12-05-2012, 06:16 PM
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Re: कुछ यहाँ वहां से............
पॉलिटिकल साइंस पर एनसीईआरटी की एक किताब में छपे आंबेडकर के कार्टून पर आज लोकसभा में भारी हंगामा हुआ। मामला साउथ की एक नामालूम-सी पार्टी के नामालूम-से सांसद ने उठाया था लेकिन कांग्रेस, बीजेपी समेत सभी पार्टियों के सांसदों ने उनकी हां में हां मिलाई। लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने भी इसे गंभीर मामला बताया है। मायावती भी मैदान में कूद पड़ी हैं। मामला और तूल न पकड़े, इसके लिए किताब से कार्टून हटाने की घोषणा भी हो गई है। मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने इसके लिए सार्वजनिक तौर पर माफी भी मांग ली है।
मैंने खुद यह कार्टून देखा और मुझे इसमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लग रहा। इसमें संविधान नामक घोंघे पर आंबेडकर बैठे दिखाए गए हैं और नेहरू पीछे से घोंघे को सोंटा लगा रहे हैं ताकि वह थोड़ा तेज़ चले। और किताब में यह संविधान से जुड़े चैप्टर के साथ ही लगाया गया है।
महान कार्टूनिस्ट शंकर द्वारा बनाए गए इस कार्टून से साफ झलक रहा है कि संविधान बनने में हो रही देरी पर वह व्यंग्य कर रहे हैं। कार्टूनिस्ट एक विचारवान कलाकार है जिसको बड़े से बड़े आदमी की खिल्ली उड़ाने का अधिकार है। कार्टूनिस्ट व्यंग्य या मज़ाक नहीं करेगा तो क्या आरती उतारेगा?अगर मज़ाक नहीं होगा तो फिर कार्टून क्या होगा! इसमें घोंघे पर आंबेडकर इसीलिए बिठाए गए हैं कि वही संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। यदि कोई और इस समिति का अध्यक्ष होता तो उसका कार्टून होता आंबेडकर की जगह।
यदि आंबेडकर के दलित होने का इस कार्टून में मज़ाक उड़ाया गया होता तो आपत्ति का कारण समझ में आ सकता था। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है इसमें।
कार्टून से नाराज़गी का एक मसला हाल ही में बंगाल में भी सामने आया था, जब ममता बनर्जी की पुलिस ने एक प्रफेसर के खिलाफ इस आधार पर मामला दायर कर दिया था कि उन्होंने ममता बनर्जी पर बने कार्टून सोशल नेटवर्किंग साइट पर शेयर किए थे। इससे पहले अन्ना आंदोलन के बाद पब्लिक द्वारा बनाए गए और शेयर किए गए मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी आदि के कार्टूनों-मॉर्फ्ड पिक्चरों पर भी सरकार को परेशानी हुई थी।
कार्टून आलोचना का एक मज़ाकिया तरीका है और किसी भी लोकतांत्रिक देश में इसका अधिकार सबको मिला हुआ है। आंबेडकर या नेहरू या गांधी या मोदी – ये सारे लोग भले ही किसी खास तबके के लिए भगवान हों लेकिन निष्पक्ष नागरिकों के लिए ये सारे इंसान हैं या थे और उनके कामों की भी बाकियों की तरह आलोचना हो सकती है।
आम जनता अपनी चर्चाओं में और हमारे जैसे लेखक अपनी लेखनी द्वारा जो बात कहते हैं, वही बात कार्टूनिस्ट अपने व्यंग्यचित्रों द्वारा छोटे में और बेहतर तरीके से कहते हैं।
लेखक-नरेंद्र नागर
साभार-NBT
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मांगो तो अपने रब से मांगो;
जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत;
लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना;
क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी।
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