भारत और पाकिस्तान, मंजिल एक रास्ते अलग अलग!
पिछले महीने पाकिस्तान के राष्ट्रपति, आसिफ जरदारी भारत आये और मनमोहन सिंह से मुलाकात भी की. फिर से ठन्डे बस्ते में पड़ी भारत-पाक शांति वार्ता की पुरानी धुल लगी हुई फाइलें खोली गयी. इस बीच जरदारी ने मनमोहन सिंह को पाकिस्तान आने का भी न्योता दे दिया. लेकिन भारत में कई लोग इस वार्ता पर ऊँगली उठा रहे हैं, उनका कहना है पाकिस्तान की असली सत्ता तो सेना और isi के पास है और जब तक जेनरल कयानी का मुहर इस वार्ता को नहीं लग जाता, यह सब व्यर्थ है.
आपको याद ही होगा १९९९ में एक तरफ वाजपेयी बस पर लाहौर गए थे और दूसरी तरफ जेनरल परवेज मुशर्रफ ने कारगिल युद्ध करवा दिया. ऐसे में सिविल हुकूमत क्या वास्तव में भारत के साथ शांति वार्ता कर सकती है और कुछ कठिन फैसले ले सकती है, यह एक सोचने वाली बात है.
भारत और पाकिस्तान, दोनों १९४७ में आज़ाद हुए, एक ही साथ आगे बढे, एक तरफ भारत में डेमोक्रेसी का रास्ता चुना गया और सेना को सिविल हुकूमत के कण्ट्रोल में रखा गया दूसरी तरफ पाकिस्तान में कई बार तख्तापलट हुए और सेना के शासन अपने हाथ में ले लिए. आज भी जब भी कोई राजनैतिक सरगर्मी होती है, इस्लामाबाद में यही डर होता है की कब सेना बनकर से निकलकर हुकूमत अपने हाथ में ले ले. वही भारत में डेमोक्रेसी इतनी मजबूत है की ऐसा कोई सोच भी नहीं सकता, शेखर गुप्ता जैसे कुछ पत्रकार इस तरह की कुछ कहानी बनाते है मगर उनको ज्यादा भाव नहीं दिया जाता.
आखिरकार भारत और पाकिस्तान में अंतर कहाँ है, क्यों डेमोक्रेसी के जड़े भारत में बहुत ही मजबूत है, इसी विषय पर हम लोग इस हफ्ते अलैक जी से चर्चा करेंगे.
तो अलैक जी आइये और थोडा इस मामले पर रौशनी डालिए की आखिरकार भारत और पाकिस्तान में ऐसा क्या बुनियादी अंतर है.