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Old 08-05-2012, 08:16 AM   #6
abhisays
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Default Re: आपस की बात अलैक शेरमन के साथ (Aapas ki Baat)

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Originally Posted by dark saint alaick View Post
... लेकिन इससे पहले मैं हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के आजादी के बाद के इतिहास पर एक नज़र डाल लेना बेहतर समझता हूं, जिससे कई चीजें अपने-आप साफ़ हो जाएं ! यह सभी को पता है कि आज़ाद होते समय दोनों हिस्सों को विरासत में वही उपनिवेशकालीन व्यवस्था, वही न्यायपालिका, कार्यपालिका और नौकरशाही हासिल हुई ! दोनों तरफ वही मिडिल क्लास, गरीबी और जात-पांत के झगड़े भी मौजूद थे अर्थात लगभग समान परिस्थितियां ! यह सब होते हुए भी भारत ने 1947 से 1958 के बीच संविधान बना लिया, चुनाव करा लिए और लोकतंत्र की ओर तेज़ी से कदम बढ़ाए, लेकिन ऐसा पाकिस्तान में कुछ नहीं हुआ ! इसके बावजूद कि पाकिस्तान के कायदे-आज़म जिन्ना लगातार लोकतांत्रिक व्यवस्था लाने की दुहाई देते रहे ! उनके भाषणों को देखें, आपको साफ़ लगेगा कि वे पाकिस्तान में एक सच्ची जम्हूरियत के ही हिमायती थे, लेकिन हुआ एकदम उलट ! पहले दस साल जैसे-तैसे लड़खड़ाते गुज़र गए और 1958 में वहां मार्शल लॉ लागू हो गया, जो लगभग दस साल रहा ! उसके बाद 1973 के आसपास जुल्फिकार अली भुट्टो आए, लेकिन उन्होंने तमाम दावों के बावजूद न तो प्रेस को आजादी दी और न न्यायपालिका को स्वायत्त किया ! हर चीज़ पर उन्होंने अपना कड़ा अंकुश रखा अर्थात वही गलती उन्होंने दोहराई, जो पाकिस्तान के प्रारम्भिक शासकों ने की थी ! उनके बाद लगभग दस साल जिया उल हक रहे और उनके काल तक पाकिस्तान में सेना की भूमिका इतनी ज्यादा बढ़ चुकी थी कि वहां लोकतंत्र तो आया लेकिन वह एक लूला-लंगड़ा लोकतंत्र था ! इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह था कि वहां राजनेताओं की कोई जमात ही खड़ी नहीं हुई थी, जो नेता सामने आए, उन्हें न तो यह अहसास था कि उन्हें शासन कैसे करना है और न ऐसा प्रशिक्षण ही उन्हें मिला था, यही कारण था कि वे आईएसआई और सेना के इशारों पर शासन चलाने में ही खैरियत समझने लगे ! अब फिर वही सवाल, यानी इसके लिए जिम्मेदार परिस्थितियां क्या हैं ? अब मैं आपको कुछ देर के लिए ले चलूंगा आजादी के लिए छटपटाते ब्रिटिशकालीन संयुक्त भारत में !

आपने जिन्नाह की बात छेड़ी है तो मैं भी इस सिलसिले में एक रोचक बात बताऊँगा. जिन्नाह को १९४० में टीबी हो गया था और १९४५-४६ तक उनकी हालत बहुत ख़राब हो गयी थी, और उस हालत में भी वो चिमनी की तरह सिगरेट पीते थे. यह बात उनके डॉक्टर को पता थी की जिन्नाह चंद महीनो के ही मेहमान हैं. और उसी दिनों गाँधी ने पटेल और नेहरु के सामने यह प्रस्ताव रखा था की जिन्नाह को प्रधान मंत्री बना दो और भारत का विभाजन बचा लो. अगर पटेल नेहरु यह बात मान लेते तो भारत का विभाजन नहीं होता और फिर कुछ दिन बाद जिन्नाह की मृत्यु हो जाती और फिर नेहरु प्रधान मंत्री बन जाते. कई लोग यह भी कहते है की उस डॉक्टर ने यह बात पटेल और नेहरु को बताई थी लेकिन इसके बारे में कॉन्फीर्म जानकारी नहीं है.
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