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Originally Posted by dr. Rakesh srivastava
मित्र डार्क सैंट अलैक जी ;
सच तो यह है कि आपकी प्रतिक्रिया अपने आपमें सदैव एक रचना होती है . मेरी ये ग़ज़ल आप जैसे मसिजीवी को यदि कुछ अधिक ही पसंद आयी तो यह मेरे जैसे प्रशिक्षु रचनाकार के लिए निश्चित ही प्रेरणा व संतोष का विषय है . मैं तो पहले - पहल इस फोरम पर शौकिया ही प्रकट होकर अपनी समझ से तुकबंदी मात्र कर रहा था किन्तु इस फोरम ने मुझमें संभावनाओं का आंकलन कर , मुझे कवि के तमगे से नवाज़ कर , मुझ जैसे चलायमान व्यक्ति को मेरे शौक के प्रति गंभीर बनाने व इससे विमुख न होने देने में महती भूमिका अदा की . सो मै अपनी तरफ से स्वयं में निरंतर सुधार के भरसक प्रयास कर रहा हूँ . इस सन्दर्भ में मुझे सदैव फोरम के समस्त सक्रिय सदस्यों का अमूल्य सहयोग भी मिलता रहा है . जिसके लिए मैं सभी का आजीवन आभारी रहूँगा .
आपने जिस एक और ग़ज़ल का जिक्र किया है उसके सन्दर्भ में मेरा अभी भी विनम्र मत ये है कि वो आम आदमी को पसंद आ सकने वाली गाने योग्य ग़ज़ल थी जबकि ये ग़ज़ल , जैसा कि मेरा अनुमान है ,आपकी राय में ख़ास आदमी द्वारा गाई जा सकती है . प्रसंग जब गाने का चल ही निकला है तो यह बात आपसे साझा करना चाहूंगा कि एक क्षेत्रीय एल्बम निर्माता ने कुछ माह पूर्व मेरी कुछ गजलों में दिलचस्पी लेते हुए मेरे सम्मुख प्रस्ताव विशेष रखा था किन्तु मैंने उसके कद व विस्तार क्षमता को पर्याप्त न मानते हुए विनम्रतापूर्वक असहमति व्यक्त कर दी . क्योंकि मुझमें उचित अवसर की प्रतीक्षा हेतु पर्याप्त धैर्य है और अपने बारे में मेरी ये धारणा है कि मुझे अभी सफलता हेतु काफी लम्बा सफ़र करना होगा . यदि बीच में ही मेरी लय भंग न हुई तो . सम्मेलनों आदि में भी शरीक होने में मेरी दिलचस्पी इस गुणा भाग के चलते नहीं है क्योंकि इससे मेरी प्रैक्टिस बर्बाद हो जायेगी और आप तो जानते ही हैं कि भूखे भजन न होय गोपाला . हाँ ये मलाल अवश्य है कि कम्पयूटर विधा में अकुशल होने के कारण मैं अपने बल पर अपनी रचनाओं को मनचाहा विस्तार नहीं दे पा रहा हूँ .
अंत में कृतज्ञता व्यक्त करते हुए इतना भर कहूँगा कि आपने मेरी रचना या मेरे बारे में जो भी राय व्यक्त की है उससे मै संकोच अनुभव कर रहा हूँ और कामना करता हूँ कि ये संकोच मुझमें पर्याप्त विनम्रता भी लाये.
आशा है आप, साथियों समेत, मुझ पर निरन्तर नज़र बनाए रखते हुए मेरा मार्ग दर्शन करते रहेंगे. आपका बहुत - बहुत धन्यवाद
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धन्यवाद, कविवर ! हम आपकी लय कभी भंग नहीं होने देंगे, यह वादा है ! मैं आपकी इस राय से पूर्णतः सहमत हूं कि दोनों गज़लों में आम और ख़ास का फर्क है ! आपने उचित अवसर के लिए दोयम प्रस्ताव को ठुकराना उचित समझा, यह भी मुझे पूरी तरह उचित कदम लगा ! जीवन में सुअवसर कम ही आते हैं और उन्हें पहचान कर उनका तत्काल उपयोग कर लेना ही श्रेष्ठ मनुष्य की सबसे बड़ी आवश्यकता है ! यह जानकारियां हमसे साझा करने के लिए आभार !