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आक्टोपस से सुलझेगा अंटार्कटिक में बर्फ की चादर पिघलने का रहस्य
वाशिंगटन। अंटार्कटिक में दो अलग-अलग समुद्रों में एक ही तरह के जीन्स वाला आॅक्टोपस मिलने पर वैज्ञानिकों ने इसे बर्फ की चादरों के पिघलने से जोड़कर देखा है। उनका कहना है कि अगर वैश्विक गर्मी बढ़ती रही तो पश्चिमी अंटार्कटिक की बर्फ की चादरें पिघल जाएंगी। मोलेक्यूलर इकॉलाजी पत्रिका के अनुसार वैज्ञानिकों का यह अनुमान इस धारणा पर है कि उन्हें इस अंटार्कटिक क्षेत्र में पाए जाने वाले आक्टोपस की प्रजाति एक दूसरे से दस हजार किलोमीटर दूरी पर स्थित सागरों रोस और वेडेल में मिली है। जबकि इसका अध्ययन करने वाले अंतर्राष्ट्रीय समूह की प्रमुख डॉक्टर जेन स्टुग्नेल का मानना है कि ये व्यस्क आक्टोपस ज्यादा गतिशील होते ही नहीं हैं। ये ज्यादा से ज्यादा अपने शिकारियों से बचने के लिए थोड़ा बहुत इधर-उधर जाते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार अगर दो सागर एक दूसरे से इतने दूर हैं तो उनमें रहने वाले जीवों की जीन्स की संरचना एकदम समान तो होनी ही नहीं चाहिए। लगता है कि बीते समय में पश्चिमी अंटार्कटिक की बर्फ की चादरें टूटकर पिघल जाने पर ये दोनों सागर अलग-अलग हुए होंगे। तभी अंटार्कटिक के दो अलग-अलग छोरों पर बहने वाले सागरों में आॅक्टोपस की एक जैसी प्रजातियां हैं। ब्रिटिश वेबसाइट ‘प्लेनेट अर्थ’ के मुताबिक, बर्फ की चादरों का टूटना आज से लगभग दो लाख साल पहले हुआ होगा। इस आधार पर आने वाले समय में बर्फ की चादरों के पिघलने के बारे में वैज्ञानिकों के विचारों को न्यायसंगत कहा जा सकता है। डॉ स्टुग्नेल का कहना है, कि जब जलवायु ज्यादा गर्म थी तो समुद्र का जल स्तर काफी बढ़ गया होगा क्योंकि बहुत कम पानी ही बर्फ के रूप में जमा होगा। ऐसी स्थिति में रोस और वेडेल नामक दोनों समुद्र एकदूसरे से जुड़े रहे होंगे। उनके अनुसार समुद्रों की धाराएं जीन्स के प्रवाह में सहायक हो सकती हैं और उसमें रोक भी लगा सकती हैं, लेकिन आर्कटिक की धाराओं ने इन जीन्स के प्रवाह को बर्फ की चादर के होते हुए इतनी तो सहायता नहीं ही की होगी कि आक्टोपस की दो प्रजातियों की जैविक संरचना एकदम समान हो।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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