View Single Post
Old 07-05-2012, 06:18 PM   #36
malethia
Special Member
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 3,570
Rep Power: 42
malethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond reputemalethia has a reputation beyond repute
Default Re: कुछ यहाँ वहां से............

चड्डी बने राष्ट्रीय परिधान-arvind mishra


एक फिल्म प्रेमी मित्र के साथ चर्चा के दौरान आने वाली फिल्म फात्सो के प्रसंग में चड्डी की चर्चा शुरू हो गयी. दरअसल इस फिल्म का नायक चड्डी नहीं पहनता. फिर तो चड्डी को लेकर मित्र ने चटखारे लेकर और भी बातें करनी शुरू कीं...याद है एक ब्लॉगर ने किस तरह ब्लॉगजगत में यह कह कर धमाका कर दिया था कि वह इस इह लोक में महज पति की चड्डी धोने के लिए ही नहीं अवतरित हुई हैं...हां हां भला उन्हें कौन भुला सकता है, आज वे बिना चड्डी धोये जीवन को सार्थकता के नए आयाम दे रही हैं। फिर तो एक वृहद् चड्डी चर्चा ही शुरू हो गयी. आस पास के जो लोग इधर ही कान लगाये थे थोडा और पास खिसक आये।

गुलजार के चड्डी लगाव पर चर्चा हुई। क्या गाना था वो भी...चड्डी पहन के फूल खिला है...बच्चों के साथ बड़े भी लहालोट हो जाते थे यह गीत सुन कर। तब भी यही लगता था कि चड्डी निश्चय ही फूल जैसे बच्चों की ही ड्रेस हो सकती है. इनोसेंट प्यारे बच्चे चड्डी में और भी कितने प्यारे लगने लगते हैं. मगर नाश हो इन नासपीटों होजरी उद्योग वालों का जिन्होंने विज्ञापन के चलते चड्डी को युवाओं का भी ड्रेस - अन्तःवस्त्र बना दिया और उसके साथ कुछ रोमांटिसिज्म भी जोड़ दिया। नए प्रतीक भी गढ़ लिए गए। मुओं ने इस बचपने को यौनाकर्षण से भी जोड़ दिया ...अगर तुम वह वाली चड्डी पहनोगे तो वह तुम्हारे पास खिंची चली आयेगी - हुंह ऐसा भी होता है भला? मगर चड्डी उद्योग परवान चढ़ता गया...नारियों ने अपने लिए गुलाबी रंग चुन कर इस रंग को भी एक फुरफुरी झुर्झुरीनुमा संवेदना से जोड़ दिया -पिछले दिनों एक चड्डी अभियान दरअसल इसी संवेदना की एक निगेटिव पब्लिसिटी ही तो थी . किसी राम सेना को इस चड्डी अभियान में पूरी तरह गुलाबी बना दिया गया था.

हमारे यहां गांव गिराव में तो बच्चे ही चड्डी पहनते आये हैं...बड़े हुए तो लंगोट ढाल ली. कहते हैं लंगोट और ब्रह्मचर्य में एक घनिष्ठ रिश्ता है...अगर बात इधर मुडी तो तगड़ा विषयांतर हो जाएगा...इसलिए अभी यह चड्डी चर्चा पूरी हो जाने दीजिये। लंगोट महात्म्य फिर कभी...मैंने तो कभी पहनी नहीं, किसी लंगोटधारी से पूछ पछोर कर ही कुछ बता पाऊंगा...वैसे भी लंगोट मुझे हमेशा सांप की प्रतीति कराती है। जाहिर है लंगोट से डर लगता है। तो हां...चड्डी.....गांव में अभी भी बहुत से लोग चड्डी नहीं पहनते...यह नागर सभ्यता की देन है. हां नेकर गावों में जरूर पहना जाता है, जिसे जांघिया भी कहते हैं...मगर वह एक बहिर्वस्त्र है अंतःवस्त्र नहीं। हां कुछ उजबक किस्म के लोग जांघिया के ऊपर पायजामा, पैंट पहन कर अपनी समृद्धता का बेजा प्रदर्शन भी करते हैं - ऐसे लोग मुझे अच्छे नहीं लगते (याद दिला दूं चल रही चड्डी चर्चा में ज्यादा हिस्सेदारी मेरे मित्र की है, इसलिए जिस भी वक्तव्य के बारे में तनिक भी शंका हो उसे मेरे मित्र का माना जाये) गांव की गोरियां भी अमूमन अन्तःवस्त्र नहीं पहनतीं...एक ग्राम्य पंचायत में अभी खुलासा हुआ कि एक ग्राम्या को उसका शहरी हसबैंड जबरदस्ती चड्डी पहनने को कहता है...पञ्च लोग गरजे...अबे कलुआ ऐसा काहे करता है बे...उसने बहुत झेंप झांप के बताया कि यह फॉर्मूला अपनाने से उसे जोर का कुछ कुछ होता है...मगर उस ग्राम्या को यही ऐतराज था...मामला तलाक पर जा पहुंचा था। मुझे लगता है ग्राम्या होशियार थी...उसे भी रोज रोज चड्डी साफ़ करने की मुसीबत से छुटकारा चाहिए था।

जाहिर है यह चड्डी संस्कृति बहुत गहरे घुस गयी है हमारे जीवन में। एक मित्र दंपती को जब शादी के कई साल बाद भी संतान की प्राप्ति नहीं हुई तो ओझाई सोखाई शुरू हुई...कहां क�����ां नहीं गए बिचारे, कौन कौन सा नेम व्रत नहीं किया...किसकी मिन्नतें नहीं हुईं, देवी औलिया दरगाह सब जगह शीश नवाया...मगर संतान नहीं हुई। एक काबिल डॉक्टर ने जांच परख की तो मित्र से कहा कि अब से चड्डी पहनना छोड़ो...बच्चा हो जाएगा...आश्चर्यों का आश्चर्य दंपती को अगले वर्ष ही बच्चा नसीब हो गया....मगर कैसे? डॉक्टर ने बताया कि लगातार चड्डी पहनने से स्पर्म काउंट घट गया था- यह भी कि पुरुष जननांग के पास एक ख़ास स्थिर तापक्रम शुक्राणुओं को सक्रिय समर्थ रहने के लिए आवश्यक है...मेरे मित्र ने तबसे चड्डी ऐसी उतार फेंकी कि फिर आज तक नहीं पहनी. कई होनहार बच्चों के गर्वित पिता हैं....और चड्डी न पहनने की कई सहूलियतों का भी वर्णन करते नहीं अघाते।
ब्लॉगर आशीष श्रीवास्तव इस चड्डी पुराण से इतने प्रभावित हुए हैं कि कई ब्लॉगरों के साथ उन्होंने इसे भारत का राष्ट्रीय परिधान घोषित किये जाने की मांग की है.


साभार-नवभारत टाइम्स

__________________
मांगो तो अपने रब से मांगो;
जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत;
लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना;
क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी।
malethia is offline   Reply With Quote