15-03-2012, 02:29 PM
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Re: कुतुबनुमा
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Originally Posted by Dark Saint Alaick
व्यर्थ है विरोध के लिए 'विरोध'
लोकसभा में बतौर रेल मंत्री पहली बार बजट पेश कर रहे दिनेश त्रिवेदी ने बुधवार को जब कहा कि रेलवे बहुत कठिनाई के दौर से गुजर रही है और उसके कंधे और कमर झुक गई है, तो लगा पिछले आठ बरस में जो रेल बजट पेश हुए, उनमें कहीं न कहीं इस सचाई को वास्तव में छिपाया गया कि दुनिया की सबसे बड़ी परिवहन व्यवस्था भारतीय रेल उस खुशनुमा हालत में नहीं है, जैसी कि बजट में दिखाई जाती रही है, वरना वर्तमान रेल मंत्री को यह नहीं कहना पड़ता कि रेलवे ‘आईसीयू’ में है और अगर यात्री किराए में बढ़ोतरी नहीं की गई, तो हालात काफी खराब हो सकते हैं। रेलवे की परिचालन लागत में लगातार हो रही बढ़ोतरी के अलावा सुरक्षा व खानपान समेत अनेक ऐसे विषय हैं, जहां खर्च निरन्तर बढ़ रहा है। इसी को ध्यान में रखकर रेल मंत्री ने सभी श्रेणियों के रेल यात्री किराए में दो पैसे से 30 पैसे प्रति किलोमीटर वृद्धि करने के साथ रेल टिकट की न्यूनतम दर 4 रूपए से बढ़ाकर 5 रूपए करने की घोषणा की है। अब भले ही विपक्षी दल ‘परम्परा’ के तहत किराए में बढ़ोतरी का विरोध करें या तृणमूल कांग्रेस के ही कोटे से मंत्री बने दिनेश त्रिवेदी की पार्टी की मुखिया भी उन पर किराए में बढ़ोतरी वापस लेने का दबाव बढ़ाएं, लेकिन रेल बजट में जो कुछ सकारात्मक प्रस्ताव किए गए हैं, उनसे परिचालन लागत को कम करने में तो अवश्य मदद मिलेगी; साथ ही रेलवे को अपनी क्षमता बढ़ाने का अवसर भी प्राप्त होगा। इसके अलावा रेल मंत्री रेलवे सुरक्षा को अब भी कमजोर पहलू मानते हुए, उसे यूरोप और जापान जैसी विश्व की आधुनिक रेल प्रणालियों वाली सुरक्षा की कसौटी पर खरा उतारना चाहते हैं । आंकड़े भी कहते हैं कि देश में 40 प्रतिशत से अधिक रेल दुर्घटनाएं बिना चौकीदार वाले फाटकों पर होती हैं अर्थात स्पष्ट है कि यात्री को सुरक्षित रेल सफर चाहिए, रेल में मिलने वाला खाना भी बेहतर होना चाहिए और यात्रा भी आरामदायक चाहिए तो कहीं न कहीं जेब तो ढीली करनी पड़ेगी ही। हालात तो हम देख ही रहे हैं। पिछले आठ बरसों में रेल किराया नहीं बढ़ा, तो उसके बदले सुविधाएं भी कितनी बढ़ी? ज़ाहिर है कि केवल विरोध के लिए विरोध देश के रेल परिवहन की दशा नहीं सुधार सकता।
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व्यर्थ है विरोध के लिए 'विरोध' ek dum sahi hai
Last edited by Dark Saint Alaick; 15-03-2012 at 10:44 PM.
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