Re: आपस की बात अलैक शेरमन के साथ (Aapas ki Baat)
हां, आपने एक बहुत सही बात कही है, अभिषेकजी ! दरअसल पाकिस्तान पर उसके सबसे बड़े हिस्से पंजाब का हर तरह से कब्ज़ा है और यही कारण है कि इंडिया के अन्य हिस्सों से वहां गए लोग अब भी मुहाजिर कहलाते हैं ! बीच में यह बात उठी थी कि यदि जिन्ना की मांगों को मान लिया जाता और पं. नेहरू अड़े नहीं होते, तो आज भारत संयुक्त ही होता ! अब हम इस पर विचार करेंगे ! मैं शुरुआत में ही यह स्पष्ट कर देना बेहतर समझता हूं कि यह कथन अपने आप में भ्रामक है, क्योंकि जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने जिस तरह की शर्तें रखी थीं, वह किसी विभाजन से कम नहीं थीं; इसके बावजूद स्थिति स्पष्ट करने के मकसद से हमें इस पर व्यापक विचार करना चाहिए, ऐसा मेरा मानना है !
शायद आपको पता है कि जब अंग्रेजों ने भारत छोड़ने का मन बना लिया, तो 1946 में सत्ता हस्तांतरण के तरीकों और योजना का निर्धारण करने के लिए तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली द्वारा गठित किया गया एक मिशन भारत भेजा गया, जिसे कैबिनेट मिशन कहा जाता है!
इसने तत्कालीन भारतीय नेतृत्व के विभिन्न पक्षों से विचार-विमर्श कर 16 मई 1946 को जो योजना पेश की वह कुछ इस प्रकार थी-
1. भारत को एक संयुक्त डोमिनियन स्वतंत्रता प्रदान की जाएगी !
2. मुस्लिम बहुल प्रांतों - बलूचिस्तान, सिंध, पंजाब और उत्तर - पश्चिम सीमांत प्रांत को एक समूह के रूप में और बंगाल तथा असम को एक अन्य समूह के रूप में रखा जाएगा !
3. हिंदू बहुल प्रांतों (यथा सेन्ट्रल और साउथ इंडिया) का एक अन्य समूह होगा !
4. केन्द्रीय सरकार के पास विदेश, रक्षा और संचार के मामले होंगे तथा अन्य मुद्दे स्वायत्त राज्यों के समूह स्वयं देखेंगे !
ज़ाहिर है कि इसमें मुस्लिम लीग के उन विचारों को प्रमुखता मिली थी, जिसके अनुसार वह ब्रिटिशों के जाने के बाद के भारत में मुस्लिमों के अधिकार और राजनीतिक स्थान की मजबूती सुनिश्चित करना चाहती थी ! मुस्लिम लीग मुस्लिमों के लिए अलग स्वायत्त प्रान्तों पर अड़ी हुई थी और कांग्रेस को राज्यों का हिन्दू-मुस्लिम जनसंख्या के हिसाब से बंटवारे का विचार घिनौना प्रतीत हो रहा था, अतः यह योजना सिरे नहीं चढ़ सकी ! आप स्वयं देख सकते हैं कि इस योजना में केंद्र के पास सीमित शक्तियां हैं और यदि उस समय पं. नेहरू के नेतृत्व में इस योजना को मान लिया गया होता, तो विभाजन का जो कलंक आज अंग्रेजों और मुस्लिम लीग के नाम दर्ज है, निश्चय ही वह कुछ अरसे बाद कांग्रेस के माथे पर लगना था !
इसके ठीक एक माह बाद 16 जून को एक अन्य योजना प्रस्तुत हुई ! इसके तहत मुस्लिम लीग की मांगों के अनुसार भारत के हिन्दू बहुल और मुस्लिम बहुल दो राष्ट्र बनाए जाने थे ! साथ ही रियासतों को अपना स्वरुप निर्धारित करने का अधिकार दिया जाना था अर्थात यह अधिकार कि वे किसके साथ जाएं या स्वतंत्र रहें यह चुन सकते थे ! ... अंततः थोड़े से परिवर्तन के बाद यही हुआ !
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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