Re: दोहावली
कैसे निबहैं निबल जन, करि सबलन सों गैर ।
रहिमन बसि सागर बिषे, करत मगस सों बैर ॥
काह कामरी पागरी, जाड़ गए से काज ।
रहिमन भूख बुताइए, कैस्यो मिलै अनाज ॥
कहा करौं बैकुंठ लै, कल्प बृच्छ की छांह ।
रहिमन ढाक सुहावनै, जो गल पीतम बांह ॥ ॥
कुटिलत संग रहीम कहि, साधू बचते नांहि ।
ज्यों नैना सैना करें, उरज उमेठे जाहि ॥
को रहीम पर द्वार पै, जात न जिय सकुचात ।
संपति के सब जात हैं, बिपति सबै लै जात ॥
गगन चढ़े फरक्यो फिरै, रहिमन बहरी बाज ।
फेरि आई बंधन परै, अधम पेट के काज ॥
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