर ज्वाइन करतें हैं की कुछ अच्छा काम करेंगे वे खुद इसमें लिप्त हो जातें हैं तो किस लेवल पर भ्रष्टाचार होगा |
अधिकतर सांसदों और मंत्रियों के pa ( पर्सनल और ओफिसिअल ) , बड़े बड़े आयोगों के प्रमुख , संस्थानों के प्रमुख , सार्वजानिक क्षेत्र के प्रमुख , आर्थिक और सामाजिक सलाहकार ,आदि आदि सब यही आईएस और एलाइड ग्रुप के होतें हैं | ये जनप्रतिनिधियों के काफी करीब होतें हैं और निति निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं | यहाँ तक की इन मंत्रियों के भाषण भी वही तैयार करतें हैं | इनका जबरदस्त प्रभाव होता है | अब यहाँ पर ये सोचना बहुत जरुरी है की क्या सभी जनप्रतिनिधि नितीश कुमार की तरह सशक्त इच्छाशक्ति वाले होतें हैं ? शायद नहीं ?
ऐसे में उनकी ही चलती है | और वे भी देश को लूटने का मौक़ा नहीं चुकते |
आपको मालूम ही होगा की ‘’मनरेगा” प्रोग्राम को कानून का दर्जा क्यूँ दिया गया ? लोगों को क्यूँ १०० दिन के रोजगार की गारंटी दी गयी ..और पूरा न होने पर इसके लिए दंड का प्रावधान भी किया गया | यही प्रोग्राम आज तक का देश का सर्वाधिक सफल प्रग्राम बन सका ...हालांकि कुछ राज्यों में इसमें भी व्यापक भ्रष्टाचार पाए गए , पर अधिकतर राज्यों में ये अन्य रोजगार प्रोग्रामों से ज्यादा सफल हो सका | क्या इसका श्रेय इस बात को नहीं दिया जाए की इसे कानून बनाकर लागू किया गया इसलिए सफल हो सका ?
कुल मिलाकर यही कह सकतें है की जागरूकता और जनप्रतिनिधि के चुनाव में परिपक्वता आ जाने के पूर्व लोकपाल जैसे कानूनों की सख्त आवश्यकता है ..जब सामाजिक और राजनैतिक संरचना विकसित हो जायेगी तो हमें स्वं लोकपाल जैसे कानून की आवश्यकता महसूस नहीं होगी |
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ये दिल तो किसी और ही देश का परिंदा है दोस्तों ...सीने में रहता है , मगर बस में नहीं ...
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