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Old 23-02-2012, 10:49 PM   #21
sombirnaamdev
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Default Re: Jokes in Haryanavi

हरा साग

एक ताई कै तीन-चार बाळक थे । ताई रोज उन ताहीं हरा साग बणा कै दे देती - कदे सिरसम का, कदे चणे का, कदे बथुए का ।
बाळक बोले - मां, रोज-रोज हरा साग मत बणाया कर, कदे दूसरा भी बणा लिया कर ।
ताई बोल्ली - खाओ चाहे मत खाओ, मैं तै रोज हरा साग ए बणाऊंगी ।
बाळक फेर बोले - इसतैं आच्छ्या तै हामनै गळामा घाल-कै खेत में चरा ल्याया कर !


तरक्की

सतपाल (सत्तू) सोलह साल का हो गया, गांव के स्कूल से दसवीं पास कर ली, पर कभी किसी बड़े शहर में नहीं गया था । पेपर होने के बाद इस बार उसका बड़ा भाई उसे अपने साथ बंबई ले गया ।
बंबई जाकर सत्तू सोचने लगा कि यहां इतनी तरक्की का राज क्या है । उसने देखा कि वहां छोटे-छोटे कामों के लिए ज्यादा वक्त बरबाद नहीं करना पड़ता और उस बचे हुए समय में काम करने से तरक्की होती है । गांव में तो दीर्घशंका (जंगल-जोहड़/Latrine) के लिए एक कोस दूर जाना पड़ता था और बंबई में या तो घरों में ही गुसलखाने हैं या फिर लोग घरों के आस-पास या रेलवे लाइन के किनारे बैठकर अपना काम निपटा देते हैं - इससे टाइम की बचत होती है और यही तरक्की का राज है ।
गांव वापस आकर सत्तू गांव के बिल्कुल साथ किसी के घर के पीछे 'रोग काटने' बैठ जाता । जब कई दिन हो गये तो गांव के कुछ बुजुर्ग लोगों ने उसे टोक दिया । सत्तू गुस्से में आकर बोला :
"तुम सारे बूढे नाश की जड़ सो - ना तुम खुद तरक्की कर सकते और ना दूसरां नै करण देते" !!!!
दूबळधन और इस्सरहेड़ी

समय का हेर-फेर देखो । आज गेहूं की भरपूर उपज है । 1970 के आसपास देश में गेहूं की कमी थी और गेहूं का 'ब्लैक' होता था । उस समय गेहूं की सरकारी खरीद का मूल्य हरयाणा में कुल 74 रुपये क्विंटल होता था जबकि दिल्ली में गेहूं 100 रुपये क्विंटल के आस-पास बिक जाता था । हरयाणा बार्डर से लोग गेहूं दिल्ली लाते थे और पुलिस उन्हें पकड़ लेती थी । लोग कच्चे रास्ते से भी 1-2 बोरी गेहूं ऊंट पर लाद कर पार कर देते थे ।

झज्जर जिले के बेरी कस्बे से आगे दूबळधन एक काफी बड़ा गांव है । उस गांव का एक जवान चौधरी एक ऊंट पर गेहूं की दो बोरी रखकर रात को कच्चे रास्ते से दिल्ली बार्डर की तरफ चला - नजफगढ की मंडी में बेचने के लिए । सुबह 4 बजे के करीब दिल्ली बार्डर के गांव इस्सरहेड़ी के पास कच्चे रास्ते से पहुंच गया । वहां पुलिस पहले ही छिपी बैठी थी । जब पुलिस वाले पास आये तो चौधरी ने ऊंट को छोड़कर गांव की तरफ दुड़की* लगाई - सोचा कि ये इस्सरहेड़ी भी दूबळधन की तरह बड़ा गांव होगा, इसकी गलियों में गुम हो जाऊंगा और पुलिस के हाथ नहीं आऊंगा ।

इस्सरहेड़ी दरअसल एक छोटा सा गांव है । चौधरी एक गली में घुसा और थोड़ी ही देर में गांव का दूसरा सिरा आ गया । फिर दूसरी गली की तरफ भागा और एक मिनट बाद फिर गांव का दूसरा छोर आ गया । वहां आकर वो रुक गया । जब पुलिस वाले पास आये तो बोला : "ओ भाई, मन्नै बेशक पकड़ ल्यो, पर पहल्यां न्यूं बताओ अक यो गाम बसाया किस अनाड़ी नै - इसतैं तै मेरी एक डाक बी ना उटती" !!


  • (दुड़की) - दौड़
  • (इसतैं तै मेरी एक डाक बी ना उटती) – इससे तो मेरी एक छलांग भी बर्दाश्त नहीं होती.


"न्यूं भी तै हो सकै सै"

भरपाई का आपणे खसम रळडू गैल कसूता रौळा हो-ग्या, अर रळडू घर छोड कै चल्या गया ।
जब रळडू कई दिन तक ना आया, तै भरपाई का छोरा सुन्डू आपणी मां तैं बोल्या - ए मां, मन्नैं तै इसा लागै सै कदे बाबू नै दूसरा ब्याह कर लिया हो अर कितै बाहर रहण लाग-ग्या हो"।
न्यूं सुण-कै भरपाई नै सुन्डू कै एक रहपटा मारा अर न्यूं बोल्ली - "कमीण, इतणा भूंडा बोल्या करैं, न्यूं भी तै हो सकै सै अक तेरा बाबू किसै ट्रक कै नीचै आ-ग्या हो !!"


"जी तोड़ रहया सै"

एक बै भाई, गाम में एक आदमी मर-ग्या । उसके घर वाले उसनै अंतिम संस्कार तैं पहल्यां न्हुआवण (नहलाने) लाग-गे - उस (मुर्दे) नै कुर्सी पै बैठा कै ।
घणी हाण (देर) हो-गी न्हुवाते-न्हुवाते - सारे कत्ती दुखी हो-गे । वो (मुर्दा) कदे इस साइड में पड़-ज्या, अर कदे दूसरी साइड में पड़-ज्या !
एक भाई कत्ती दुखी हो-ग्या अर छो में आ कै बोल्या - ऐ मेरे यार, मरैं तै सब सैं, पर तू तै कत्ती-ए जी तोड़ रहया सै !!
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