Re: एकदम ताज़ा ख़बरें
फादर कामिल बुल्के के सहयोगी डा. दिनेश्वर प्रसाद नहीं रहे
नई दिल्ली। अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ और जनसंस्कृति मंच ने हिन्दी के प्रख्यात विद्वान एवं आदिवासी भाषाओं के विशेषज्ञ तथा आलोचक डा. दिनेश्वर प्रसाद के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। वह फादर कामिल बुल्के के सहयोगी भी थे और उनके प्रसिद्ध हिन्दी शब्दकोश के संपादन में साथ भी दिया था। रांची विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्रोफेसर पद से अवकाशग्रहण करने के बाद वह कई पुस्तकें लिखने में व्यस्त थे। 80 वर्षीय डा. प्रसाद का गत दिनों रांची अस्पताल में निधन हो गया। उनके परिवार में चार बेटियां तथा एक पुत्र हैं। अखिल भारतीय लेखक संघ के संरक्षक प्रख्यात आलोचक डा. नामवर सिंह ने अपने शोक संदेश में कहा कि डा. दिनेश्वर प्रसाद एक सुलझे हुए और गंभीर किस्म के अध्येता थे। उनकी आलोचना दृष्टि बहुत संतुलित थी। वह आदिवासियों की भाषा, संस्कृति तथा साहित्य के गहरे जानकार भी थे। मैं उनसे मिलने रांची जाया करता था। जनसंस्कृति मंच के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डा. रविभूषण ने अपने शोक संदेश में कहा कि वह हिन्दी में विद्वान परम्परा के शिक्षकों की अंतिम कडियों में से एक थे। डा. कुमार विमल के बाद उनका निधन गहरी क्षति है। वह कई आदिवासी भाषाओं के मर्मज्ञ और विशेषज्ञ थे। लोक साहित्य एवं संस्कृति तथा रामचरित मानस पर उनका काम अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस उम्र में उन्होंने अमेरिकी कवि वाल्ट व्हिटमैन की रचनाओं का अनुवाद किया था। जयशंकर प्रसाद की विचारधारा उनकी महत्वपूर्ण आलोचनात्मक पुस्तक है। हिन्दी के प्रसिद्ध आलोचक डा. नंद किशोर नवल. भारत भारद्वाज और डा. मंगल मूर्ति समेत अनेक लेखकों ने उन्हें हिन्दी का प्रख्यात विद्वान बताते हुए उनके निधन को हिन्दी एवं आदिवासी भाषा के लिए अपूरणीय क्षति बताया है। डा. प्रसाद अत्यन्त सज्जन और विनम्र किस्म के लेखक थे जो प्रचार तथा विज्ञापनों से दूर रहते थे।
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
|