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Originally Posted by balamrasia
नेहरु ने पहला विकल्प चुना -मजबूत केंद्रीकृत सत्ता का लेकिन उसका कोई मजबूत आधार होना चाहिए इसकी समझ न उन्हें थी न आज के नेताओं को है. चीन ,पाकिस्तान नक्साल्वाद ,इस्लामिक उग्रवाद और भाषाई कट्टरवाद -ये सब खतरे मुंह बाये खड़े हैं . भ्रष्टाचार अपने चरम सीमा पर है . संसद अपनी गरिमा खो रही है ,न्यायालय अन्यायालय हो चुके हैं मीडिया महा भ्रष्ट है इस पर भी कोई आशावादी है तो दुराशा किसे कहते हैं
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हर देश में समस्याएँ होती ही है, भारत में भी है. आशा है इनका समाधान भी होगा.